Lok Sabha Election 2024: उत्तराखंड के पहाड़ों से नेताओं का भी पलायन
Lok Sabha Election 2024: है। यह ट्रेंड नेताओं की मैदानी इलाकों में रहने की प्रवृत्ति के कारण है। सुदूर पहाड़ी इलाकों में लोगों का समर्थन जुटाना मुश्किल है।
Lok Sabha Election 2024: उत्तराखंड के पहाड़ों से लोगों का पलायन बरसों से जारी है। गांव के गांव खाली हो गए हैं। लोगों के पलायन के चलते राजनेता भी अपने निर्वाचन क्षेत्रों को सुदूर पहाड़ियों में छोड़कर नीचे चले गए हैं। कम से कम छह पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अन्य नेताओं के साथ अपने संसदीय और विधानसभा क्षेत्र छोड़ दिए हैं और राज्य के मैदानी इलाकों में चले गए।
23 वर्ष से अधिक समय पहले देश के 27वें राज्य के रूप में गठित उत्तराखंड से अपेक्षा थी कि राज्य विधानसभा और संसद में पहाड़ी क्षेत्रों से प्रतिनिधित्व की मांग को पूरा किया जा सकेगा।
पुरानी परंपरा
पर्वतीय क्षेत्रों के प्रमुख नेताओं में से एक, गोविंद बल्लभ पंत मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के रहने वाले थे। उन्होंने रानीखेत में वकालत की प्रैक्टिस की। आजादी के बाद 1951 में हुए पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने बरेली से चुनाव लड़ा। अल्मोड़ा या रानीखेत से चुनाव लड़ने में सक्षम होने के बावजूद वह यूपी के पहले सीएम बने।
वैसे, पहाड़ से मैदान में उतरने की परंपरा को शुरू करने वालों में भारत रत्न प्राप्त गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी पहले व्यक्ति थे। बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, हरीश रावत, बची सिंह रावत, भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक और रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट भी पहाड़ी प्रवासियों की सूची में हैं।
पहाड़ रास नहीं आते
विश्लेषक कहते हैं कि प्रवासन को एक चुनौतीपूर्ण समस्या या एक निर्विवाद वास्तविकता के रूप में देखना चाहिए। तथ्य यह है कि नेताओं और निवासियों दोनों ने इन क्षेत्रों को छोड़ने का विकल्प चुना है। यह ट्रेंड नेताओं की मैदानी इलाकों में रहने की प्रवृत्ति के कारण है। सुदूर पहाड़ी इलाकों में लोगों का समर्थन जुटाना मुश्किल है। मैदानी इलाकों में, किसी के राजनीतिक करियर की रूपरेखा तैयार करना आसान है।
पहाड़ों से पलायन आम हो गया है, नेता भी मजबूरी में मैदानी इलाकों में उतर रहे हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है। पहाड़ में जब लोग ही नहीं हैं तो नेता भी करें तो क्या करें।