Chaitra Navratri 2022: दतिया मंदिर मां पीताम्बरा के पूजन का राजसत्ता प्राप्ति में है विशेष महत्त्व

Datia Mandir: नवरात्री में मां के सभी शक्तिपीठों में भक्तों की लम्बी कतारें लगती हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है।

Written By :  Preeti Mishra
Published By :  Shreya
Update:2022-03-28 15:15 IST

दतिया मंदिर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Datia Mandir: चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) का आगमन बस कुछ ही दिनों हो जायेगा। अपने भक्तों का बेडा पार लगाने और अपनी ममता से उन्हें वशीभूत करने मां दुर्गा शनिवार, 2 अप्रैल (Chaitra Navratri Date 2022) को आ रही हैं। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत शनिवार 2 अप्रैल से हो रही है, जो कि सोमवार, 11 अप्रैल को समाप्त हो जायेगा। 

नवरात्री में मां के सभी शक्तिपीठों में भक्तों की लम्बी कतारें लगती हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के दतिया जिले (Datia) में स्थित मां पीतांबरा (Maa Pitambara) का है। नवरात्री में यहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है।

राजसत्ता की देवी

बता दें कि मान्यताओं के अनुसार, मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी (Rajsatta Ki Devi) माना जाता है। भक्त इसी रूप में उनकी आराधना करते हैं। गौरतलब है कि राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं। दतिया स्थित मां पीतांबरा पीठ की जहां बगलामुखी देवी (Baglamukhi Devi) के रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। मां पीतांबरा को भक्त शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी होने के साथ ही राजसत्ता की देवी भी मान कर पूजन करते हैं। ऐसे में यहां देश में चुनाव से पहले कई बड़े राजनेताओं तक का आना भी लगातार शुरु हो जाता है।

दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं देवी

इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में हुई थी। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर मां पीतांबरा देवी (Maa Pitambara Devi) दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं। कहा जाता है कि मां के दर्शन भर से सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। गौरतलब है कि यह मंदिर चमत्कारी धाम के रूप में भी जाना और माना जाता है।

मां बगलामुखी को पीले वस्त्र पहनने के कारण उन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है। यह पीताम्बरा पीठ दस महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी का मन्दिर है। यह देश के सबसे बड़े शक्तिपीठों में से एक है। 'बगला' शब्द संस्कृत के 'वल्गा' शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है, दुल्हन। देवी मां के अलौकिक सौन्दर्य के कारण ही उन्हें यह नाम मिला है । मान्यता है कि मां बगुलामुखी ही पीतांबरा देवी हैं, इसलिए उन्हें पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। इतना ही नहीं इनके अनुष्ठानों में भक्त पीले कपड़े पहनकर ही मां को पीली वस्तुएं चढ़ाते हैं।

भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं देवी

बता दें कि यहाँ देश के कोने -कोने से भक्त वैभव की देवी मां पीतांबरा के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यताओं के अनुसार, देवी भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर उन्हें सुख समृद्धि और शांति प्रदान करती है। मां पीतांबरा को शत्रुनाश की अधिष्ठात्री देवी (Adhisthatri Devi) भी माना जाता है। राजसत्ता प्राप्ति में मां की पूजा का विशेष महत्व होता है।

मान्यताओं के अनुसार, सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने ही देश की रक्षा की। इतना ही नहीं सन् 2000 में भी कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में भी हमारे देश के कुछ विशिष्ट साधकों ने मां बगलामुखी की गुप्त रूप से पुन: साधनाएं व यज्ञ किया था जिसके फलस्वरूप दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। कहा जाता है कि उस समय के तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (PM Atal Bihari Vajpayee) के कहने पर ही यह यज्ञ यहां कराया गया था। 

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