Loksabha Election 2024: फूलपुर लोकसभा सीट रही नेहरू जी की कर्मभूमि, अब भाजपा और सपा में टक्कर!

Phulpur Loksabha Election: फूलपुर देश के पहले प्रधानमंत्री पं नेहरू की कर्मभूमि रही है। इस सीट पर कई बड़े चेहरों के दामन में जीत का फूल तो कई के गले में हार का कांटा भी नसीब हुआ है।

Written By :  Sandip Kumar Mishra
Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2024-05-09 05:07 GMT

Lok Sabha Election 2024: इलाहाबाद यानी की प्रयागराज की दूसरी लोकसभा सीट फूलपुर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कर्मभूमि रही है। फूलपुर लोकसभा सीट पर कई बड़े चेहरों के दामन में जीत का फूल तो कई के गले में हार का कांटा भी नसीब हुआ है। फूलपुर के सियासी आंगन में राजनीति के हर रंग खिले। यहां बड़े नाम, लोकप्रियता, विचारक, ग्लैमर, अपराध व राजनीति का गठजोड़ और सत्ता का टूटता अहंकार भी देखने को मिला है। फिलहाल इस सीट पर 2014 से भाजपा का कब्जा है।

भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाने के लिए वर्तमान सांसद केसरी देवी पटेल का टिकट काटकर फूलपुर विधानसभा सीट के विधायक प्रवीण पटेल पर दांव लगाया है। जबकि सपा ने अमरनाथ मौर्या को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने जगन्नाथ पाल को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल रही है। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा की केशरी देवी पटेल ने सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे पंधारी यादव को 1,71,968 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में केशरी देवी पटेल को 5,44,701 और पंधारी यादव को 3,72,733 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के पंकज पटेल को 32,761 वोट मिले थे। बता दें कि इस सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने वर्तमान सांसद केशव प्रसाद मौर्य के करीबी कौशलेंद्र सिंह पटेल को उतारा था। इस चुनाव में सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने उनको 59,460 वोट से हराकर जीत हासिल की थी।

इस चुनाव में कौशलेंद्र सिंह पटेल को 2,83,462 और नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल को 3,42,922 वोट मिले थे। मैदान में समीकरण बदलने के लिए माफिया अतीक अहमद भी उतरा, लेकिन उसे महज 48,094 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के मनीष मिश्रा को 19,353 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य ने सपा के धर्मराज सिंह पटेल को 3,08,308 वोट से हराकर पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया था। इस चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य को 5,03,564 और धर्मराज सिंह पटेल को 1,95,256 वोट मिले थे। जबकि बसपा के कपिल मुनि करवरिया को 1,63,710 और कांग्रेस के टिकट पर सियासी रण में उतरे मशहूर क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को महज 58,127 वोट मिले थे। 


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यहां जानें फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के बारे में

  • फूलपुर लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 51 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1951 में अस्तित्व में आया था।
  • इस लोकसभा क्षेत्र का गठन प्रयागराज जिले के प्रयागराज पश्चिम, प्रयागराज उत्तर, फाफामऊ, सोरांव और फूलपुर विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
  • फूलपुर लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 4 पर भाजपा और एक पर सपा का कब्जा है।
  • यहां कुल 20,10,477 मतदाता हैं। जिनमें से 9,07,850 पुरुष और 11,02,413 महिला मतदाता हैं।
  • फूलपुर लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 9,79,077 यानी 48.70 प्रतिशत मतदान हुआ था। 

फूलपुर लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

आजाद भारत की लोकसभा चुनाव में जवाहरलाल नेहरू ने अपने पैतृक जिले संगम नगरी से सटे फूलपुर को चुनावी कर्मक्षेत्र बनाया। तब यह सीट इलाहाबाद पूर्व कम जौनपुर पश्चिम के नाम से थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने गोरक्षा आंदोलन की आवाज बुलंद करने वाले प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने पर्चा भरा, लेकिन बेअसर साबित हुए। 1957 में फूलपुर के अलग सीट के तौर पर अस्तित्व में आने के बाद भी नेहरू ने यहीं से नुमाइंदगी की। 1962 में उनके सामने समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से पर्चा भर दिया। दो बड़े नेताओं की टक्कर ने सुर्खियां तो खूब बटोरीं। लेकिन नेहरू की हैट्रिक नहीं रुकी। यह चुनाव दिलचस्प रहा ।लोहिया इक्के पर लाउडस्पीकर बांधकर प्रचार करते। चुनाव में यह लगने लगा कि इस बार नेहरू के लिए राह आसान नहीं होगी।

देश के प्रधानमंत्री को सीधी टक्कर दे रहे लोहिया के समर्थन में बड़े व चर्चित नेता इलाहाबाद पहुंचने लगे। मधु दंडवते, राजनारायण, जार्ज फर्नांडीज, रामानंद तिवारी व कर्पूरी ठाकुर जैसे देश के सर्वश्रेष्ठ वक्ता व राजनीतिज्ञ फूलपुर में नेहरू की हार व लोहिया की जीत की गुणा-गणित सेट करने लगे। लोहिया के समर्थन में जनसभा और नुक्कड़ सभाएं गांव-गांव होने लगीं। फूलपुर लोकसभा में लोहिया का नाम गूंजने लगा। माहौल को भुनाने में लोहिया ने कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ी। मतदान का दिन आया और खूब वोट पड़े। गिनती शुरू हुई तो 27 बूथों पर लोहिया ने एकतरफा बढ़त हासिल कर ली। उम्मीद जगी की फूलपुर के इतिहास में समाजवाद का परचम लहराएगा। लेकिन यह सिर्फ अंदाजा ही साबित हुआ। 27 बूथों के अलावा नेहरू ने हर बार की तरह एकतरफा जीत दर्ज की।

जब विजयलक्ष्मी ने अपने प्रतिद्वंद्वी जनेश्वर मिश्र को जेल से छुड़वाया

नेहरू के निधन के चलते 1964 में फूलपुर में उपचुनाव हुआ। कांग्रेस ने नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को उम्मीदवार बनाया और वह जीत गईं। 1967 के आम चुनाव में उन्होंने फिर उम्मीदवारी की। इस बार विपक्ष ने उनके सामने एक युवा छात्रनेता को उतार दिया। नाम था जनेश्वर मिश्र, जो बाद में सियासत में छोटे लोहिया के नाम से जाने गए। जनेश्वर इलाहाबाद विवि से जुड़े एक छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे और वहीं से उन्होंने पर्चा भरा। विजयलक्ष्मी जहां प्रचार में जातीं, उनसे पहला सवाल यही होता कि आप प्रचार कर रही हैं, आपका प्रतिद्वंद्वी जेल में है, उसे यह मौका क्यों नहीं? छात्रों का समूह इसे और हवा दे रहा था।

आखिरकार विजयलक्ष्मी को सरकार से बात कर जनेश्वर को रिहा करवाना पड़ा। चुनाव में नारे लगे ‘जेल के ताले टूट गए, जनेश्वर मिश्र छूट गए।’हालांकि, वोटों की लड़ाई में फूलपुर ने साथ नेहरू की विरासत को ही दिया। लेकिन 1967 की मेहनत का फायदा जनेश्वर मिश्र को दो साल बाद मिला। विजयलक्ष्मी के संयुक्त राष्ट्र में जाने के कारण 1969 में उपचुनाव हुआ। कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी केशव देव मालवीय को उतारा। लेकिन इस बार जीत जनेश्वर को मिली। विजयलक्ष्मी के बाद नेहरू परिवार ने फूलपुर से दूरी बना ली।

नेहरू के बाद राम पूजन पटेल ने लगाया जीत का हैट्रिक

नेहरू परिवार के जाने के बाद से ही कांग्रेस की जमीन फूलपुर में दरकने लगी। 1971 में कांग्रेस से विश्वनाथ प्रताप सिंह जनेश्वर पर भारी पड़े। लेकिन 1977 में इमजरेंसी की लहर में कांग्रेस यहां भी किनारे लग गई। हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा भारतीय लोकदल से सांसद बनीं। 1980 के चुनाव में कमला ने कांग्रेस का दामन थाम लिया तो फूलपुर ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर जनता पार्टी सेक्युलर के बीडी सिंह को चुन लिया। 1984 के चुनाव में इंदिरा की हत्या के चलते मिली सहानुभूति ने कांग्रेस की वापसी करवाई। लेकिन इसके बाद यहां ‘हाथ’ को जनता का साथ नहीं मिला। कांग्रेस को जीत दिलवाने वाले रामपूजन पटेल ने 1989 और 1991 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की और नेहरू के बाद यहां हैट्रिक लगाने वाले दूसरे चेहरे बने।

फूलपुर लोकसभा सीट पर कांशीराम को मिली हार और अतीक पहुंचा संसद 

फूलपुर के सियासी अखाड़े की रंगत 1996 में अलग ही रही। 1993 में यूपी में एक साथ चुनाव लड़े मुलायम और कांशीराम अलग हो चुके थे। मुलायम ने यहां कांशीराम के ही सियासी चेले रहे जंगबहादुर पटेल को उम्मीदवार बना दिया। इस दांव से बिफरे कांशीराम भी फूलपुर के अखाड़े में कूद गए। बसपा से अलग होकर अपना सियासी अस्तित्व बनाने में जुटे कुर्मी नेता सोनेलाल पटेल ने भी इस कुर्मी बहुल सीट से किस्मत आजमाने का फैसला किया। लेकिन, चुनाव सबसे अधिक चर्चा में रहा दाऊद के करीबी रोमेश शर्मा की उम्मीदवारी के चलते। इलाहाबाद से निकलकर मुंबई और दिल्ली में सिनेमा, सियासत और अपराध में पहचान बनाने वाले रोमेश ने यहां अकूत धन खर्च किया। हेलिकॉप्टर से प्रचार किया। लेकिन लड़ाई गुरु और चेले के ही बीच हुई, जिसमें चेला भारी पड़ा। सपा को यहां लगातार चार बार जीत मिली। लेकिन चेहरे बदलते रहे। 2004 में सपा ने माफिया अतीक अहमद को टिकट दिया और जनता ने अतीक को संसद भेज दिया। 2009 में एक और बाहुबली कपिल मुनि करवरिया पर जनता रीझ गई और पहली बार बसपा का खाता खुला। बता दें कि फूलपुर लोकसभा सीट पर पिछले नौ चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में भी नहीं रहे। 1991 से 2019 के बीच कुल नौ लोकसभा चुनाव हुए। इनमें कांग्रेस के उम्मीदवारों को ढाई से छह फीसदी ही वोट मिले हैं। 2004 में तो मात्र 1.50 प्रतिशत वोट मिले थे।

फूलपुर लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण

फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां तीन लाख से अधिक कुर्मी मतदाता हैं। यादव मतदाताओं की संख्या भी दो लाख से अधिक है। वहीं, पिछड़ी जाति के अन्य मतदाताओं की संख्या तीन लाख से अधिक है। करीब ढाई लाख मुस्लिम व ढाई लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता भी हैं। अगड़ी जातियों में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब दो लाख है। शहर की दोनों विधानसभा क्षेत्रों शहर उत्तरी एवं पश्चिमी में कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी दो लाख से अधिक है।

फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से जवाहर लाल नेहरू 1952, 1957 और 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से विजया लक्ष्मी पंडित 1964 और 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जनेश्वर मिश्र 1969 में लोकसभा उपचुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से विश्वनाथ प्रताप सिंह 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से कमला बहुगुणा 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • जनता पार्टी (सेक्युलर) से बीडी सिंह 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से राम पूजन पटेल 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता दल से राम पूजन पटेल 1989 और 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से जंगबहादुर पटेल 1996 और 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से धर्मराज पटेल 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से अतीक अहमद 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से कपिल मुनि करवरिया 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से केशव प्रसाद मौर्य 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से नागेन्द्र प्रताप पटेल 2018 में लोकसभा उपचुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से केशरी देवी पटेल 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
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