Bheema Koregaon Case: एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को भीमा कोरेगांव जांच समिति ने भेजा समन

Bheema Koregaon Case: आयोग ने शरद पवार के अलावा तत्कालीन पुणे ग्रामीण के पुलिस अधीक्षक सुवेज हक, तत्कालीन जिलाधिकारी सौरभ राव को भी समन जारी किया गया था।

Update: 2022-04-27 17:55 GMT

एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार: Photo - Social Media

Mumbai: महाराष्ट्र में इन दिनों अजान और हनुमान चालीसा (Ajan and Hanuman Chalisa) को लेकर चल रही सियासी रस्साकशी के बीच भीमा कोरोगांव (Bhima Korogaon) का मामला एकबार फिर चर्चा में आया है। भीमा कोरोगांव जांच समिति ने एनसीपी प्रमुख एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार (Former Union Minister Sharad Pawar) को गवाह के तौर पर समन जारी कर 5 और 6 मई को मुंबई में सुनवाई के दौरान गवाह के तौर पर मौजूद रहने को कहा है। इससे पहले भी जांच समिति ने शरद पवार को समन भेज 2 अगस्त 2021 को मुंबई में उनके सामने पेश होने के लिए कहा था।

जांच आयोग ने शरद पवार के अलावा तत्कालीन पुणे ग्रामीण के पुलिस अधीक्षक सुवेज हक, तत्कालीन एसपी संदीप पखाले, पुणे के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर रविंद्र सेनगांवकर और तत्कालीन जिलाधिकारी सौरभ राव को भी समन जारी किया गया था।

जाति हिंसा को लेकर एनसीपी प्रमुख के विवादित बयान

दरअसल, सामाजिक समूह विवेक विचार मंच के सदस्य सागर शिंदे ने आयोग के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, जिसमें 2018 की जाति हिंसा के बारे में मीडिया में एनसीपी प्रमुख के कुछ बयानों के मद्देनजर उन्हें तलब करने की मांग की गई थी। शरद पवार ने हिंसा के बाद किए गए अपने एक प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था कि दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े ने पुणे शहर के बाहरी इलाके और इसके आसपास के इलाके भीमा कोरेगांव में अलग तरह का माहौल बनाया था।

क्या है भीमा कोरेगांव मामला

दरअसल, हर साल जनवरी की पहली तारीख को भीमा कोरोगांव में बड़ी संख्या में दलित समुदाय के लोग जुटकर उन दलितों को श्रध्दांजलि देते हैं जिन्होंने 1818 में पेशवा की सेना के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी। 1 जनवरी 2018 को ब्रिटिश सेना और पेशवा की बीच लड़ाई के 100 साल पूरा होने के उपलक्ष्य में वहां बड़ा कार्यक्रम का आयोजन किया था। दरअसल, इस जंग में पेशवा की सेना की करारी हार हुई थी और मराठा शासन का लगभग अंत हो गया था।

दलित समुदाय के लोग इस जंग को काफी अहमियत देते हैं। 1 जनवरी 2018 को पुणे में कार्यक्रम के दौरान हिंसा भड़क उठी, जिसमें एक व्यक्ति की जान भी चली गई थी। इस दौरान 80 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया था, सरकारी संपत्तियों को भी बड़े पैमाने पर क्षति पहुंची थी।

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