Shivaji Statue Collapse Case: सरकार, नौसेना, PWD और ठेकेदार... सामने आए कई किरदार

Shivaji Statue Collapse Case: सिंधुदुर्ग महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फीट ऊंची मूर्ति ढहने को लेकर प्रदेश में सियासत गरमाने लगी है। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि शुरुआत में 6 फीट ऊंची मूर्ति के लिए अनुमति दी गई थी, लेकिन बाद में उसको 35 फीट ऊंचा बनाया गया।

Update:2024-09-01 17:28 IST

Shivaji Statue Collapse Case

Shivaji Statue Collapse Case: महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में पिछले दिनों छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा ढहने को लेकर अब राजनीति गरमाने लगी है। इस घटना के लिए प्रधानमंत्री मोदी, सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार माफी मांग चुके हैं। इस बीच मीडिया रिपोर्ट में इस मामले में यह पता लगाने की कोशिश की है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सामाग्री और मूर्ति की ऊंचाई को किसने मंजूरी दी थी। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि शुरुआत में 6 फीट ऊंची मूर्ति के लिए अनुमति दी गई थी, लेकिन बाद में इस मूर्ति को 35 फीट ऊंचा बनाया गया। वहीं कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि मूर्ति मिट्टी से बनाई जानी थी, लेकिन बाद में इसे स्टेनलेस स्टील और अन्य सामग्रियों से बनाया गया।

मूर्ति निर्माण के लिए ऐसा है नियम

इस मामले में विपक्ष ने बड़े घोटाले का आरोप लगाया है और महाराष्ट्र सरकार से इस्तीफे की मांग की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पता चलता है कि जब भी किसी प्रसिद्ध और ऐतिहासिक व्यक्ति की मूर्ति बनानी होती है तो प्रोफेसर राजीव मिश्रा की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र कला निदेशालय से मंजूरी लेनी होती है। भारतीय नौसेना दिवस के अवसर पर नौसेना डॉकयार्ड द्वारा कलाकार जयदीप आप्टे को टेंडर दिया गया था। अब आरोपी मूर्तिकार जयदीप आप्टे ने छत्रपति शिवाजी महाराज की मिट्टी की मूर्ति बनाई और महाराष्ट्र कला निदेशालय से मंजूरी के लिए संपर्क किया। विभाग के शीर्ष सूत्रों की मानें तो विभाग की भूमिका केवल चेहरे के हाव-भाव, शारीरिक अनुपात, कलात्मक विशेषताओं और समानता को मंजूरी देना होता है। उदाहरण के लिए शिवाजी महाराज की मूर्ति संभाजी महाराज या अन्य की तरह नहीं होनी चाहिए, यह केवल शिवाजी जैसी दिखनी चाहिए। विभाग के सूत्रों के अनुसार, जो भी एजेंसियां महाराष्ट्र में मूर्ति बनाना चाहती हैं, उन्हें मंजूरी के लिए महाराष्ट्र कला निदेशालय में आवेदन करना होता है। विभाग के पास एक समिति है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और मुख्य रूप से इतिहासकार होते हैं। समिति की भूमिका चेहरे की विशेषताओं, हाव-भाव, शारीरिक अनुपात और उस व्यक्ति के साथ इसकी समानता को देखना होता है जिसकी मूर्ति बनाई जानी है।


6 फीट की बनी थी मूर्ति

सूत्रों के अनुसार जयदीप आप्टे ने 6 फीट ऊंची मिट्टी की मूर्ति बनाई थी और समिति द्वारा समानता परीक्षण में हरी झंडी मिलने के बाद महाराष्ट्र कला निदेशालय ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। विभाग ने भारतीय नौसेना को मंजूरी दे दी थी। सबसे अहम बात यह है कि विभाग के पास ऊंचाई और उपयोग की जाने वाली सामग्री तय करने का कोई अधिकार नहीं है। मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऊंचाई और सामग्री के बारे में विभाग (महाराष्ट्र कला निदेशालय) को सूचित करने का कोई नियम नहीं है।


विभाग मूर्ति के काम की निगरानी भी नहीं कर सकता है

यहां तक कि विभाग मूर्ति के काम की निगरानी भी नहीं कर सकता है। यह काम एक एजेंसी का होता है जिसके द्वारा अनुबंध दिया जाता है और इस मामले में यह भारतीय नौसेना थी। नौसेना किसी भी ऊंचाई की मूर्ति बना किसी भी सामग्री का उपयोग एक स्ट्रक्चर कंसलटेंट की मंजूरी के साथ कर सकती है, जो स्थिरता प्रमाण पत्र देता है। इस मामले में गिरफ्तार आरोपी चेतन पाटिल को अपनी कंपनी के माध्यम से मूर्ति के लिए स्थिरता प्रमाण पत्र देना था।


नौसेना ने जवाब देने से किया इनकार

गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी मूर्ति का आधार बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए पीडब्ल्यूडी से अनुमति लेनी होती है। सूत्रों अनुसार इस मामले में स्ट्रक्चर कंसलटेंट चेतन पाटिल ने पीडब्ल्यूडी से आधार के लिए अनुमति ली थी। निर्माण और निर्माण कार्य की निगरानी भारतीय नौसेना द्वारा की जानी थी। नौसेना ने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मामले में जांच चल रही है और जांच पूरी होने के बाद तथ्य सामने आएंगे। मूर्ति निर्माण के लिए आदेश नौसेना ने दिया था। नौसेना डॉकयार्ड, मुंबई ने भारतीय नौसेना दिवस के अवसर पर जयदीप आप्टे को वर्क ऑर्डर दिया था। चेतन पाटिल को मूर्ति और बेस के लिए स्ट्रक्चर कंसलटेंट नियुक्त किया गया था। निर्माण की निगरानी भारतीय नौसेना द्वारा की जानी थी। हालांकि भारतीय नौसेना ने कहा कि उद्घाटन के बाद मरम्मत और रखरखाव की देखभाल करना राज्य सरकार की एजेंसियों की जिम्मेदारी थी।

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