MP News: खनिज विभाग के अधिकारी बने धृतराष्ट्र, मानकों को ताक पर रखकर पूरी रात हो रहा खनन

MP News: मध्य प्रदेश सरकार राजस्व प्राप्ति और पत्थर कारोबारी मुनाफा कमाने में जी जान से लगे हुए हैं, लेकिन संचालित पत्थर उद्योग के आस-पास रहने वाले लोग परेशान है।

Update: 2022-11-15 08:00 GMT

मानकों को ताक पर रखकर पूरी रात हो रहा खनन (photo: social media ) 

MP News: रीवा में पत्थर कारोबारी मुनाफा कमाने के लिए पर्यावरण सुरक्षा को लेकर बनाए गए अधिनियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जिसकी वजह से पर्यावरण प्रदूषण फैलता जा रहा है और उद्योगों के आस-पास रहने वाले लोग बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं।

मध्य प्रदेश सरकार राजस्व प्राप्ति और पत्थर कारोबारी मुनाफा कमाने में जी जान से लगे हुए हैं, लेकिन संचालित पत्थर उद्योग के आस-पास रहने वाले लोग परेशान है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि सरकार ने नियमों का अनुपालन नहीं कराया, लिहाजा पर्यावरण प्रदूषण लगातार फैलता जा रहा है और लोगों में तमाम तरह की बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं।

शासन और प्रशासन खान खनिज नियमों के साथ पर्यावरण सुरक्षा को लेकर बनाए गए अधिनियमों का अनुपालन कराता तो लोगों को प्रदूषण की समस्या नहीं झेलनी पड़ती और उन्हें दमा, सिलकोसिस और यक्ष्मा रोग जैसी बीमारियों का शिकार नहीं होना पड़ता। मध्य प्रदेश राज्य को करोड़ों रुपये राजस्व देने वाला पत्थर उद्योग अपने प्रारंभिक काल से ही नियमों और अधिनियमों की धज्जियां उड़ाने के मामले में चर्चित रहा है। पत्थर उद्योग से जुड़े कारोबारी पत्थर खदान और क्रेशर मशीनों के संचालन में नियमों और अधिनियमों की अनदेखी करते रहे हैं, जिसका नतीजा लोगों को बीमारी देने के साथ-साथ कई लोगों को तो जान भी गंवानी पड़ी है। नियमों का अनुपालन नहीं किए जाने के कारण पत्थर खदानों में मजदूरों के साथ-साथ मालिकों की भी मौतें हुई हैं, जबकि क्रेशर मशीनों से उड़ रहे धुलकण के कारण मजदूर के साथ आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोग बीमारी के शिकार होते रहे हैं।

पत्थर खदानों की घेराबंदी या उसे सीढ़ीनुमा बनाने को कोई तवज्जो खदान के मालिक नहीं दे रहे हैं, क्रेशर मशीनों के आस-पास न तो घेराबंदी की जा रही है और न ही पेड़ लगाए जा रहे हैं। अधिकांश जिले के क्रेशर मशीनों और पत्थर खदानों में आज भी नियमों का अनुपालन नहीं हो रहा है। किसी क्रेशर के सीटीओ (कनर्सन टु ऑपरेट) नहीं हैं, तो कई खदानों के मालिकों के पास ईसी (इनवारमेंट क्लियरेंस) नही है। और तो और अवैध तरीके से संचालित पत्थर खदान और क्रेशर मशीनों का औसत देखे तो नियमों का उल्लंघन ज्यादा हो रहा और कार्रवाई और अनुपालन कम हो रहा है। जानकारी के मुताबिक पत्थर के धुलकण से लंग्स पर प्रभाव पड़ता है और इससे सिलकोसिस बीमारी होती है और ये ऐसी बीमारी लाइलाज है।

पहाड़, नदी, जंगल की हत्या कभी चुनावी मुद्दा बनेंगे ?

पर्यावरणविद सीमा जावेद का कहना है कि देश के करोड़ों लोगों की ज़िंदगी पर सीधे असर डालने वाला यह अवैध खनन का काला कारोबार राजनेताओं और माफियाओं की संरक्षण में लगातार फल-फूल रहा है, लेकिन कभी चुनावी मुद्दा क्यूं नहीं बनता? अगर इसे ऐसे ही नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में शर्तिया यह पर्यावरण के लिए काल साबित होगा।

बेखौफ होकर कर किया जा रहा खनन

खनन के लिए खनिज विभाग से अभिवहन (परिवहन) की अनुमति एवं खनन के लिए ठेकेदार को अब तक दस्तावेज नहीं मिले हैं उसके बाद भी बेखौफ होकर खनन करवाया जा रहा है। न रॉयल्टी का झंझट और न किसी से कोई अनुमति का टेंशन। जिले में अवैध रूप से खनन पर कोई सवाल ही नहीं उठता। खनिज विभाग के अधिकारियों का अवैध क्रेशर मशीन वालों के यहां तांता लगा रहता है और खनिज विभाग के अधिकारी इनसे दरवाजा बंद करके घंटों मीटिंग करते हैं।

आरटीआई एक्टिविस्ट का कहना है कि रीवा जिले में पर्यावरण का संतुलन बिगाडऩे में अवैध खनन इन दिनों सबसे बड़ी बजह बन रहा है। खनन माफिया बजरी व पत्थर का अवैध खनन कर नदी-नालों एवं पहाड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। खनन माफिया नदी और पहाड़ों में दिन-रात मशीनों से खनन कर जमीन को खोखली कर रहा है, वहीं पत्थर माफिया द्वारा पहाड़ों को खोदकर समतल किया जा रहा है।

दिन-रात हो रहे अवैध खनन से एक ओर जहां सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं अंगोर व गोचर भूमि भी खत्म हो रही है। इन सबके बावजूद खनिज विभाग कुछ स्थानों पर फौरी तौर पर कार्रवाई कर औपचारिकता पूरी कर रहा है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यदि इसी प्रकार अवैध खनन जारी रहा तो आने वाले वर्षों में पहाड़ों के स्थान पर खानें मिलेंगी और नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

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