Loksabha Election 2024: नवाबों के शहर लखनऊ लोकसभा सीट पर 1991 से लहरा रहा भगवा, जानें कैसी सियासी बिसात

Lucknow Loksabha Election Seat Details: यहां के वर्तमान सांसद देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भाजपा ने लगातार तीसरी बार उम्मीदवार बनाया है।

Written By :  Sandip Kumar Mishra
Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2024-05-15 11:08 GMT

Lok Sabha Election 2024: यूपी की लखनऊ लोकसभा सीट देश की सबसे चर्चित सीटों में शामिल रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लगातार पांच बार यहां से सांसद रहे हैं। उनके समय से ही इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है। यहां के वर्तमान सांसद देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं। भाजपा ने लगातार तीसरी बार राजनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जबकि सपा ने इस बार रविदास मेहरोत्रा पर दांव लगाया है। वहीं बसपा ने अपने कोर वोटर के साथ अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए सरवर मलिक को चुनावी रण में उतारा है।

इस बार यहां लड़ाई लगातार आठ बार से जीत हासिल कर रही भाजपा को अपना गढ़ बचाने की है और राजनाथ सिंह को अपने खुद की जीत की हैट्रिक लगाने की है। वहीं विपक्षी खेमा भाजपा के मजबूत किला को तोड़ने की तैयारी कर रहा है। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के राजनाथ सिंह ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को 3,47,302 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में राजनाथ सिंह को 6,33,026 और पूनम सिन्हा को 2,85,724 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम को 1,80,011 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान इस सीट पर पहली बार राजनाथ सिंह उतरे और कांग्रेस के दिग्गज नेत्री रहे रीता बहुगुणा जोशी को 2,72,749 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में राजनाथ सिंह को 5,61,106 और रीता बहुगुणा जोशी को 2,88,357 वोट मिले थे। जबकि बसपा के नकुल दुबे को 64,449 और सपा के अभिषेक मिश्रा को 56,771 वोट मिले थे। वहीं आम आदमी पार्टी के सैयद जावेद अहमद जाफ़री को 41,429 वोट मिले थे।




उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022



Lucknow Loksabha Chunav 2014


यहां जानें लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के बारे में

  • लखनऊ लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 35 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
  • इस लोकसभा क्षेत्र का गठन लखनऊ जिले के लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
  • लखनऊ लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 3 पर भाजपा और 2 पर सपा का कब्जा है।
  • यहां कुल 20,40,367 मतदाता हैं। जिनमें से 9,43,815 पुरुष और 10,96,455 महिला मतदाता हैं।
  • लखनऊ लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 11,16,445 यानी 54.72 प्रतिशत मतदान हुआ था।

लखनऊ लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

लखनऊ शहर की खासियत के बारे में यहां के मशहूर शायर अजीज लखनवी ने लिखा है-‘वो आबो-हवा, वो सुकून, कहीं और नहीं मिलता। मिलते हैं बहुत शहर, मगर लखनऊ-सा नहीं मिलता’। वाकई इस शहर के आबो-हवा और सुकून के चर्चे तो दुनियाभर में मशहूर हैं। इसी के लिए लोग यहां खिंचे चले आते हैं। शहर की तरह यहां की सियासत का भी एक अलग आकर्षण रहा है। खांटी नेताओं से लेकर फिल्म स्टार, कवि, शायर और राजघरानों के लोगों ने लखनऊ लोकसभा सीट से हाथ आजमाया है। लेकिन यहां की जनता का मिजाज कुछ जुदा ही रहा। आनंद नारायण मुल्ला जैसे शायर को तो संसद भेज दिया। लेकिन फिल्म स्टार और राजा-महाराजा रास नहीं आए। यहां 6 बार कांग्रेस जीत चुकी है। उसके बाद 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भाजपा की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह अब तक ‘अटल’ है। तब से लगतार आठ बार भाजपा ने जीत दर्ज की है।

विजय लक्ष्मी पंडित बनीं थीं पहली सांसद

आजादी के बाद 1952 में जब पहला चुनाव हुआ तो उस वक्त लखनऊ जिला- बाराबंकी जिला और लखनऊ जिला मध्य नाम से दो सीटें थीं। पहली बार लखनऊ जिला मध्य सीट से कांग्रेस की विजय लक्ष्मी पंडित लोकसभा चुनाव जीतीं। विजय लक्ष्मी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। वहीं, लखनऊ जिला- बाराबंकी जिला सीट से कांग्रेस की गंगा देवी को जीत मिली थी। विजय लक्ष्मी पंडित कुछ ही महीने बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की अध्यक्ष चुन ली गई। यह सीट खाली हो गई। 1955 में हुए उपचुनाव में भी नेहरू परिवार से ही श्योराजवती नेहरू सांसद बन गईं। श्योराजवती की शादी डॉक्टर किशन लाल नेहरू से हुई थी। उसके बाद 1957 में हुए दूसरी बार लोकसभा चुनाव में लखनऊ लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प रहा। भारतीय जनसंघ के टिकट पर अटल बिहारी वाजपेयी उतरे तो कांग्रेस ने पुलिन बिहारी बनर्जी को उम्मीदवार बनाया। नतीजे सामने आए तो अटल को 12,485 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। फिर 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस ने लखनऊ सीट बरकरार रखी। यहां एक बार फिर जन संघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को हार का सामना करना पड़ा। इस बार कांग्रेस के बीके धवन ने अटल को 30,017 वोट से हराया।

निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण मुल्ला 1967 में जीते चुनाव

कांग्रेस की जीत के इस सिलिसले को पहली बार 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण मुल्ला ने तोड़ा। मुल्ला लखनऊ की सीट का ऐसा इतिहास हैं, जिसे कोई आज तक नहीं दोहरा सका है। उस समय कांग्रेस की लहर थी। कांग्रेस के उम्मीदवार वीआर मोहन ने खूब पैसा खर्च किया और कई फिल्मी हस्तियां उनके लिए प्रचार करने आईं। उसके बावजूद निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण मुल्ला ने कांग्रेस के वीआर मोहन को 20,972 वोट से हरा दिया। राजनीति में आने से पहले आनंद नारायण एक वकील और इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज की जिम्मेदारी निभा चुके थे। आनंद नारायण मुल्ला के पिता पंडित जगत नारायण मुल्ला थे।

कश्मीरी पंडित परिवार से ताल्कुल रखने वाले पंडित जगत नारायण मुल्ला आजादी से पहले उत्तर प्रदेश जिसे उस वक्त यूनाइटेड प्रोविंस कहा जाता था के एक प्रमुख वकील थे। उन्होंने कई मामलों में उस वक्त की अंग्रेज सरकार का भी पक्ष रखा था। मशहूर काकोरी कांड में भी जगत नारायण मुल्ला अंग्रेजों के वकील थे। मोती लाल नेहरू के करीबी जगत नारायण की बेटी श्योराजवती की शादी नेहरू परिवार से संबंध रखने वाले किशन लाल नेहरू से हुई थी। वही, श्योराजवती जो 1954 के उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट जीतीं थीं। उन्ही श्योराजवती के भाई आनंद नारायण लखनऊ सीट पर कांग्रेस की पहली हार का कारण बने थे। आनंद नारायण उस दौर के चर्चित उर्दू शायर थे। उन्होंने कई किताबें लिखीं थीं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आनंद नारायण बाद में कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा भी गए।

शीला कौल ने लखनऊ की सीट पर कांग्रेस को विजय दिलवाई

कांग्रेस ने 1971 में फिर वापसी की। गांधी-नेहरू परिवार से संबंध रखने वाली शीला कौल को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया। शीला कौल के पति कमला नेहरू के भाई थे। यानी, शीला कौल इंदिरा गांधी की मामी थीं। 1971 में शीला ने जनसंघ के पुरषोत्तम दास कपूर को 1,19,201 वोट से हराया था। ये वही शीला कौल थीं जो बाद में रायबरेली से भी जीतकर लोकसभा पहुंचीं थीं। इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव में यहां से भारतीय लोकदल के नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस की शीला कौल को 1,65,345 वोट से हरा दिया। हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा जोशी लखनऊ जिले की लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से 2012 में कांग्रेस और 2017 में भाजपा के टिकट पर जीती थीं। फिर रीता इलहाबाद लोकसभा सीट से सांसद रहीं। 

शीला कौल का लखनऊ से रायबरेली हुआ ट्रांसफर

कांग्रेस ने 1980 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से वापसी कर ली। कांग्रेस उम्मीदवार शीला कौल ने जनता पार्टी के महमूद बट को 30,382 वोट से हराया। 1984 के चुनाव में भी कांग्रेस की तरफ से उतरीं शीला कौल जीतीं। इस बार उन्होंने लोक दल के उम्मीदवार मोहम्मद यूनुस सलीम को 1,22,120 वोट से हराकर जीत दर्ज की। लेकिन 1989 के चुनाव में कांग्रेस के हाथ से लखनऊ सीट निकल गई। इस चुनाव में जनता दल के टिकट पर शिक्षक नेता रहे मांधाता सिंह ने जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के दाऊजी को 15,296 को वोट से हराया। ये वही चुनाव था जब कांग्रेस ने शीला कौल को लखनऊ की जगह रायबरेली से मैदान में उतारा था। शीला कौल 1989 में रायबरेली से भी जीतने में सफल रहीं थीं। इसके बाद 1991 में भी शीला रायबरेली से जीतकर संसद पहुंचीं थीं।

लखनऊ लोकसभा सीट पर 1996 से शुरू हुआ अटल का दौर

लखनऊ सीट पर 1991 के लोकसभा चुनाव का मुकाबला सुर्खियों में रहा। इस बार के चुनावी रण में भाजपा दस्तक देती है और चेहरे के रूप में पेश करती है अटल बिहारी वाजपेयी को। लखनऊ की सियासत में 29 साल बाद अटल वापसी करते हैं। इससे पहले वह 1957 और 1962 में जनसंघ की टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके होते हैं। तब दोनों बार अटल को हार का सामना करना पड़ा था। 1991 के लोकसभा चुनाव में दिग्गज भाजपा नेता ने अपनी पिछली दो हार का बदला ले लिया। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार रंजीत सिंह को 1,17,303 वोट से हराया। इसके बाद उन्होंने 1996, 1998, 1999 और 2004 का चुनाव जीतकर चौका लगा दिया। इतना ही नहीं, वह भाजपा के लिए ऐसी जमीन तैयार करके गए कि आज तक कोई दूसरा यहां अपनी जगह नहीं बना सका।

लखनऊ सीट पर 1996 का चुनाव का मुकाबला भी सुर्खियों में रहा। भाजपा के तरफ से एक बार फिर से तत्कालीन सांसद अटल बिहारी वाजपेयी तो सपा ने अभिनेता राज बब्बर चुनाव में उतरते हैं। नतीजे एक बार फिर से भाजपा के पक्ष में होते हैं। इस चुनाव में अटल ने राज बब्बर को 1,17,303 वोट से हराया। इस जीत के साथ 16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं। हालांकि, महज 13 दिनों में ही उनकी सरकार गिर जाती है। दो साल के भीतर देश को दो और प्रधानमंत्री मिलते हैं, लेकिन लोकसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाता। 1998 आते-आते नए सिरे से चुनाव की नौबत आ जाती है। 1998 के चुनाव में भी लखनऊ सीट से भाजपा के सबसे बड़े चेहरे और तत्कालीन सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ही उतरते हैं। वाजपेयी ने सपा की तरफ से उतरे मुजफ्फर अली को 2,16,263 वोट के विशाल अंतर से मात दी।

चुनाव के बाद एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं। इस बार 13 महीने तक सरकार चलाते हैं। 13 महीने बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर जाती है। नए सिरे से चुनाव होते हैं। 1999 में हुए चुनाव में भी लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी ही भाजपा के उम्मीदवार होते हैं। इस बार उन्होंने कांग्रेस के डॉ. कर्ण सिंह को 1,23,624 वोट से हराया। इस जीत के बाद 13 अक्तूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेते हैं। 2004 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ सीट से लगातार पांचवीं बार जीतते हैं। इस चुनाव में उन्होंने सपा की मधु गुप्ता को 2,18,375 वोट से हराया था। लेकिन 2009 के चुनाव में लखनऊ से भाजपा ने वरिष्ठ नेता लालजी टंडन को उतारा। इस चुनाव में टंडन ने कांग्रेस की तरफ से उतरीं रीता बहुगुणा जोशी को 40,901 वोट से शिकस्त देकर इस सीट पर भाजपा की लगातार छठी जीत दिलवाई।

लखनऊ लोकसभा सीट के चुनावी मुद्दे 

प्रदेश की राजधानी होने के नाते लखनऊ के विकास कार्यों की चर्चा हर सरकार में होती है। देश और प्रदेश में जो भी सरकार रही, उसने यहां कुछ न कुछ काम करवाए हैं। सांसद की भी कोशिश रहती है कि वह अपने कार्यकाल में कुछ ऐसा कर सके, जिसकी वह चुनाव में चर्चा कर सके। इनमें एक्सप्रेस वे, मेट्रो, पार्क, रिंग रोड, अस्पताल जैसे मुद्दे चुनावी भाषणों का हिस्सा भी बनते हैं। शहर के बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो आज भी लोग दिक्कतों से जूझ रहे हैं। बड़े महानगरों की तरह एक बारिश में ही स्मार्ट सिटी की हकीकत सामने आ जाती है। ड्रेनेज के अलावा ट्रैफिक, पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी समस्याएं हैं। इन समस्याओं से लोग साल भर जूझते हैं लेकिन चुनावी मुद्दे कभी नहीं बन पाते। इतना ही नहीं यहां के चिकन कारीगरी देश और दुनिया में मशहूर है लेकिन इस परंपरागत काम को करने वाले कारीगरों का दर्द भी सियासी नारों में दबकर रह जाता है।

लखनऊ लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण

लखनऊ लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सामान्य और मुस्लिम वर्ग के मतदाता हैं। जिसमें ब्राह्मणों की संख्या अधिक है। इसके बाद मुस्लिम आबादी है, जिसमें शिया की संख्या ज्यादा है। फिर वैश्य समाज के मतदाता आते हैं। इस सीट पर दलित और ओबीसी मतदाताओं की संख्या सामान्य और मुस्लिम वर्ग की तुलना में बेहद कम है।

लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से विजय लक्ष्मी पंडित 1952 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • कांग्रेस से श्योराजवती नेहरू 1955 में लोकसभा उपचुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • कांग्रेस से पुलिन बिहारी बनर्जी 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से बीके धवन 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • निर्दल आनन्द नारायण मुल्ला 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से शीला कौल 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • जनता पार्टी से हेमवती नन्दन बहुगुणा 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से शीला कौल 1980 और 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • जनता दल से मानधाता सिंह 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से अटल बिहारी वाजपेयी 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से लाल जी टंडन 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से राजनाथ सिंह 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
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