Election 2024: डायमंड हार्बर सीट पर हैट्रिक लगाने उतरे हैं अभिषेक बनर्जी, भतीजे की जीत के लिए ममता ने लगा रखी है पूरी ताकत

Election 2024: 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में डायमंड हार्बर सीट से जीत हासिल करने के बाद अभिषेक बनर्जी इस बार हैट्रिक लगाने के लिए इस सीट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-05-30 07:02 GMT

ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी  (photo: social media ) 

Lok Sabha Election 2024: पश्चिम बंगाल की डायमंड हार्बर सीट को भी देश की चर्चित सीटों में गिना जा रहा है क्योंकि इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी चुनाव मैदान में उतरे हैं। ममता बनर्जी के बाद अभिषेक को तृणमूल कांग्रेस का सबसे ताकतवर नेता माना जाता रहा है और उन्हें ममता बनर्जी के सियासी उत्तराधिकारी के रूप में भी देखा जाता रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में डायमंड हार्बर सीट से जीत हासिल करने के बाद अभिषेक बनर्जी इस बार हैट्रिक लगाने के लिए इस सीट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। भतीजे की चुनावी जीत के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरी ताकत लगा रखी है।

डायमंड हार्बर सीट पर आखिरी चरण में एक जून को मतदान होने वाला है। भाजपा ने इस सीट पर काफी विलंब से अपना प्रत्याशी घोषित किया। पार्टी ने इस सीट पर अभिजीत दास उर्फ बॉबी को चुनाव मैदान में उतारा है जबकि माकपा की ओर से स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रतीक उर रहमान अभिषेक बनर्जी को चुनौती दे रहे हैं। भाजपा इस सीट पर कभी चुनाव नहीं जीत सकी है। हालांकि पिछले चुनाव में पार्टी प्रत्याशी निलांजल रॉय दूसरे नंबर पर रहे थे।

भाजपा देना चाहती है टीएमसी को झटका

ममता के भतीजे अभिषेक को हराने के लिए डायमंड हार्बर सीट पर भाजपा ने भी इस बार पूरी ताकत झोंक रखी है। अभिषेक बनर्जी विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक टीएमसी की सारी रणनीति का ताना-बाना बुनते हैं। इसलिए भाजपा उन्हें हराकर टीएमसी को बड़ा झटका देना चाहती है।

दूसरी ओर डायमंड हार्बर लोकसभा क्षेत्र में अभिषेक बनर्जी की मजबूत पकड़ को देखते हुए यह काम आसान नहीं माना जा रहा है। अभिषेक बनर्जी अगर लगातार तीसरी बार इस लोकसभा सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे तो उन्हें ममता बनर्जी का राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाए जाने के दावे पर मुहर लग जाएगी।


2019 में बढ़ गया था अभिषेक की जीत का मार्जिन

अभिषेक बनर्जी इस बार पिछले दो लोकसभा चुनावों से ज्यादा बड़ी जीत हासिल करना चाहते हैं। अपनी रैलियों के दौरान वे लगातार इस बात पर विशेष जोर दे रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में अभिषेक बनर्जी ने इस लोकसभा सीट पर 70,000 से अधिक मतों से जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उनका जीत का मार्जिन बढ़ गया था।

उन्होंने भाजपा उम्मीदवार निलांजल रॉय को करीब 3 लाख 20 हजार वोटों से शिकस्त दी थी। इस बार वे अपना जीत का मार्जिन बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।


2009 से सीट पर तृणमूल का कब्जा

यदि पहले के चुनावों को देखा जाए तो पूर्व में डायमंड हार्बर सीट कांग्रेस और माकपा का गढ़ मानी जाती थी। इस सीट पर इन दोनों राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों ने कई बार जीत हासिल की 2009 में पहली बार इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस को जीत हासिल हुई।

2009 में टीएमसी के प्रत्याशी सोमेंद्र नाथ मित्रा चुनाव जीतने में कामयाब रहे। उसके बाद से लगातार टीएमसी इस सीट पर जीत हासिल करती रही है। 2014 और 2019 में अभिषेक बनर्जी ने इस सीट पर अपनी ताकत दिखाई थी।


टीएमसी की मजबूती का यह भी कारण

इस लोकसभा क्षेत्र में टीएमसी की मजबूती को विधानसभा की सीटों के लिहाज से भी समझा जा सकता है। डायमंड हार्बर लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की सात सीटें हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर टीएमसी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी।

यही कारण है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा और माकपा दोनों दलों की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही थी जबकि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी निलांजल रॉय दूसरे नंबर पर रहे थे।


अभिषेक और टीएमसी पर गुंडाराज का आरोप

डायमंड हार्बर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा और माकपा दोनों दलों की ओर से अभिषेक बनर्जी और टीएमसी पर गुंडाराज चलाने का बड़ा आरोप लगाया जा रहा है। राम मंदिर, महंगाई,सीएए और बेरोजगारी जैसे मुद्दे यहां किनारे हो गए हैं जबकि टीएमसी की हिंसा को लेकर घेराबंदी की जा रही है। वैसे हिंसा और गुंडाराज का आरोप पूरी तरह निराधार नहीं है।

लंबे समय से इस लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक हिंसा, हत्या, आगजनी, तोड़फोड़ आदि का असर दिखता रहा है। यही कारण है कि इन मुद्दों को इस मुद्दे को लेकर भाजपा टीएमसी पर हमलावर है।

भाजपा ने तो इस लोकसभा क्षेत्र में बाकायदा नारा दे रखा है कि अभिषेक बनर्जी को हटाओ, डायमंड हार्बर को बचाओ। माकपा ने भी टीएमसी की गुंडागर्दी और हिंसा को बड़ा मुद्दा बना रखा है। वैसे क्षेत्र की जनता तमाम बुनियादी समस्याओं से जूझ रही है मगर इन मुद्दों की गूंज मौजूदा लोकसभा चुनाव में ज्यादा सुनाई नहीं दे रही है।


टीएमसी वाले नहीं होने देते किसी का प्रचार

भाजपा प्रत्याशी अभिजीत बनर्जी का आरोप है के अभिषेक बनर्जी यहां किसी भी पार्टी का प्रचार नहीं होने देते। दूसरे पार्टी के बैनर-पोस्टर और झंडे फाड़ दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि डीएम और एसपी से इस संबंध में शिकायत भी की गई मगर उनकी ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। जिला प्रशासन पूरी तरह अभिषेक बनर्जी से मिला हुआ है।

माकपा प्रत्याशी प्रतीक उर रहमान का भी कहना है कि अभिषेक बनर्जी के पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में गुंडागर्दी का बोलबाला है। यहां पंचायत और म्युनिसिपैलिटी तक का चुनाव नहीं होने दिया जाता। अभिषेक बनर्जी के खिलाफ आवाज उठाने वाले को पुलिस के जरिए परेशान किया जाता है और टीएमसी के गुंडे उसके पीछे पड़ जाते हैं। उनका कहना है कि डायमंड हार्बर विकास का मॉडल नहीं बल्कि हिंसा की प्रयोगशाला है।


मुसलमानों के समर्थन से टीएमसी मजबूत

डायमंड हार्बर लोकसभा क्षेत्र में टीएमसी की मजबूती का एक बड़ा कारण मुसलमानों का मजबूत समर्थन भी है। यदि यहां के जातीय समीकरण को देखा जाए तो यहां 55 फीसदी हिंदू और 35 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव से ही मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन टीएमसी को हासिल होता रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 21 फ़ीसदी हैं।

कुछ स्थानीय लोग भी क्षेत्र में गुंडागर्दी और हिंसा की बात तो कहते रहे हैं मगर पुलिस और प्रशासन के डर के कारण वे खुलकर सामने नहीं आते। इस बार के लोकसभा चुनाव में टीएमसी की घेराबंदी के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगाई है जबकि दूसरी ओर अभिषेक बनर्जी अपनी लगातार तीसरी जीत के लिए आश्वस्त दिख रहे हैं। ऐसे में हर किसी को अभी चुनाव क्षेत्र के नतीजे का इंतजार है।

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