बिहार में NDA के बाद अब महागठबंधन पर निगाहें, किस फॉर्मूले पर होगी सीट शेयरिंग, कहां फंसा है पेंच

Lok Sabha Election 2024: विपक्षी दलों के बीच लंबे समय से सीट शेयरिंग के मुद्दे पर बातचीत हो रही है मगर अभी तक अंतिम सहमति नहीं बन सकी है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-03-19 03:46 GMT

india alliance  (PHOTO: SOICAL MEDIA )

Lok Sabha Election 2024: बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सीट शेयरिंग को अंतिम रूप दे दिया है और अब सबकी निगाहें विपक्षी दलों के महागठबंधन पर टिकी हुई हैं। विपक्षी दलों के बीच लंबे समय से सीट शेयरिंग के मुद्दे पर बातचीत हो रही है मगर अभी तक अंतिम सहमति नहीं बन सकी है।

बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुंबई में इंडिया महागठबंधन की रैली के बाद दावा किया था कि राज्य में सीट शेयरिंग के मुद्दे को आसानी से सुलझा लिया जाएगा। इस मुद्दे पर सोमवार को राजधानी दिल्ली में महागठबंधन के नेताओं के बीच चर्चा भी हुई है और माना जा रहा है कि जल्द ही महागठबंधन की ओर से भी सीट शेयरिंग का ऐलान कर दिया जाएगा।

राजद की होगी निर्णायक भूमिका

बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान लालू प्रसाद यादव की अगुवाई वाली पार्टी राजद को एक भी सीट नहीं मिल सकी थी मगर सीट बंटवारे में राजद की ही निर्णायक भूमिका मानी जा रही है। ऐसी स्थिति में लालू यादव और तेजस्वी यादव का फैसला ही अंतिम माना जाएगा। पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के बाद राजद को सियासी रूप से काफी मजबूती मिली है और यही कारण है कि कांग्रेस भी ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए राजद की ओर ही निहार रही है।

हालांकि कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में किशनगंज की सीट पर एकमात्र जीत हासिल करते हुए विपक्ष की नाक बचाई थी मगर कांग्रेस भी सीटों को लेकर अभी तक संशय की स्थिति में ही दिख रही है।

कांग्रेस ने रखी है 10 सीटों की डिमांड

कांग्रेस की ओर से राजद नेतृत्व के सामने 10 सीटों की डिमांड रखी गई है। बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और ऐसी स्थिति में पार्टी को इतनी सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका तो मिलना ही चाहिए। हालांकि इसके साथ ही कांग्रेस ने अपना रुख लचीला भी बना रखा है।

महागठबंधन को बनाए रखने के लिए कांग्रेस नेता यह बात कहने से भी नहीं सकते कि एकाध सीट भले कम हो जाए मगर कांग्रेस महागठबंधन की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत लगाएगी। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सबसे बड़ा सवाल महागठबंधन को मजबूती से बनाए रखना है और इसके लिए महागठबंधन में शामिल दलों को सीटों के मुद्दे पर समझौता करना पड़ सकता है।

लेफ्ट की मांग से फंसा हुआ है पेंच

विपक्षी महागठबंधन में सबसे बड़ी दिक्कत वाम दलों को लेकर फंसी हुई है। वाम दलों को राज्यसभा चुनाव में भी सीट नहीं मिली थी और ऐसी स्थिति में वे लोकसभा चुनाव को लेकर दबाव बनाए हुए हैं। भाकपा माले ने तो आठ सीटों पर चुनाव लड़ने का संकेत तक दे डाला है जबकि दूसरे वाम दलों की ओर से भी तीन सीटों की डिमांड की जा रही है।

ऐसी स्थिति में वाम दलों को मनाना राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। इस बाबत आखिरी फैसल लालू और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लेना है। अब यह देखने वाली बात होगी कि दोनों नेता वाम दलों को कैसे संतुष्ट रख पाते हैं।

अब पशुपति पारस की एंट्री की अटकलें

सीटों के बंटवारे में एक पेंच पशुपति कुमार पारस को लेकर भी फंस गया है। एनडीए में हुई सीटों के बंटवारे में पशुपति कुमार पारस को एक भी सीट नहीं मिली है। ऐसी स्थिति में पारस विपक्षी महागठबंधन में शामिल होकर एनडीए से बदला चुकाने को बेताब दिख रहे हैं। पारस गुट की सोमवार को राजधानी दिल्ली में हुई बैठक के दौरान भी अपना सम्मान बचाए रखने के लिए चुनावी जंग में उतामरने का फैसला लिया गया है।

ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि पशुपति पारस का गुट भी विपक्षी महागठबंधन में शामिल हो सकता है। विपक्षी महागठबंधन के नेता भी पशुपति पारस को लेकर साथ लेकर एनडीए की सियासी जमीन को कमजोर बनाना चाहते हैं मगर उन्हें साथ लेने की स्थिति में लोजपा के पारस गुट को भी कुछ सीटें देनी पड़ेगी। ऐसी स्थिति में अब सबकी निगाहें लालू और तेजस्वी यादव के आखिरी फैसले पर लगी हुई हैं।

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