Rewa News: शिक्षा विभाग का घोटाला फिर से चर्चा में, छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई, बड़ों पर आंच तक नहीं
Rewa News: शिक्षा विभाग में ऐसे तो घोटालों का पता ही नहीं चलता, किसी प्रकार अनियमितता सामने आ भी जाए तो छोटे स्तर के कर्मचारियों के ऊपर कार्यवाही हो जाती है, बड़े हमेशा बच जाते हैं।
Rewa News: जिला शिक्षा विभाग में हुआ घोटाला एक बार फिर से चर्चा में है। आम जनमानस के बीच इस बात को लेकर बहुत चर्चा है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को कौन बचा रहा है। शिक्षा विभाग में ऐसे तो घोटालों का पता ही नहीं चलता और अगर किसी भी प्रकार से कोई अनियमितता सामने आ भी जाए तो छोटे स्तर के कर्मचारियों के ऊपर कार्यवाही हो जाती है एवं बड़े अधिकारियों की कार्यवाही से नाम ही हेरा फेरी हो जाता है या फिर फाइल ठंडे बस्ते में चली जाती है आखिर क्यों?
अवैध धन अर्जित करने की धुन में लगे बड़े भ्रष्टाचारी
एक तरफ प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी हो कितना भी प्रभावशाली क्यों ना हो उसे बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी रीवा कार्यालय पूरे प्रदेश में घोटालों के लिए चर्चित है। कार्यालय के जिम्मेदार अधिकारी डीईओ शासकीय राशि गबन कर चुपचाप इस तरह बन जाते हैं कि उनसे पाक साफ कोई हो ही नही सकता। मामला जब उजागर होता है तो जिला शिक्षा अधिकारी राजनीतिक दबाव बनाकर उसे दबाने के प्रयास में जुट जाते हैं।
ताजा मामला बहुचर्चित अनुदान घोटाले में शामिल पूर्व एवं वर्तमान डीईओ समेत कुल 9 कर्मचारियों के विरुद्ध राज्य स्तरीय जांच समिति द्वारा प्रस्तावित जांच प्रतिवेदन के बाद सामने आया है। स्कूल शिक्षा विभाग के बहुचर्चित 4.41 करोड़ से अधिक राशि का अनुदान घोटाले में राज्य स्तरीय जांच समिति ने पूर्व एवं वर्तमान सहित चार जिला शिक्षा अधिकारियों एवं 9 कर्मचारियों के खिलाफ जांच प्रस्तावित किया था।
आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय में प्रस्तुत जांच प्रतिवेदन में अनुदान घोटाले में तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी, तत्कालीन प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी, वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी एवं सहायक अध्यापक के विरूद्ध संभागी जांच प्रस्तावित की गई थी राज्य स्तरीय जांच समिति द्वारा अनुदान एवं सामग्री घोटाले की पूर्व में जिला स्तर पर कराई गई जांच को स्वीकार करते हुए आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय के समक्ष जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया था पूर्व में जिला कलेक्टर द्वारा वित्तीय अनियमितता का मामला संज्ञान में आने पर 5 सदस्य कमेटी गठित कर जांच कराई गई थी।
जांच दल में वित्त विभाग के संबंधित कर्मचारी शामिल थे उस वक्त जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय द्वारा भी एक जांच पृथक से कराई गई थी दोनों जांचों में वित्तीय अनियमितता का मामला उजागर हुआ था जिसमे करोड़ों रुपये का अनुदान घोटाला ,सामग्री खरीदी घोटाला उजागर हुआ था इसके बाद FIR की भी कार्रवाई की गई जिसमे छोटे स्तर के कर्मचारियों को उस जांच में आरोपी बनाया गया लेकिन राज्य स्तरीय जांच प्रतिवेदन में दोषी पाए जाने के बाद भी जिला शिक्षा अधिकारी एवं पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी के ऊपर भी एफआईआर भी दर्ज नहीं हुआ।
बड़े अधिकारियों द्वारा राजनीतिक दबाव बनाकर मामले को दबा दिया जाता है
सवाल इस बात पर उठता है कि जब राज्य स्तरीय जांच समिति द्वारा जांच में दोषी पाए जाने पर भी पूर्व एवं वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी कार्यवाही के अंजाम से कैसे बच गए। राज्य स्तरीय जांच समिति द्वारा जांच प्रतिवेदन सौंपे जाने के बाद पूर्व एवं वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी उच्च स्तर पर राजनीतिक दबाव बनाकर मामले को गोलमाल कर दिए।
पूर्व और वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी अपने राजनीतिक प्रभाव के चलते राज्य स्तरीय जांच टीम को ठेंगा दिखा बच गए। भ्रष्टाचार की बीमारी इतनी पुरानी है कि इसे जड़ से उखाड़ना तो संभव नहीं लेकिन इस पर तब थोड़ा अंकुश जरूर लग सकता है जब ऐसे भ्रष्टाचारियों को दोषी पाये जाने पर कार्यवाही हो जाये। शिक्षा विभाग में जिस कदर भ्रष्टाचार हावी है उससे अब यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि शिक्षा के मंदिरों का उद्धार आखिर कैसे हो पाएगा?