Maharashtra Political Crisis: क्या महाराष्ट्र में बन रहे हैं राष्ट्रपति शासन के आसार, जानें क्या है प्रावधान

Maharashtra Crisis: महाराष्ट्र इन दिनों सियासी उथलपुथल को लेकर सुर्खियों में है। कुछ नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री से महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है

Update:2022-06-25 16:44 IST

Political Crisis in Maharashtra: राजनीतिक रूप से देश का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र (Maharashtra) इन दिनों सियासी उथलपुथल को लेकर सुर्खियों में है। राज्य में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की मिली जुली सरकार है। इस गठबंधन की अगुवाई शिवसेना सुप्रीमो और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) कर रहे हैं। शिवसेना (Shiv Sena) में हुई बगावत ने महाविकास अघाड़ी सरकार (mahavikas aghadi government) की नींव हिला दी है। शिवेसना के विद्रोही गुट के नेता एकनाथ शिंदे लगातार मजबूत हो रहे हैं। गौहाटी में बागी विधायकों के साथ डेरा जमाए शिंदे ने 38 विधायकों के समर्थन का दावा किया है। उन्होंने इसकी सूची भी जारी की है।

अगर ये दावा सच है तो उद्धव सरकार (Uddhav Sarkar) अल्पमत में आ चुकी है। 38 विधायकों के समर्थन साथ अब बागी शिंदे गुट पर दलबदल कानून भी नहीं लग सकता है। ऐसे में सिय़ासी जानकार मानकर चल रहे हैं कि महाविकास अघाड़ी सरकार के अब गिनती के दिन शेष रह गए हैं। लेकिन इस सरकार के पतन के बाद क्या होगा, इस पर भी खूब मंथन हो रहा है। कुछ नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री (Union Home Minister) से महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन (President Rule) लगाने की मांग की है। तो आइए समझते हैं कि किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन की घोषणा होती है?

संविधान में है राष्ट्रपति शासन का प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 356 के मुताबिक, यदि राष्ट्रपति को लगता है कि राज्य सरकार ठीक से काम नहीं कर पा रही है तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। ऐसा आवश्यक नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही ये फैसला लें। यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार किसी नागरिक अशांति जैसे कि दंगे, जिनसे निपटने में राज्य सरकार फेल रही हो, की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है। इसके अलावा अनुच्छेद 365 में प्रावधान है कि यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों को नहीं मानती है तो भी राज्य में राष्ट्रपति शासन (President Rule) लगाया जा सकता है।

संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन जरूरी

संविधान में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो माह के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है। अगर इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है इसका राज्य सभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक माह के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है।

राष्ट्रपति शासन केंद्रीय कैबिनेट की सहमति से लगाया जाता है। इस दौरान सत्ता की कमान राज्य के राज्यपाल के हाथ में आ जाती है। यदि वह चाहें तो छह महीने तक सदन निलंबित रख सकते हैं। 6 महीने से पहले सरकार बनने की स्थिति में इसे हटाया भी जा सकता है। छह माह बाद भी यदि कोई दल बहुमत नही जुटा पाता है तो फिर राज्य में दोबारा चुनाव कराए जा सकते हैं। बता दें कि राष्ट्रपति शासन की अवधि 6-6 माह कर केवल तीन साल तक आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके बाद चुनाव जरूरी है।

इन परिस्थितियों में लगता है राष्ट्रपति शासन

संविधान में ऐसी कई परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जब राज्य में राष्ट्रपति शासन (President Rule) लगाया जा सकता है। जैस –सत्तारूढ़ गठबंधन टूट जाए और सरकार बहुमत खो दे, राज्य की शांति व्यवस्था बनाने में सरकार विफल रहे, विधानसभा मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं कर पाए, राज्य सरकार संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन न कर पाए, राज्य का संवैधानिक तंत्र लड़खड़ा जाए, चुनाव के बाद किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत न मिले, किसी कारणवश राज्य में चुनाव समय पर न हो सके।

राष्ट्रपति शासन और बीएमसी चुनाव का कनेक्शन

महाराष्ट्र में सियासी भूचाल ऐसे समय में आया है, जब इसी साल देश की सबसे अमीर महानगरपालिका बृहन्मुं बई महानगरपालिका में चुनाव होने को है। दरअसल बीएमसी का कार्यकाल इस साल मार्च में ही खत्म हो गया था, लेकिन कोरोना के कारण चुनाव नहीं हो पाया और इसकी तारीख आगे खिसक गई। माना जा रहा है कि नवंबर तक बीएमसी के चुनाव हो सकते हैं। बीएमसी चुनाव की अहमियत महाराष्ट्र की राजनीति में काफी है। देश की सबसे अमीर महानगरपालिका पर शिवसेना साल 1996 से कब्जा कर बैठी है। वहीं कांग्रेस 1995 के बाद से सत्ता से बाहर है।

सूबे में 15 साल तक लगातार सरकार चलाने वाली कांग्रेस पॉवर में होने के बावजूद शिवसेना को बीएमसी से उखाड़ नहीं पाई। इससे समझा जा सकता है कि बीएमसी शिवसेना का कितना मजबूत गढ़ है। लंबे समय तक राज्य की सत्ता से बाहर रहने वाली शिवसेना के लिए बीएमसी एक दुधारू गाय रही है। 2014 के बाद से बीजेपी की नजर बीएमसी की सत्ता पर रही है। 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। तब बीजेपी को 82 और शिवसेना को 84 सीटें मिली थी। दिलचस्प बात ये है कि उस दौरान दोनों केंद्र और राज्य में मिलकर सरकार चला रहे थे।

शिवसेना के सत्ता में होने के कारण माना जा रहा था कि पार्टी एकबार फिर बीएमसी चुनाव (BMC election) निकाल ले जाएगी। लेकिन पार्टी में हुए जबरदस्त बगावत के बाद पासा पलटता नजर आ रहा है। ऐसे में यदि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगता है तो इसका सबसे अधिक फायदा बीजेपी को मिलेगा, क्योंकि राज्य की मशीनरी पर अप्रत्यक्ष रूप से उसका प्रभाव होगा। बीजेपी इसके जरिए 2017 में रह गई कसक को इसबार पूरा करने की कोशिश करेगी। बता दें कि बृहन्मुं बई महानगरपालिका (बीएमसी) ने 2022-23 के लिए करीब 46 हजार करोड़ रूपये का बजट पेश किया है।

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