Lok Sabha Election 2024: नीरस पिक्चर हो गई थ्रिलर, अब इंतज़ार क्लाइमेक्स का

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव की शुरुआत से अब तक पार्टियों और नेताओं के संघर्ष के स्वर और स्वरूप में भारी बदलाव आया है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2024-05-31 09:46 GMT

Lok Sabha election 2024 seventh phase voting  (photo: social media )

Lok Sabha Election 2024:  लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम राउंड के लिए पहली जून को मतदान होने वाला है। मतदान से ज्यादा, सभी की निगाहें 4 जून को आने वाले फैसले पर टिकी हैं। ये पहला चुनाव है जिसके रिजल्ट के बारे में इतनी उत्सुकता से इंतजार है।

जबर्दस्त उतार चढ़ाव

इस लोकसभा चुनाव की शुरुआत से अब तक पार्टियों और नेताओं के संघर्ष के स्वर और स्वरूप में भारी बदलाव आया है। शुरुआत में इसे एकतरफा चुनाव माना जा रहा था, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लगातार तीसरी बार जीतने की उम्मीद थी, लेकिन मतदान का राउंड शुरू होने के साथ साथ इंडिया अलायन्स के अभियान ने रफ्तार पकड़ ली और देखते देखते एक नीरस पिक्चर अचानक एक थ्रिलर में तब्दील हो गई। अब क्लाइमैक्स का इंतज़ार जनता और नेता, दोनों को बराबर बेसब्री से इंतजार है।

बदलता रहा रुख

हालांकि भाजपा ने अपने अभियान की शुरुआत विकासशील भारत और अन्य विकास पहलों को उजागर करके की थी, लेकिन मतदान के पहले तीन चरणों में कम मतदान ने उसे अपना रुख बदलने पर मजबूर कर दिया। ये कह सकते हैं कि विपक्ष के ‘संविधान और सामाजिक न्याय’ के इर्द-गिर्द बुने अभियान ने राजनीतिक नैरेटिव को बदलने में मदद की। इस चुनाव में पहली बार संविधान भी एक मुद्दा बन कर उभरा। राहुल गांधी सहित कांग्रेस के नेता तो अपने अभियान के दौरान संविधान किताब का पॉकेट संस्करण साथ रख कर भाषण देते नजर आए।

आयोग निशाने पर

शायद यह पहली बार हुआ कि चुनाव आयोग विपक्ष के निशाने पर रहा। सोशल मीडिया पर भी आयोग की खूब खिंचाई हुई। आयोग को मतदान के आंकड़ों को जारी करने में देरी और पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने के लिए विपक्ष और सिविल सोसाइटी की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। आयोग ने चुनाव तारीखें घोषित करते वक़्त जिस सख्ती की बात की थी वह पूरे दौर में कहीं नजर नहीं आई।

जन प्रतिक्रिया

ये चुनाव इसलिए भी अनोखा रहा कि बड़े बड़े विश्लेषक और मीडिया जन मतदाताओं की थाह लेने में कमोबेश फेल रहे। जनता क्या सोच रही है, कोई भांप न सका। इसीलिये अटकलों का बाजार मौसम की तरह खूब गर्म रहा। माना जा रहा है कि एग्जिट पोल भी कोई साफ तस्वीर शायद ही पेश कर पाएं।

मौसम का असर

सबसे बड़ा चुनाव भी आमतौर पर गर्मी के पीक सीजन में पड़ता है और इस बार भी यही हुआ। लेकिन चूंकि पूरा चुनाव डेढ़ महीने तक फैला हुआ था सो भीषण गर्मी और नौतपा का कहर जनता के साथ साथ चुनाव में लगे अमले ने झेला। इस बार सवाल उठे कि चुनाव ढंग के मौसम में क्यों नहीं कराए जाते?

पैसे की बरसात

इस चुनाव ने जब्ती का भी रिकॉर्ड बना दिया। आयोग ने अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर धरपकड़ की और हजारों करोड़ रुपये की नकदी, सोना चांदी, शराब वगैरह पकड़ी जिसका इस्तेमाल वोटों को खरीदने के लिए किया जाना था। इस रिकॉर्ड जब्ती ने सोचने को मजबूर किया कि आखिर चल क्या रहा है? इसके लिए हम कर क्या रहे हैं?

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