Meerut News: नागर बंधुओं के रालोद में आने से किस करवट बैठेगी गुर्जर राजनीति?
Meerut News: पिछले चुनाव में बसपा के टिकट पर बिजनौर सांसद बने मलूक नागर को बसपा सुप्रीमों मायावती ने इस बार पार्टी टिकट नहीं दिया था।
Meerut News: पश्चिमी उप्र को जाट और गुर्जर बहुल माना जाता है। क्षेत्र की छह सीटों पर हिंदू-मुस्लिम गुर्जर समाज के लोगों की बड़ी तादाद है। गुर्जर नोएडा, बुलंदशहर, मेरठ, शामली, गाजियाबाद, हापुड़ से लेकर सहारनपुर और अमरोहा समेत पास के दस जिलों में बड़ी संख्या में हैं। उनकी संख्या जाटों के तकरीबन बराबर है। ऐसे में गुर्जर बंधुओं मलूक नागर और लखीराम नागर दोनों भाइयों का रालोद में आना एनडीए के लिए अत्यन्त राहत की बात मानी जा रही है। पिछले चुनाव में बसपा के टिकट पर बिजनौर सांसद बने मलूक नागर को बसपा सुप्रीमों मायावती ने इस बार पार्टी टिकट नहीं दिया था। जिसके बाद मलूक नागर ने बीते कल यानी 11 अप्रैल को रालोद का दामन थाम लिया। हालांकि बिजनौर से रालोद पहले ही चंदन चौहान को अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है।
लोकसभा चुनाव में गुर्जरों की भूमिका
इससे पहले लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले भाजपा प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे अशोक कटारिया को विधान परिषद सदस्य निर्वाचित कराकर पश्चिमी यूपी में गुर्जर समाज को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर चुकी है। अशोक कटारिया बिजनौर के ही रहने वाले हैं। यहां यह भी गौरतलब है कि पश्चिमी यूपी की कुल 14 लोकसभा सीटों में से 7 पर कभी न कभी गुर्जर बिरादरी का सांसद चुना गया है। इनमें कांग्रेस के रामचंद्र विकल, अवतार सिंह भड़ाना, भाजपा के हुकुम सिंह के अलावा मुजफ्फरनगर के चौ. नारायण सिंह प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। सहारनपुर में तीतरो के चौ. यशपाल सिंह बड़े कद के नेता रहे हैं। केंद्रीय मंत्री रहने के साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भी करीबी रहे। कांग्रेस के नेता स्वर्गीय राजेश पायलट गुर्जरों के बीच बड़े नाम हुए। सहारनपुर से बुलंदशहर के बीच के बेल्ट को ही गुर्जरों की मुख्य जमीन मानी जाती है और यहीं से ज्यादातर दिग्गज निकले।
नागर बंधुओं का राजनीतिक इतिहास
फिलहाल बात नागर बंधुओं की करें तो नागर बंधुओं की आस्था कभी किसी एक दल से जुड़ कर नहीं रही है। नागर बंधु का परिवार लंबे समय तक कांग्रेस में रहा। मलूक नागर पहले रालोद में और 2006 में बसपा में चले गये। मलूक नागर की पत्नी सुधा नागर और बड़े भाई लखीराम नागर भी मलूक के साथ बसपा जाने वालों में थे। मलूक कांग्रेस में थे तो उनकी कांग्रेस सांसद अवतार सिंह भडाना के साथ गुर्जर बिरादरी को लेकर वर्चस्व की जंग तब तक जारी रही तब तक उन्होंने कांग्रेस नहीं छोड़ दी। वैसे,दोनो भाई एमएलसी भी रह चुके हैं। खास बात यह रही कि नागर बंधुओं ने गुर्जरो का प्रभावशाली नेता बनने की कोशिश तो बहुत की। लेकिन, इसमें उन्हें कभी सफलता नहीं मिल सकी। 2004 में मलूक नागर ने मेरठ सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन,जीत नहीं सके। अलबत्ता,जीत मलूक को 2019 में बसपा के टिकट पर बिजनौर से मिली। गौरतलब है कि 2019 में बसपा-सपा और रालोद के बीच गठबंधन था।
फिलहाल, प्रदेश में कुल 8 गुर्जर विधायक हैं जिनमें भाजपा के 5 विधायक हैं। तेजपाल नागर दादरी विधानसभा सीट, नंद किशोर गुर्जर लोनी विधानसभा सीट, मेरठ से सोमेंद्र तोमर, सरसावा से मुकेश चौधरी और गंगोह से विधायक किरत सिंह गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बाकी तीन विधायक रालोद और सपा से हैं।