नई लोकसभा: सिर्फ 24 मुस्लिम एमपी, मंत्री एक भी नहीं

New Lok Sabha: हर आम चुनाव के बाद शपथ लेने वाली मंत्रिपरिषद की संरचना में कम से कम एक मुस्लिम सांसद होता था। 2004 और 2009 के मंत्रिपरिषद में क्रमशः चार और पांच मुस्लिम सांसद थे।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2024-06-10 12:45 IST

इकरा हसन, असदुद्दीन ओवैसी और अफजाल अंसारी  (photo: social media )

New Lok Sabha: नई लोकसभा में केवल 24 मुस्लिम सांसद चुने गए, जो 2019 से दो कम है। इन 24 में से 21 सांसद विपक्षी दलों से हैं - कांग्रेस के पास नौ मुस्लिम सांसद हैं, उसके बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पास पांच, समाजवादी पार्टी के पास चार, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के पास दो और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास एक है।

गैर-संबद्ध एआईएमआईएम में एक मुस्लिम सांसद (खुद असदुद्दीन ओवैसी) हैं, और दो अन्य मुस्लिम भी हैं जो निर्दलीय के रूप में जीते हैं - बारामुल्ला से इंजीनियर राशिद और लद्दाख से मोहम्मद हनीफा। सत्तारूढ़ एनडीए के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है।

यह शायद पहली बार है जब चुनाव के बाद किसी मुस्लिम सांसद ने मंत्री पद की शपथ नहीं ली। दिलचस्प बात यह है कि मुख्तार अब्बास नकवी के राज्यसभा में फिर से निर्वाचित नहीं होने के बाद निवर्तमान मंत्रिपरिषद में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं था। हर आम चुनाव के बाद शपथ लेने वाली मंत्रिपरिषद की संरचना में कम से कम एक मुस्लिम सांसद होता था। 2004 और 2009 के मंत्रिपरिषद में क्रमशः चार और पांच मुस्लिम सांसद थे। 1999 में भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दो मुस्लिम मंत्री थे - शाहनवाज हुसैन और उमर अब्दुल्ला। 1998 में वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में नकवी राज्य मंत्री थे।

78 मुस्लिमों ने लड़ा चुनाव

इस बार के लोकसभा चुनाव 2024 में कुल 78 मुसलमान उम्मीदवार मैदान में थे और इनमें से सिर्फ 24 ही चुनाव जीत पाए। 2019 के लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने 115 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था और 26 ने जीत हासिल की थी। जबकि 2014 में 23 मुस्लिम उम्मीदवार लोकसभा पहुंच पाए थे। 2014 के मुकाबले इस बार मुसलमानों का प्रतिनिधित्व थोड़ा बेहतर कहा जा सकता है। फिर भी अब लोकसभा की कुल संख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी केवल 4.42 फीसदी है जो अब तक की दूसरी सबसे कम हिस्सेदारी है। 1980 में रिकॉर्ड 49 मुस्लिम सांसद (सदन का 9.04 फीसदी) चुने जाने के बाद, और 1984 में 45 मुस्लिम सांसद (सदन का 8.3 फीसदी) चुने जाने के बाद, लोकसभा में मुसलमानों की संख्या कभी भी 40 से अधिक नहीं हुई। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में, मुस्लिम सांसदों का अनुपात 5 फीसदी से नीचे चला गया है, जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14 फीसदी है।


सबसे ज्यादा उतारे बसपा ने

इस बार के आम चुनावों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने 35 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जो सभी पार्टियों में सबसे ज्यादा है। इनमें से आधे से ज्यादा (17) उत्तर प्रदेश में थे। इसके अलावा मध्य प्रदेश में चार, बिहार और दिल्ली में तीन-तीन, उत्तराखंड में दो और राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तेलंगाना और गुजरात में एक-एक उम्मीदवार थे।

बसपा के बाद कांग्रेस ने 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिसमें सबसे अधिक बंगाल में छह थे। वहीं ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने मुसलमान समुदाय से छह लोगों को टिकट दिया। टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में पांच और असम में एक को टिकट दिया।

समाजवादी पार्टी ने यूपी से तीन मुसलमान उम्मीदवार उतारे, जबकि चौथे को आंध्र प्रदेश से टिकट दिया। लेकिन मुरादाबाद में पार्टी ने पूर्व सांसद एसटी हसन का टिकट काटते हुए हिंदू उम्मीदवार को उनकी जगह उतारा।

भाजपा ने 2019 में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था, लेकिन इस बार उसने केरल की मलप्पुरम सीटे से डॉ अब्दुल सलाम को टिकट दिया था। लेकिन अब्दुल सलाम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के मोहम्मद बशीर से चुनाव हार गए।


मुस्लिम आबादी और प्रतिनिधित्व

1.4 अरब वाले देश भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 20 करोड़ है। धर्म के आधार पर जनसंख्या के मामले में मुस्लिम समुदाय देश में दूसरे नंबर पर है। हालांकि मुस्लिम मतदाताओं को हर चुनावी मौसम में निर्णायक कारक के रूप में देखा जाता है, लेकिन उन राज्यों में भी जहां यह आबादी का एक बड़ा प्रतिशत है, समुदाय का प्रतिनिधित्व कम है। भारत में 15 मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं। उनमें से, पश्चिम बंगाल के बहरामपुर ने 2019 में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को चुना, और इस बार तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के यूसुफ पठान, जो समुदाय के सदस्य हैं, ने जीत हासिल की। असम के बारपेटा में भी यह समुदाय प्रमुख है, जहां इस बार असम गण परिषद (एजीपी) के फणी भूषण चौधरी ने जीत हासिल की है।

विश्लेषक कहते हैं कि लोकसभा की 543 सीटों में मौजूदा मुसलमान सांसदों का प्रतिशत कम है। जानकारों का कहना है कि गैर भाजपा पार्टियां भी मुसलमानों को कम टिकट देती हैं, जबकि उन्हें और टिकट देना चाहिए था।


सिर्फ 24 मुसलमान सांसद

इस बार जो मुसलमान उम्मीदवार चुनाव जीते हैं उनमें से कुछ हैं-असम की धुबरी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार रकीबुल हसन, पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट से पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान (जिन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी को हराया), यूपी के सहारनपुर से कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद।

यूपी के कैराना से समाजवादी पार्टी की इकरा हसन ने जीत हासिल की। गाजीपुर से समाजवादी पार्टी के अफजल अंसारी ने जीत दर्ज की। रामपुर सीट से समाजवादी पार्टी के मोहिबुल्लाह, संभल से जिया उर रहमान। बिहार के कटिहार से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने जीत दर्ज की। दो निर्दलीय मुसलमान उम्मीदवारों ने भी इस चुनाव में जीत का स्वाद चखा, उनमें हैं-बारामूला से इंजीनियर राशिद और लद्दाख से मोहम्मद हनीफा।

जब मुस्लिम उम्मीदवारों को पर्याप्त टिकट न देने के बारे में बात की जाती है तो "जीतने की क्षमता" का तर्क दिया जाता है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार मीनू जैन डीडब्ल्यू से कहती हैं, "मायावती ने तो इस बार काफी मुसलमान उम्मीदवार मैदान में उतारे चाहे जो भी उनका उद्देश्य रहा होगा, बीजेपी का सवाल ही नहीं बनता है। टिकट नहीं दिए जाने के आड़े हिंदुत्व की राजनीति आती है। पिछली लोकसभा के दौरान जिस उग्रता से हिंदुत्वादी राजनीति हुई तो उन्होंने (बीजेपी) साफ तौर से बता दिया कि वो इस एजेंडे पर है।


मुसलमानों को कम टिकट क्यों

कम टिकट दिए जाने के सवाल पर जानकार कहते हैं - शायद पार्टी को जितना ज्यादा टिकट देना चाहिए था या दे सकती थी या देना चाहती थी उससे वह रुकी, जीतने की क्षमता का सवाल हो गया। ऐसा लगता है कि उन्होंने सोचा होगा कि हमें यहां से उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए। अब हालात बदल सकते हैं क्योंकि चंद्रबाबू और नीतीश का बहुत बड़ा वोटबैंक मुसलमानों का है और दोनों किसी तरह का कोई समझौता नहीं करेंगे। दोनों नेताओं के एजेंडे अलग हैं।

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