Patalkot: पाताल लोक में बसे गांव, जहां कभी नहीं होती सुबह, जानिए कैसी है ये दुनिया

Patalkot in Madhya Pradesh: हमारे मन में हमेशा एक प्रश्न रहता है कि क्या वाकई कोई पाताल लोक की दुनिया है? Newstrack की इस रिपोर्ट में पढ़िए कैसी है पाताल में बसी दुनिया?

Report :  Snigdha Singh
Update:2022-12-22 07:03 IST

Life in Patal lok (Image: Social Media)

Patalkot in Madhya Pradesh: पाताल लोक के विषय में हम पुराने समय से शास्त्रों में पढ़ते आए हैं। हमारे मन में हमेशा एक प्रश्न रहता है कि क्या वाकई कोई पाताल लोक की दुनिया है? दरअसल, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक गांव हैं, जिसे 'पातालकोट' के नाम से जाना जाता है। इसका नाम ही पातालकोट नहीं बल्कि ये बसा भी पाताल में है। यह कोई किवदंति नहीं बल्कि हकीकत है। ये लगभग 1700 फुट गहराई में बसा है। यहां रहने वालों की अलग ही दुनिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से 62 किमी व तामिया विकास खंड से महज 23 किमी की दूरी पर स्थित लगभग 80 वर्ग किमी में बसा 'पातालकोट' किसी पाताली दुनिया से कम नहीं है। यहां समुद्र तल से 3000 हजार फीट की ऊंचाई और धरती से 1700 फीट गहराई में बसे भारिया और गौंड आदिवासी समुदाय के लोग हजारों साल से अपनी आदिम संस्कृति और रीति-रिवाजों को लेकर जी रह रहे हैं। धरती की तलहटी में बसे 12 गांव सूरज की मध्यम रोशनी के बीच सांसे लेते हैं। यहां सुबह नहीं बल्कि दोपहर और कुछ ही पल में सुबह हो जाती है।

कैसी है पाताल लोक में रहने वालों की जिंदगी

पातालकोट की आदिवासी जीवन शैली से पुरातन युग का एहसास होता है। इस पाताल में रहने वाले लोगों की बात करें तो ये कमर के इर्द-गिर्द कपडा लपेटे, सिर पर पगड़ी बांधे, हाथ में कुल्हाड़ी अथवा दराती थामे शहरी चकाचौंध से कोसों दूर हैं। ये आदिवासी आधुनिकता के इस युग में आज भी अपनी दुनिया में मस्त हैं। सूरज कब निकलता है और कब अस्त हो जाता है इन्हें पता ही नहीं चलता। उनका भोजन मक्का, बाजरा, कोदो-कुटकी है। जड़ी-बूटियों के जानकार होने से ये अपना इलाज भी खुद ही कर लेते हैं।

पाताल लोक की दुनिया में नहीं है सुबह

पाताल लोक दुनिया हमारी दुनिया से अलग है। ये जमीन से 1700 फीट नीचे होने और सतपुड़ा की पहाडिय़ों और घनघोर जंगलों से घिरा होने से यहां सुबह नहीं होती है। यहां सूरज की रोशनी दोपहर में पहुंचती है। वह भी कुछ पलों के लिए। बारिश के समय बादल इस घाटी में ऐसे दिखाई देते हैं जैसे तैर रहे हो। यहां चारों तरफ जंगल हैं। यहां के निवासियों के लिए आने-जाने का कोई साधन नहीं है। विषैले जीव-जंतु और हिंसक पशुओं का डर बना रहता है।

पाताल में बसे 12 गांव

मध्य प्रदेश के इस भू-भाग में लगभग 20 गांव बसे थे। लेकिन प्राकृतिक प्रकोप के चलते अब मात्र 12 गांव ही बचे हैं। इनमें रातेड, चमटीपुर, गुंजाडोंगरी, सहरा, पचगोल, हरकिछार, सूखाभांड, घुरनीमालनी, झिरनपलानी, गैलडुब्बा, घटनलिंग, गुढीछातरी तथा घाना हैं। सभी गांव के नाम भी आदिवासी संस्कृति से जुड़े-बसे हैं। यहां रहने वालों की लाइफस्टाइल और बोली भाषा बिल्कुल अलग है।

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