Loksabha Election 2024: प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर कभी सवर्णों नेताओं का था दबदबा, जानें समीकरण
Pratapgarh Seat Parliament Constituency Details: भाजपा ने वर्तमान सांसद संगमलाल गुप्ता को पर दूसरी बार दांव लगाया है। जबकि सपा ने डा. एसपी सिंह पटेल को चुनावी रण में उतारा है।
Lok Sabha Election 2024: प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर सवर्णों का ही दबदबा रहा है। वंशवाद की सियासत के साथ यहां लोकसभा के चुनाव में सवर्णों का सिक्का चला। सबसे ज्यादा यहां राजघरानों से सांसद चुने गए। शुरुआत में दो बार यहां से ब्राह्मण सांसद चुने गए। अब तक सिर्फ दो बार गैर सवर्ण यहां से सांसद बन सका है। कभी जिले की राजनीति में मजबूत पकड़ को देखते हुए इस सीट पर सवर्णों पर ही दांव लगाने वाली सभी पार्टियां अब गैर सवर्ण चेहरों को अपना ढ़ाल बना रहीं हैं। भाजपा ने वर्तमान सांसद संगमलाल गुप्ता को पर दूसरी बार दांव लगाया है। जबकि सपा ने डा. एसपी सिंह पटेल को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने कोर मतदाताओं के साथ सवर्णों को रिझाने के लिए प्रथमेश मिश्र को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है।
Pratapgarh Lok Sabha Chunav 2019 Details
Pratapgarh Vidhan Sabha Chunav 2022 Details
Pratapgarh Lok Sabha Chunav 2014 Details
अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के संगम लाल गुप्ता ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार अशोक त्रिपाठी को 1,17,752 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में संगम लाल गुप्ता को 4,36,291 और अशोक त्रिपाठी को 3,18,539 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार राजकुमारी रत्ना सिंह को 77,096 और जनसत्ता दल (एल) के अक्षय प्रताप सिंह चौथे 46,963 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान एनडीए की सहयोगी अपना दल के उम्मीदवार कुंवर हरिवंश सिंह ने बसपा के आसिफ निजामुद्दीन सिद्दीकी को 1,68,222 वोट से हराकर यह सीट भाजपा के झोली में डाला था। इस चुनाव में कुंवर हरिवंश सिंह को 3,75,789 और आसिफ निजामुद्दीन सिद्दीकी को 2,07,567 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार राजकुमारी रत्ना सिंह को 1,38,620 और सपा के प्रमोद सिंह पटेल को 1,20,107 वोट मिले थे।
यहां जानें प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र के बारे में
- प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 39 है।
- यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
- इस लोकसभा क्षेत्र का गठन प्रतापगढ़ जिले के रामपुर खास, विश्वनाथगंज, पट्टी, रानीगंज व प्रतापगढ़ विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
- प्रतापगढ़ लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 2 पर सपा और एक-एक सीट पर अपना दल (सोनेलाल), भाजपा और कांग्रेस का कब्जा है।
- यहां कुल 17,08,759 मतदाता हैं। जिनमें से 7,92,190 पुरुष और 9,16,540 महिला मतदाता हैं।
- प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 9,15,259 यानी 53.56 प्रतिशत मतदान हुआ था।
प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास
प्रयागराज मंडल में पड़ने वाले प्रतापगढ़ जिला अपने आंवले की बंपर पैदावार के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यह शहर स्वामी करपात्री की जन्म स्थली और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। प्रतापगढ़ जिले के रूप में 1858 में अस्तित्व में आया था। गंगा, सई और बकुलाही यहां बहने वाली प्रमुख नदियों में शामिल हैं। आजादी के बाद 1952 और 1957 में हुए चुनाव में इस सीट पर लगातार कांग्रेस के टिकट पर मुनीश्वरदत्त उपाध्याय ने जीत दर्ज की। इसके बाद कांग्रेस को मात देने के लिए जनसंघ ने जिले में अपना पैर फैलाया। उसने भी क्षत्रिय राजा अजीत प्रताप सिंह को मैदान में उतारा। 1962 में जनसंघ के टिकट पर जिले में बड़ा प्रभाव रखने वाले राजा अजीत प्रताप सिंह ने कांग्रेस का विजय रथ रोक दिया।
हालांकि वह कांग्रेस उम्मीदवार पर 23,684 वोटों से ही जीत दर्ज कर सके थे। लेकिन 1967, 1971 में हुए चुनाव फिर कांग्रेस ने वापसी की और राजा दिनेश सिंह सांसद बने। 1977 के चुनाव में पूरे देश के साथ जिले में भी कांग्रेस के विरोध में लहर चल रही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लगाने से जनता उन्हें कुर्सी से बेदखल करने का फैसला कर चुकी थी। इस चुनाव में लोगों ने कांग्रेस के विरोध में फैसला सुनाया और जनता पार्टी समर्थित भारतीय लोकदल के पिछड़ी जाति के उम्मीदवार रूपनाथ सिंह यादव को 1,49,320 वोटों से जिताया। इस चुनाव में रूपनाथ को 2,06,339 और कांग्रेस के दिनेश सिंह को महज 57,019 वोट ही मिल सके थे। पहली बार पिछड़ी जाति के रूपनाथ यादव को सांसद बनने का मौका मिला था। लेकिन 1980 के चुनाव में राजा दिनेश सिंह ने रूपनाथ सिंह यादव को हराकर यह हिसाब पूरा कर लिया।
इसके बाद 1980 के चुनाव में कांग्रेस टिकट से राजा अजीत प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की। दूसरे नंबर पर जय सिंह थे, जबकि राजा दिनेश सिंह तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनाव हुआ तो उसमें कांग्रेस की जो लहर आई थी उसमें सभी विरोधी उड़ गए। इस चुनाव में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर संवेदना की ऐतिहासिक लहर थी। इस चुनाव में भी सभी प्रमुख दलों ने सवर्ण कार्ड खेला। कांग्रेस के राजा दिनेश प्रताप सिंह को 2,79,354 वोट मिले। राजा दिनेश इस चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी लोकदल के रामदेव से 2,32,507 वोटों से जीते थे। 1989 के चुनाव में भी राजा दिनेश प्रताप सिंह ने यह जीत दोहरा दी।
1991 और 1996 का चुनाव रहा दिलचस्प
90 के दशक में जबरदस्त राम लहर के बाद भी 1991 के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा जीतते-जीतते हार गई। भाजपा के उदयराज मिश्र और जनता दल के राजा अभय प्रताप सिंह के बीच कांटे की टक्कर हुई। अंतत: राजा अभय प्रताप सिंह 3,696 वोटों से चुनाव जीत गए। प्रतापगढ़ लोकसभा सीट के इतिहास में यह सबसे कम अंतर से दर्ज की गई जीत थी। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार राजा दिनेश सिंह तीसरे स्थान पर चले गए थे। भाजपा के उम्मीदवार उदयराज मिश्र मतगणना के बाद पुनर्मतगणना के लिए कोर्ट चले गए, लेकिन उन्हें कोर्ट से पुनर्मतगणना का आदेश पांच साल बाद तब मिला जब वह 1996 के चुनाव के लिए नामांकन करने जा रहे थे।
1996 के चुनाव में राजा दिनेश सिंह की मौत के बाद उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर पर्चा भर दिया। दिनेश सिंह की मौत के बाद राजकुमारी रत्ना सिंह के प्रति लोगों में सहानुभूति थी। उधर भाजपा के उदयराज मिश्र के प्रति भी लोगों में भारी सहानुभूति थी। हर ओर यही कहा जा रहा था कि 1991 के चुनाव में जनता ने तो उदयराज मिश्र को जिताया था, लेकिन खेल कर उन्हें हरा दिया गया। उदयराज ने मुकाबला भी बखूबी किया। लेकिन रत्ना सिंह ने 1,39.326 वोट पाकर जीत दर्ज की, जबकि उदयराज को 1,17,689 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव में 70 हजार मतमत्र गायब होने और मतगणना के दिन कांग्रेस के निशान पर मुहर लगाकर मतपत्र मिलाने का आरोप लगा।
हालांकि पिछला हस्र देखते हुए उदयराज मिश्र ने कोर्ट जाने की भी हिम्मत नहीं जुटाई। इस जीत का रिकार्ड आज तक बरकरार है। न तो राम लहर इसे तोड़ सकी और न ही आरक्षण व बोफोर्स दलाली का मुद्दा। 1998 के चुनाव में भाजपा ने पहली बार इस सीट पर कमल खिलाया और राम विलास वेदांती सांसद बने। लेकिन राजकुमारी रत्ना सिंह ने 1999 के चुनाव में यह सीट भाजपा से छिन ली। फिर 2004 के चुनाव में सपा के उम्मीदवार रहे अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल भैया ने यहां पहली बार साइकिल दौडा दिया। लेकिन 2009 के चुनाव में राजकुमारी रत्ना सिंह ने फिर इस सीट पर जीत हासिल की और संसद पहुंचीं।
प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र की जातीय समीकरण
प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां कुर्मी बिरादरी के मतदाता चुनाव परिणाम में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। यहां कुर्मी, यादव और मुस्लिम को मिलाकर 36 प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं। इनमें से करीब 11 प्रतिशत कुर्मी मतदाता रहते हैं। जबकि 16 फीसदी ब्राह्मण और 8 फीसदी क्षत्रिय मतदाता हैं। इसके अलावा एससी-एसटी बिरादरी के 19 फीसदी, मुस्लिम बिरादरी के 15 फीसदी और यादव बिरादरी के 10 फीसदी मतदाता हैं।
प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद
- कांग्रेस से मुनीश्वर दत्त उपाध्याय 1952 और 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भारतीय जनसंघ से अजीत प्रताप सिंह 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से दिनेश सिंह 1967 और 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता पार्टी से रूप नाथ सिंह यादव 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से अजीत प्रताप सिंह 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से दिनेश सिंह 1984 और 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता दल से अभय प्रताप सिंह 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से राजकुमारी रत्ना सिंह 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
- भाजपा से राम विलास वेदांती 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से राजकुमारी रत्ना सिंह 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
- सपा से अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल भैया 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से राजकुमारी रत्ना सिंह 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
- अपना दल (सोनेलाल) से कुंवर हरिवंश सिंह 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से संगम लाल गुप्ता 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।