Lok Sabha Election 2024: फतेहपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र
Lok Sabha Election 2024: फतेहपुर लोकसभा सीट पर 1957 में पहला चुनाव हुआ। यहां अब तक लोकसभा के 16 बार चुनाव हो चुके हैं
क्षेत्र की खासियत
- फतेहपुर गंगा और यमुना के बीच बसा हुआ है, इसका इतिहास पौराणिक काल से शुरू होता है। इस जिले में स्थित कई स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जिनमें भिटौरा, असोथर अश्वत्थामा की नगरी और असनि के घाट प्रमुख हैं। भिटौरा, भृगु ऋषि की तपोस्थली मानी जाती है। असोथर के बारे में माना जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा ने महाभारत काल में ब्रम्हास्त्र पाने के लिए यहीं पर आकर तपस्या की थी। माना जाता है कि इस स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी।
- फतेहपुर जिले में स्थित हथगाम महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म स्थान है।
- फतेहपुर को सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव भी प्राप्त है।
- फतेहपुर जिले का उत्तरी क्षेत्र अवधी संस्कृति से प्रभावित है, जबकि दक्षिणी भाग पर बुंदेलखंड का प्रभाव दिखाता है। यहां पारंपरिक गायन (काजरी, चैती, दद्रा, झुला, भजन, शास्त्रीय संगीत) जैसे कला के कई रूप मौजूद रहे हैं।
विधानसभा क्षेत्र
- फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत 6 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें फतेहपुर, जहानाबाद, बिन्दकी, अयाह शाह, खागा और हुसैनगंज शामिल हैं। इनमें जहानाबाद, अयाह शाह और खागा (एससी) सीट भाजपा के खाते मैं है। बिन्दकी सीट एनडीए के सहयोगी अपना दल (सोनेलाला) के पास है जबकि फतेहपुर और हुसैनगंज सीट समाजवादी पार्टी के कब्जे में है।
जातीय समीकरण
- फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब साढ़े 19 लाख मतदाता हैं। इनमें सबसे ज्यादा, करीब 4 लाख अनुसूचित जाति के मतदाता है। 3 लाख क्षत्रिय, ढाई लाख ब्राह्मण, 2 लाख निषाद (केवट), डेढ़ लाख मुस्लिम, सवा लाख वैश्य व एक लाख 10 हज़ार यादव मतदाता हैं। जिसे में दलित मतदाता निर्णायक होते हैं।
राजनीतिक इतिहास और पिछले चुनाव
- फतेहपुर लोकसभा सीट पर 1957 में पहला चुनाव हुआ। यहां अब तक लोकसभा के 16 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा पांच बार कांग्रेस तो बीजेपी को चार बार सफलता मिली है। यहां पर 1990 के बाद के दौर में मुकाबला त्रिकोणीय ही रहा है। कांग्रेस को 40 साल पहले आखिरी बार यहां पर जीत मिली थी। कभी यह सीट भी हाई प्रोफाइल सीटों में शुमार की जाती थी। फतेहपुर सीट से देश के पूर्व पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह भी चुनाव लड़ चुके हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह इसी सीट से लोकसभा सांसद चुने गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे भी 2 बार इस सीट से सांसद चुने गए हैं।
- 1957 के चुनाव में कांग्रेस के अंसार हरवानी को जीत मिली थी।
- 1962 में निर्दलीय गौरी शंकर चुनाव जीते।
- 1967 और 1971 में कांग्रेस के संत बक्श सिंह ने यहां से जीत हासिल की।
- इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी बशीर अहमद सांसद चुने गए।
- 1978 के उपचुनाव में जनता पार्टी के सैय्यद लियाकत हुसैन ने जीत हासिल की।
- 1980 के चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकिशन शास्त्री मैदान में उतरे और विजयी हुए। वह 1984 के चुनाव में भी विजयी हुए।
- 1989 और 1991 के चुनाव में जनता दल से विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जीत हासिल की।
- 1996 के चुनाव में बसपा के विशंभर प्रसाद निषाद चुने गए।
- 1998 के चुनाव में भाजपा ने यहां से जीत का खाता खोला और अशोक कुमार पटेल चुनाव। वह 1999 के चुनाव में फिर सांसद चुने गए।
- 2004 के चुनाव में बसपा के महेंद्र प्रसाद निषाद जीतने में कामयाब रहे।
- 2009 में सपा के राकेश सचान के खाते में जीत आई।
- 2014 के चुनाव में भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति ने जीत दर्ज की।
- 2019 के चुनाव में भी साध्वी निरंजन ज्योति ने आसान जीत हासिल की।
इस बार के उम्मीदवार
- भाजपा ने वर्तमान सांसद साध्वी निरंजन ज्योति को फिर उतारा है। निरंजन ज्योति के पास जीत की हैट्रिक लगाने का मौका है। इंडिया गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी ने नरेश उत्तम पटेल को मैदान में उतारा है जबकि बसपा ने डॉ. मनीष सचान को टिकट दिया है।
स्थानीय मुद्दे
- यहां का सबसे बड़ा मुद्दा नहर में पानी लाने का है। इसी तरह रिंद नदी में पुल की भी मांग उठती है। लेकिन ये मुद्दे कभी भी मतदान को प्रभावित नहीं कर सके हैं। मतदाताओं ने जातिगत और पार्टी के प्रभाव में ही वोट किया है।