UP Lok Sabha Election: कन्नौज में पार्टी का दबाव या सीट खोने का डर, अखिलेश यादव ने क्यों लिया खुद चुनाव लड़ने का फैसला

UP Lok Sabha Election: कन्नौज के पार्टी नेताओं का मानना था कि तेज प्रताप की दावेदारी ज्यादा प्रभावी नहीं साबित होगी और इसलिए अखिलेश यादव को खुद चुनावी अखाड़े में उतरना चाहिए।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-04-25 09:09 IST

Akhilesh Yadav   (photo: social media )

UP Lok Sabha Election 2024: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने आखिरकार खुद भी कन्नौज से लोकसभा चुनाव की जंग में उतारने का फैसला ले लिया। रिश्ते में अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार घोषित करने के 48 घंटे के भीतर ही सपा मुखिया ने अपना फैसला बदल लिया। वैसे अखिलेश यादव ने यह फैसला यूं ही नहीं लिया है। दरअसल कन्नौज के पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का दबाव आखिरकार रंग लाया। कन्नौज के पार्टी नेताओं का मानना था कि तेज प्रताप की दावेदारी ज्यादा प्रभावी नहीं साबित होगी और इसलिए अखिलेश यादव को खुद चुनावी अखाड़े में उतरना चाहिए।

ऐसे में सपा मुखिया को लगने लगा कि कहीं कन्नौज में भी रामपुर जैसी स्थिति न पैदा हो जाए जहां जिला इकाई ने सपा की ओर से घोषित प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। इसके साथ ही उन्हें कन्नौज का अपना गढ़ बचाने की भी चिंता थी जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी डिंपल यादव को भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इसी कारण सपा की ओर से नामांकन के आखिरी दिन अखिलेश यादव के पर्चा भरने का आधिकारिक ऐलान कर दिया गया।

फैसला बदलने की मजबूरी

समाजवादी पार्टी कन्नौज सीट पर एक बार फिर कब्जा करने के लिए पहले से ही की जान से जुड़ी हुई थी। पार्टी के जिला स्तरीय नेता शुरुआत से ही इस बात का दबाव बना रहे थे कि इस सीट पर सपा मुखिया अखिलेश यादव को खुद चुनाव मैदान में उतरना चाहिए। अखिलेश यादव ने खुद कई बार इस बात का संकेत भी दिया था मगर दो दिन पूर्व उन्होंने इस सीट पर तेज प्रताप यादव को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया। इसके पीछे अपने परिवार के साथ ही लालू कुनबे का दबाव भी कारण माना जा रहा है क्योंकि तेज प्रताप राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव के दामाद भी हैं। फिर उसके बाद ऐसे हालात बने कि सपा मुखिया अपना फैसला बदलने पर मजबूर हो गए।

सपा के स्थानीय नेताओं का दबाव

दरअसल कन्नौज में सपा की जिला इकाई और कार्यकर्ताओं का मानना था कि यदि अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में नहीं उतरे तो सपा के लिए इस सीट पर मजबूत चुनौती देना मुश्किल हो सकता है। पार्टी के स्थानीय नेताओं का कहना था कि कन्नौज के आधे से अधिक लोग तेज प्रताप को जानते तक नहीं है और ऐसे में उनके पक्ष में सियासी माहौल बनाना कठिन हो जाएगा। उनका कहना था कि यदि तेज प्रताप की जगह खुद सपा मुखिया चुनाव मैदान में उतरें तो पार्टी एक बार फिर अपने गढ़ कन्नौज में कब्जा करने में कामयाब हो सकती है।

सपा के जिला स्तरीय नेताओं की ओर से यह दलील दिए जाने के बाद सपा मुखिया को भी इस बात की आशंका सताने लगी कि भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक के सामने तेज प्रताप यादव का व्यक्तित्व कितना असरकारक साबित हो सकेगा। इसके साथ ही पार्टी कन्नौज में रामपुर जैसी स्थिति भी बचाना चाहती थी जहां जिला इकाई ने सपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से घोषित प्रत्याशी का प्रचार करने से पूरी तरह इनकार कर दिया था। पार्टी के लिए कन्नौज में ऐसी स्थिति पार्टी के लिए किसी बड़े झटके से काम नहीं होती और यही कारण था कि आखिरकार अखिलेश यादव खुद कन्नौज की सियासी जंग में उतरने को तैयार हो गए।

आसपास की सीटों पर भी पड़ेगा असर

सपा मुखिया अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में उतरने से आसपास की लोकसभा सीटों पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है। कन्नौज की सीमा अकबरपुर, हरदोई, मिश्रिख, इटावा, मैनपुरी और फर्रुखाबाद लोकसभा सीटों से लगती है और अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में उतरने से इन सीटों पर भी पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाने में कामयाबी मिलने की उम्मीद है। कन्नौज और आसपास के इलाकों में सपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है मगर इस बार भाजपा भी इन सीटों पर कड़ी चुनौती देने की कोशिश में जुटी हुई है।

पार्टी नेताओं का मानना था कि अखिलेश के कन्नौज से चुनाव लड़ने से सकारात्मक संदेश जाएगा और आसपास की सीटों पर भी सियासी नुकसान से बचने में मदद मिलेगी। ऐसी स्थिति में अखिलेश ने खुद आगे बढ़कर कन्नौज से चुनाव लड़ने का बड़ा फैसला ले लिया।

सपा का गढ़ रही है कन्नौज लोकसभा सीट

कन्नौज लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है। इस लोकसभा सीट पर पार्टी काफी समय से अपनी ताकत दिखाती रही है। कन्नौज सीट पर 1998 से 2014 तक लगातार समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को इस सीट पर करारा झटका लगा था। भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने अखिलेश यादव की पत्नी और सपा प्रत्याशी डिंपल यादव को हराकर सपा के इस किले को ध्वस्त कर दिया था।

भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर सुब्रत पाठक को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की ओर से टिकट का ऐलान किए जाने से पहले से ही सुब्रत पाठक ने क्षेत्र में चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था।

समाजवादी पार्टी इस बार 2019 में डिंपल यादव को मिली हार का बदला लेना चाहती है। सियासी जानकारों का मानना है कि इसी कारण अखिलेश यादव ने अब खुद भाजपा की चुनौतियों का सामना करने का फैसला किया है।

कन्नौज में बदली सियासी तस्वीर

सपा मुखिया अखिलेश यादव के चुनाव मैदान में उतरने के फैसले से अब कन्नौज में सियासी तस्वीर बदल गई है। अब इस सीट पर सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कन्नौज की तीन विधानसभा सीटों पर कब्जा करके सपा को बड़ा झटका दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक कन्नौज में लगातार सक्रिय रहे हैं।

पार्टी की ओर से प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद उन्होंने क्षेत्र में जोरदार प्रचार अभियान छेड़ रखा है और ऐसे में कन्नौज की सियासी जंग सपा के लिए आसान साबित नहीं होगी। अब सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि सपा मुखिया अखिलेश यादव 2019 में अपनी पत्नी डिंपल यादव को मिली हार का हिसाब बराबर कर पाते हैं या नहीं।

Tags:    

Similar News