Loksabha Election 2024: कन्नौज लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव के आने से बदल जाएगा यहां का सियासी समीकरण
Loksabha Election 2024 Kannauj Seats Details: कन्नौज लोकसभा सीट पर इस बार लड़ाई सपा के लिए गढ़ वापस लेने, भाजपा के लिए कब्जा बनाए रखने और बसपा के लिए खाता खोलने की है।
Loksabha Election 2024: यूपी का कन्नौज जिला इत्र की खुशबू से दुनिया को दीवाना बनाने के साथ ही सियासी गलियारों में भी अहम स्थान रखता है। कन्नौज लोकसभा सीट की गिनती प्रदेश में हाई प्रोफाइल सीटों में की जाती है। जैसे यहां की इत्र की खुशबू आम-खास में भेद नहीं करती, उसी तरह कन्नौज ने भी सियासत में बाहरी-भीतरी का भेद नहीं रखा। अब तक यहां केवल दो ही सांसद ऐसे चुने गए हैं, जो स्थानीय हैं। यह लोकसभा सीट बड़े नामों पर ही वोटों का इत्र छिड़कती रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद यहां के चुनावी मैदान हैं। जबकि भाजपा ने यहां के वर्तमान सांसद सुब्रत पाठक पर दुबारा दांव लगाया है।
वहीं बसपा ने इमरान बिन जफर को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां लड़ाई सपा के लिए गढ़ वापस लेने, भाजपा के लिए कब्जा बनाए रखने और बसपा के लिए खाता खोलने की है। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो यहां बड़ा उलटफेर देखने को मिला था। भाजपा के सुब्रत पाठक ने बसपा सपा की संयुक्त उम्मीदवार रहीं अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को 12,353 वोट से हराकर करीब दो दशक बाद इस सीट पर कमल खिलाया था। इस चुनाव में सुब्रत पाठक को 5,63,087 और डिंपल यादव को 5,50,734 वोट मिले थे। जबकि शिव सेना के आनंद विक्रम सिंह को महज 4,922 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान सपा की डिंपल यादव ने भाजपा के सुब्रत पाठक को 19,907 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में डिंपल यादव को 4,89,164 और सुब्रत पाठक को 4,69,256 वोट मिले थे। जबकि बसपा के निर्मल तिवारी को 1,27,785 वोट मिले थे।
यहां जानें भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक के बारे में
भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक का जन्म 30 जून 1979 को कन्नौज में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम नेहा पाठक है। उनके दो बच्चे भी हैं, जिनका नाम कौस्तभ और प्रणित है। सुब्रत पाठक की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। उन्होंने भाजपा की युवा शाखा, भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम किया। इसके बाद भाजपा के यूपी संगठन में वह प्रदेश महासचिव बनाए गए। सुब्रत पाठक ने 2009 के चुनाव में अखिलेश यादव के सामने ताल ठोंकी थी लेकिन हार गए थे। तब अखिलेश को 3,37,751 और सुब्रत को 1,50,872 वोट मिले थे।
यहां जानें कन्नौज लोकसभा क्षेत्र के बारे में
- कन्नौज लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 42 है।
- यह लोकसभा क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया था।
- इस लोकसभा क्षेत्र का गठन कन्नौज जिले के छिबरामऊ, तिर्वा, कन्नौज और औरैया जिले के बिधूना के अलावा कानपुर देहात के रसूलाबाद विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
- कन्नौज लोकसभा क्षेत्र के 5 विधानसभा सीटों में से 4 पर भाजपा और 1 पर सपा का कब्जा है।
- यहां कुल 18,74,824 मतदाता हैं। जिनमें से 8,48,829 पुरुष और 10,25,930 महिला मतदाता हैं।
- कन्नौज लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 11,40,985 यानी 60.86 प्रतिशत मतदान हुआ था।
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास
कन्नौज की खूबियों और खुशबू इतिहास के पन्ने से महकते हैं। रामायण-महाभारत काल के भी संदर्भ यहां से जुड़े हैं, तो दान और त्याग के लिए चर्चित राजा हर्षवर्धन की यह राजधानी रहा है। कन्नौज का पुराना नाम कन्याकुज्जा या महोधी हुआ करता था, बाद में कन्याकुज्जा की जगह कन्नौज हो गया। ऐसा दावा किया जाता है कि ‘अमावासु’ नाम के शख्स ने इस राज्य की स्थापना की, बाद में कन्याकुज्जा (कन्नौज) इसकी राजधानी बनी। महाभारत काल में यह क्षेत्र कंम्पिला दक्षिण पंचला की राजधानी थी और इसी जगह पर द्रौपदी का स्वयंवर हुआ था। इत्र की तरह कन्नौज में भी सियासत के अलग-अलग फ्लेवर दिखते हैं। एकाध मौकों को छोड़कर यहां हर चुनाव में चेहरे बदलते ही रहे। जिसको पहली बार पीछे किया, उसको अगली बार जीत दिला दी। कन्नौज पहले फर्रुखाबाद का हिस्सा था। 1962 में फूलपुर से जवाहर लाल नेहरू से हार का सामना करने के बाद दिग्गज समाजवादी नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने 1963 में फर्रुखाबाद में हुए उपचुनाव में पर्चा भरा और जीत गए। परिसीमन के बाद 1967 में कन्नौज अलग लोकसभा सीट बन गई।
लोहिया ने इस बार भी इत्रनगरी से पर्चा भर दिया। सामने कांग्रेस के सत्यनारायण मिश्र थे। बैलगाड़ी और तांगों के जरिए लोहिया मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने निकले। मुकाबला कांटे का हुआ। मतदाताओं ने दोनों ही उम्मीदवारों की जमकर परीक्षा ली। इस दौरान एक सभा में लोहिया से सवाल पूछा गया कि मुस्लिमों की चार शादियों के बारे में आपकी क्या राय है? लोहिया साफगोई के लिए मशहूर थे। उन्होंने कहा कि पति को भी पत्नीव्रता होना जरूरी है। लोहिया के इस बयान को कांग्रेस ने खूब हवा दी। खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इसे भुनाया गया। लोहिया का अपना ही चुनाव इतना कांटे का हो गया कि वह कन्नौज से महज 472 वोट से जीतकर पहले सांसद बने। लेकिन, कन्नौज के इस चुनाव में एक और ट्विस्ट बाकी था। कांग्रेस उम्मीदवार सत्यनारायण मिश्र ने चुनाव में धांधली का दावा करते हुए लोहिया को गलत ढंग से जिताए जाने का आरोप लगाया।
वह इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट तक ले गए। इसी बीच 12 अक्टूबर 1967 को लोहिया का निधन हो गया। हालांकि, मुकदमा जारी रहा। आखिरकार, 31 जनवरी 1969 को कोर्ट ने आरोपों की जांच और फिर से मतगणना के आदेश दिए। लगभग 900 वोटों से लोहिया की जगह सत्यनारायण मिश्र को विजेता घोषित कर दिया गया। बता दें कि साल 1990 में लोहिया की जन्म शताब्दी पर संसद में छपी स्मारिका में इस संदर्भ का जिक्र है। इसमें यह भी दावा किया गया है कि लोहिया का चूंकि लगभग सवा साल पहले निधन हो चुका था, इसलिए कोर्ट में उनका पक्ष ठीक से नहीं आ सका।
दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित पहली बार यहीं से गईं संसद
कांग्रेस के सत्य नारायण मिश्र की 1967 में मामूली वोटों से हार का मलाल 1971 में यहां की जनता ने दूर कर दिया। दूसरे नंबर पर जनसंघ के रामप्रकाश त्रिपाठी रहे। रामप्रकाश छिबरामऊ के रहने वाले थे। 1977 के चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी से पर्चा भरा और कन्नौज ने इस बार उन्हें संसद भेज दिया। वह संसद पहुंचने वाले पहले स्थानीय चेहरा थे। उन्हें लगभग 70 प्रतिशत वोट मिले। हालांकि, 1980 में जनता ने उन्हें घर बिठा दिया और जीत मिली जनता दल सेक्युलर के छोटे सिंह यादव को। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव का मूड व मिजाज अलग ही था। इस समय कांग्रेस ने एक नए चेहरे शीला दीक्षित को उतारा। मूलत: पंजाब की रहने वाली शीला की शादी उन्नाव में हुई थी। यूपी की बहू को कन्नौज ने भी मान दिया। शीला दीक्षित पहली बार में ही संसद पहुंच गईं। बाद में दिल्ली के सीएम की कुर्सी भी संभाली। 1984 के बाद कांग्रेस का यहां खाता नहीं खुला। 1989 में कन्नौज ने छोटे सिंह यादव को चुना और उन्हें 1991 में भी मौका दिया। 1996 में यहां पहली बार कमल खिला और भाजपा के चंद्रभूषण सिंह सांसद बने।
सपा को पहले चुनाव में लगा झटका, लेकिन फिर बन गया कन्नौज गढ़
मुलायम सिंह यादव ने 1993 में सपा बनाई। 1996 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज में उनके उम्मीदवार को मायूसी हाथ लगी। हालांकि, इसकी भरपाई कन्नौज ने कुछ ऐसी की यह सीट समाजवाद व मुलायम परिवार का गढ़ बन गई। 1998 में यहां सपा का खाता खुला तो फिर 2014 तक कोई समाजवादी किले में सेंध नहीं लगा पाया। 1999 में खुद मुलायम कन्नौज से सांसद बने। भाजपा ने लड़ाई से बाहर रहकर लोकतांत्रिक कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन दिया ।लेकिन वह 89 हजार वोटों से पीछे रह गए। अगले साल मुलायम ने कन्नौज की सीट छोड़ दी। उपचुनाव के साथ ही मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव की सियासत में एंट्री हुई। उपचुनाव में बसपा ने उनके सामने अकबर अहमद डंपी को उतार दिया। सपा ने नारा दिया, 'पत्थर से ईंट गुलगुली'। अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को बसपा के पाले में जाने से रोकने के लिए यह दांव था, जो काम कर गया। अखिलेश पहली बार में ही संसद पहुंच गए। इसके बाद कन्नौज को वह इतने भाए कि 2004 और 2009 में एकतरफा जीत दिलाकर जनता ने उनकी हैटट्रिक लगवाई। 2012 में यूपी का सीएम बनने के बाद जब उन्होंने इस्तीफा दिया तो उनकी पत्नी डिंपल यादव यहां से निर्विरोध सांसद चुनी गईं थीं।
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण
कनौज लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सपा के कोर वोटर माने जाने वाले यादव-मुस्लिम मतदाताओं की ही तादात 30फीसदी से अधिक है। ब्राह्मण व राजपूत भी यहां करीब 25 प्रतिशत हैं। दलितों व अति पिछड़ों की भी प्रभावी भागीदारी है, जिस पर भाजपा की भी नजर है।
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से डॉक्टर राम मनोहर लोहिया 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से सत्यनारायण मिश्रा 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी से राम प्रकाश त्रिपाठी 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
जनता पार्टी से छोटे सिंह यादव 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
कांग्रेस से शीला दीक्षित 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
जनता दल से छोटे सिंह यादव 1989 और 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
भाजपा से चंद्रभूषण सिंह 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
सपा से प्रदीप यादव 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
सपा से मुलायम सिंह यादव 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
सपा से अखिलेश यादव 2000, 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
सपा से डिंपल यादव 2012 और 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
भाजपा से सुब्रत पाठक 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।