International Tiger Day: अब नक्सली इलाकों में भी बाघों का बढ़ता कुनबा
International Tiger Day: मध्य प्रदेश ने 2011 में प्रतिष्ठित 'टाइगर स्टेट' का दर्जा खो दिया था और कर्नाटक पहले स्थान पर आ गया था। 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक 524 बाघों के साथ दूसरे स्थान पर है, इसके बाद उत्तराखंड 442 है।;
विश्व बाघ दिवस आज (फोटो : सोशल मीडिया )
आज विश्व बाघ दिवस है (International Tiger Day)। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) को बाघों (Tigers) का प्रदेश कहा जाता है । पिछ्ले कुछ सालों से मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। मध्य प्रदेश में कुल 526 बाघ है,जो देश मे सर्वाधिक है। 2011 में प्रतिष्ठित 'टाइगर स्टेट' का दर्जा खो दिया था और कर्नाटक (Karnataka) पहले स्थान पर आ गया था। 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक 524 बाघों के साथ दूसरे स्थान पर है, इसके बाद उत्तराखंड (Uttarakhand) 442 है। इसके अलावा वन विभाग की आंतरिक गिनती में प्रदेश के टाइगर रिजर्व (tiger reserve) में वर्ष 2018 की तुलना में औसतन पांच से 60 फीसद तक बाघ बढ़ गए हैं।
ये आंकड़े भरोसा दिलाते हैं कि मध्य प्रदेश देश में सबसे ज्यादा बाघ वाले राज्य (टाइगर स्टेट) के रूप में पहचान कायम रखेगा। प्रदेश के पांच नेशनल पार्क, 24 अभयारण्य और 63 सामान्य वनमंडलों में दो साल में सौ से ज्यादा बाघ बढ़े हैं। इसके अलावा 45 से ज्यादा शावक हैं, जो अगले साल गिनती शुरू होने तक एक वर्ष की उम्र पार कर लेंगे और गिनती में शामिल हो जाएंगे।
इसलिए बढ़ रही संख्या
विशेषज्ञों के मुताबिक प्रदेश के जंगल बाघों के लिए मुफीद हैं। यहां पर्याप्त खाना और पानी है। खासकर संरक्षित क्षेत्रों (नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व) में सुरक्षा के भी पूरे इंतजाम हैं इसलिए यहां बाघ तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले एक दशक में कान्हा, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर एरिया से सैकड़ों गांव विस्थापित किए गए हैं। ये क्षेत्र अब घास के मैदान में तब्दील हो गए हैं। जिससे चीतल, सांभर, नीलगाय, चौसिंघा की संख्या बढ़ी है और इन्हीं पर निर्भर बाघ भी बढ़े हैं।
2018 की तुलना में कहाँ कितने बाघ (स्त्रोत- वन विभाग रिपोर्ट)
-संजय डुबरी नेशनल पार्क में 2018 की तुलना में 8 बाघों में वृद्धि हुई है।अब वहां कुल 13 बाघ हैं।
-सतपुड़ा नेशनल पार्क में 5 कई वृद्धि के साथ अब कुल 45 बाघ हैं।
-पेंच नेशनल पार्क में 3 बाघों की वृद्धि के साथ अब कुल 64 बाघ हैं।
-कान्हा नेशनल पार्क में 30 बाघों की वृद्धि के साथ अब कुल 118 बाघ हैं।
-पन्ना नेशनल पार्क में 17 बाघों की वृद्धि के साथ अब कुल 42 बाघ हैं।
-बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 40 बाघों की वृद्धि के साथ अब कुल 164 बाघ हैं।
खास बात यह है कि असंरक्षित क्षेत्रों में भी बाघों की संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ ऐसे ही क्षेत्र हैं भोपाल और बालाघाट वन डिवीजन। बालाघाट वन डिवीजन मुख्यतः नक्सलियों के लिए जाना जाता है। जहां पहले हमेशा नक्सलियों द्वारा बाघ शिकार की सूचना मिलती रहती थी।अभी भी वहाँ नक्सलियों का डेरा है।पर बीते 6 वर्षों में बाघों की संख्या शून्य से बढ़कर 28 हो गयी है।ये इलाका 100 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसी तरह भोपाल वन डिवीजन भी 500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। जहां 2006 तक एक भी बाघ नही था। अब वहां भी बाघों की संख्या 18 हो गयी है।
बालाघाट वन डिवीजन में बाघों की संख्या ज्यादा होने पर भी यहाँ टेरिटोरियल फाइट (क्षेत्रीय युद्व) नही देखा जाता है।इसके विपरीत पेंच और कान्हा नेशनल पार्क में बाघ अपने पगमार्क करके अपनी टेरिटरी बना लेते है जिसके लिए वहाँ बाघों में हमेशा लड़ायी देखी जाती है।
अब आदिवासी भी आगे वन संरक्षण में
बालाघाट में आदिवासियों की संख्या अधिक है।पहले एहि आदिवासी नक्सलियों की बातों में आकर वन्य जीवों का शिकार करते थे । पर अब वन संरक्षण संस्था अनेक वन्यजीव वेलफेयर से सम्बंधित लोगो के द्वारा आदिवासी को जागरूक किया गया । उन्हें बताया गया कि वन्य जीवों के शिकार से सिर्फ उनको ही नहीं उनके पूरे परिवार को परेशानी का सामना करना पड़ता है । जेल भी जाना पड़ता है, रोजगार खत्म हो जाता है। जिसके बाद से अब आदिवासी मिलकर वन की सुरक्षा करते हैं । जिसके बदले में वन प्रशासन उन्हें अचार, शहद ,वन संबंधी बाजार उपलब्ध कराते हैं। जिसे आदिवासी बिना किसी बिचौलिये के सीधे तौर पर बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं। इससे उन्हें अब रोजगार मिल रहा है और आदिवासी अब खुश भी हैं। इसका फायदा वन्यजीवों को हो रहा है और इस तरह जंगल के आसपास के वातावरण में बदलाव बाघों की संख्या में वृद्धि की मुख्य वजह बनकर सामने आ रहा है।