UP: टिकट का असली घमासान बची 12 सीटों पर, डिंपल को हराने के लिए BJP को चेहरे की तलाश
UP Lok Sabha Election 2024: यूपी में कई ऐसी सीटें हैं जिस पर बीजेपी ने अभी तक अपने प्रत्याशी नहीं घोषित किया है। एक-एक सीट पर कई लोगों ने दावेदारी की है।
UP Lok Sabha Election 2024: एक ओर जहां पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं तो वहीं यूपी में चुनावी गहमागहमी के बीच बची 12 लोकसभा की सीटों पर बीजेपी अपने उम्मीदवारों के चयन को लेकर चर्चा में जुटी है। इन सीटों पर उम्मीदवारों के चयन को लेकर भाजपा हाईकमान ने मंथन शुरू कर दिया है। लेकिन यूपी की इन 12 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची रामनवमी के बाद ही जारी होने की बात कही जा रही है। वहीं इन सीटों से चुनाव लड़ने की दावेदारी करने वालों में भी जमकर रस्साकसी चल रही है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व को भी उम्मीदवार तय करने में काफी मशक्कत से जूझना पड़ रहा है।
बता दें कि यूपी की कुल 80 में से भाजपा अपने कोटे की 75 सीटों में से अब तक 63 पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। शेष बची 12 सीटों पर उम्मीदवार तय करने हैं। इनमें मैनपुरी, रायबरेली, गाजीपुर, बलिया, भदोही, मछलीशहर, प्रयागराज, फुलपुर, कौशांबी, देवरिया, फिरोजाबाद और कैसरगंज की सीटें शामिल हैं।
ये है भाजपा के सामने चुनौती
इन सीटों पर उम्मीदवार तय करने को लेकर भाजपा के सामने सबसे बड़ी उलझन जीताऊ चेहरा तय करने को लेकर है। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जिन तीन सीटों रायबरेली, गाजीपुर और मैनपुरी में चुनाव हार गई थी, उन सीटों पर इस बार हर हाल में जीतना चाहती है। इसलिए भी पार्टी उम्मीदवार चयन करने में कोई जल्दबादी नहीं करना चाहती है।
400 के लक्ष्य के लिए यूपी सबसे अहम
दरअसल इस बार 400 पार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भाजपा का सर्वाधिक सीट वाले उत्तर प्रदेश पर खास फोकस है। इसलिए बीजेपी हर सीट पर ऐसा चेहरा उतारना चाह रही है, जिसके जीत पर किसी तरह का कोई संदेह न रहे। वैसे तो इन 12 सीटों पर टिकट के दावोदारों की लंबी लाइन है। लेकिन पार्टी हाईकमान जीताऊ चेहरे पर ही दाव लगाना चाहती है। भाजपा इसके साथ ही 2019 में हारी हुई यूपी की 14 सीटों को जीतने की रणनीति पर भी काम कर रही है।
दावेदारों की लंबी फेहरिस्त ने फंसाया पेंच
सूत्रों की माने तो बीजेपी शेष बची 12 सीटों में से अधिकतर पर नए चेहरे को मौका देने पर विचार कर रही है। ऐसे में कई वर्तमान सांसदों का टिकट कटना भी तय माना जा रहा है। इस संभावना को देखते हुए एक-एक सीट पर कई लोगों ने दावेदारी कर रखा है। टिकट के लिए कोई संघ से तो कोई संगठन से सिफारिश करा रहा है। ऐसे में उम्मीदवार तय करने को लेकर मामला अभी उलझा हुआ है।
यहां सबसे अधिक उलझन
सूत्रों के मानें तो बीजेपी नेतृत्व के सामने सबसे अधिक उलझन रायबरेली, कैसरगंज और गाजीपुर सीट को लेकर है। इनमें रायबरेली और गाजीपुर पर विपक्ष का कब्जा है जबकि कैसरगंज सीट पर मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह खुद मैदान में उतरने के लिए अड़े हुए हैं।
महिला पहलवानों से जुड़े विवादों से घिरे होने के नाते भाजपा उनकी जगह उनके परिवार के किसी सदस्य या उनकी सहमति के किसी अन्य चेहरे को यहां से उतारना चाहती है, लेकिन बृजभूषण मानने को तैयार नहीं है। वहीं गाजीपुर और रायबरेली सीट को जीतना भाजपा ने प्रतिष्ठा का का सवाल बना लिया है।
मैनपुरी में भाजपा को चाहिए डिंपल का विकल्प
सूत्रों का कहना है कि मैनपुरी की सीट कभी भी भाजपा के खाते में नहीं आई है। इस सीट को जीतने को लेकर भी पार्टी के रणनीतिकार यहां से ऐसा चेहरा तलाश रहे हैं, तो डिंपल यादव को कड़ा टक्कर दे सके। भाजपा सपा को उसके ही घर में घेरने की रणनीति के तहत मजबूत विकल्प ढूंढ रही है। मैनपुरी में शाक्य बिरादरी की बड़ी तादाद को देखते हुए वहां की स्थानीय इकाई ने इसी बिरादरी के पार्टी के एक बड़े नेता को यहां से चुनाव लड़ाए जाने की इच्छा जताई है। भाजपा नेतृत्व इस पर भी विचार कर रहा है। इसी तरह फिरोजाबाद सीट को भी भाजपा चुनौतीपूर्ण मानते हुए जीताऊ चेहरा तलाश रही है।
कई मौजूदा सांसदों के कट सकते हैं टिकट
भाजपा प्रयागराज, फुलपुर और कौशांबी के मौजूदा सांसदों के स्थान पर नए चेहरे पर दाव लगा सकती है। चर्चा है कि यह भी है योगी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। उनकी कोशिश है कि इन तीनों में किसी भी एक सीट पर उनकी पत्नी का समायोजन कर दिया जाए। बताया जा रहा है कि इसके लिए उन्होंने ऊपर से एक बड़े पदाधिकारी से दबाव बनवा रखा है। इस वजह से इन तीनों पर भी उम्मीदवार तय करने को लेकर मामला फंसा हुआ है। उधर यह भी तय माना जा रहा है कि शेष बची सीटों पर दावेदारों की पेशबंदी की वजह से कई मौजूदा सांसदों के टिकट कट सकते हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा इन सीटों पर किसको अपना उम्मीदवार बनाती है। क्योंकि यहां उम्मीदवारों का चयन पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।