उद्धव के लिए चैलेंजिग बना BJP का चक्रव्यू, राज ठाकरे और राणा दंपति एपिसोड ने बढ़ाई शिवसेना की बैचेनी
Maharashtra: हिंदुत्व की आक्रमक सियासी पिच पर बैंटिंग करने वाली शिवसेना इन दिनों इसी मुद्दे पर घिरती नजर आई है। शिवसेना की मजबूरी है कि वो अब वैसा आक्रमक स्टैंड नहीं ले सकती।
Maharashtra Politics: हिंदुत्व की आक्रमक सियासी पिच पर बैंटिंग करने वाली शिवसेना (Shiv Sena) इन दिनों इसी मुद्दे पर घिरती नजर आई है। अपने से ठीक उलट विचारधारा वाली एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) के साथ गठबंधन कर सत्ता में आई सेना पर दोस्त से दुश्मन बनी बीजेपी (BJP) ने पहले दिन से ही हिंदुत्व के साथ समझौता करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया था। बीजेपी इसे अप्राकृतिक गठबंधन बता शिवसेना पर हमले लगातार करते रही। दरअसल, महाविकास अघाड़ी सरकार (maha vikas aghadi government) की अगुवाई कर रही शिवसेना की मजबूरी है कि वो अब वैसा आक्रमक स्टैंड नहीं ले सकती, जैसा वो पहले लिया करती थी।
बीजेपी ने शिवसेना के इसी मजबूरी को भांपते हुए उसे हिंदुत्व की पिच पर हिट विकेट करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया। बीजेपी को पता है कि वो महाराष्ट्र में जितना आक्रमक हिंदुत्व की राजनीति करेगी शिवसेना के लिए स्थिति उतनी असहज होती जाएगी। एनसीपी और कांग्रेस के आर्शीवाद से सरकार चला रहे उद्धव ठाकरे उनता मुखर नहीं हो पाएंगे, जिसके लिए दिवंगत बालासाहेब ठाकरे की शिवेसना जानी जाती है। महाराष्ट्र की राजधानी का राज ठाकरे एपिसोड और राणा दंपति एपिसोड बीजेपी के इसी रणनीति का हिस्सा है।
राज ठाकरे के तेवर से परेशान शिवसेना
शिवसेना में एक समय दिवंगत बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) के बाद सबसे ताकतवर शख्स माने जाने वाले राज ठाकरे उनके सियासी उत्तराधिकार के तौर पर देखे जाते थे। बालासाहेब जैसी आक्रमक शैली और कार्टून के जरिए विरोधियों पर हमला बोलने वाले राज मृदुभाषी अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से सियासी रूप से कहीं अधिक परिपक्व माने जाते थे। उद्धव की सियासत में कम सक्रियता को देखते हुए राज को लगता था कि एकदिन पार्टी की कमान वो ही संभालेंगे, लेकिन सियासत में टैलेंट पर अक्सर खून का रिश्ता भारी पड़ जाता है। और यही राज ठाकरे के साथ भी हुआ। नतीजतन बाद में उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी और वो राज्य की सियासत में अपने लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के जरिए नई जमीन तलाशने में लग गए।
बीते दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली करार हार के बाद नेपथ्य में गए राज ठाकरे के लिए बड़ा मौका तब आया, जब मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी – शिवसेना का दशकों पुराना गठबंधन टूट गया। हिंदी भाषी और उत्तर भारत के लोगों के खिलाफ आक्रमक राजनीति करने वाले राज ठाकरे से बीजेपी दूरी बनाकर रखती थी। लेकिन बदली परिस्थितियों में बीजेपी और राज दोनों एक दूसरे की जरूरत बन गए।
राज ठाकरे के लिए बीजेपी की शर्त
राज ठाकरे के सामने बीजेपी ने सबसे पहली शर्त ये रखी कि वो हिंदी भाषी और उत्तर भारत के लोगों के खिलाफ आक्रमक राजनीति करना बंद करे और हिंदुत्व की राजनीति करें। इसके बाद राज ठाकरे ने न केवल अपने पार्टी के झंडे में बदलाव किया बल्कि अपने सियासी ट्रैक को बदलते हुए आक्रमक हिंदुत्व की राजनीति पर चल पड़े। राज ठाकरे अब लगातार शिवसेना और अपने चचेरे भाई मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमलावर हैं।
अजान और लाउडस्पीकर विवाद के जरिए वो उस हिंदुवादी मराठा राजनीति के स्पेस को लेना चाहते हैं, जो अभी तक शिवसेना के पास है। बीजेपी और मनसे को लगता है कि शिवसेना में ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है जो एनसीपी और कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन से नाखुश है। उन्हें लगता है कि भविष्य़ में शिवसेना के नेताओं के लिए स्वभाविक पसंद राज ठाकरे हो सकते हैं। क्योंकि शुरूआत में उद्धव से पहले राज ही शिवसेना का काम देखते थे और बाला साहेब के काफी करीबी भी थे। यही वजह है कि शिवसेना राज ठाकरे के उभार से परेशान है।
उद्धव ठाकरे का रिएक्शन
महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा और लाउडस्पीकर विवाद के कारण बैकफुट पर नजर आ रही शिवसेना अब कमबैक करने की कोशिश कर रही है। राज ठाकरे की आक्रमक बयानबाजी और राणा दंपति द्वारा मुंबई में शनिवार को किए गए हाईवोल्टेज सियासी ड्रामे के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बीजेपी की रणनीति को समझ चुके हैं। लिहाजा आज उन्होंने राणा दंपति को हाईकोर्ट से फटकार मिलने के बाद विरोधियों पर जोरदार हमला बोला। सीएम ठाकरे ने बीजेपी, अपने चचेरे भाई राज ठाकरे और राणा दंपति का नाम न लेते हुए जमकर निशाना साधा।
उन्होंने शिवसेना की कड़क भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा कि हनुमान चालीसा पढ़नी है तो घर पर आकर पढ़िए। इसका एक तरीका होता है, लेकिन दादागीरी करके मत आइए। अगर ऐसा करेंगे तो बाला साहब ने सिखाया है कि दादागीरी कैसे तोड़नी है। दरअसल महाराष्ट्र सीएम अपने इस बयान के जरिए शिवसेना कैडर को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि भले वो एनसीपी और कांग्रेस जैसी विरोधी विचारधार वाले दलों के साथ सरकार चला रही हो, लेकिन उसके तेवर और विचारधार में कोई बदलाव नहीं आया है। उद्धव ठाकरे के इस तेवर से स्पष्ट हो गया है कि महाराष्ट्र की सियासत में आने वाले दिनों में और अधिक हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल सकता है। विशेषकर तब जब मनसे प्रमुख राज ठाकरे हिंदुत्व का नया झंडा लेकर मुंबई की सड़कों पर उतरेंगे।
मुंबई में बीएमसी चुनाव (bmc election)
महाराष्ट्र के सियासी जानकार, वर्तमान में चल रही उठापटक को आगामी मुंबई महानगरपालिका चुनाव(बीएमसी) से भी जोड़कर देख रहे हैं। देश की सबसे धनी नगरपालिका पर लंबे समय से काबिज शिवसेना को उखाड़े फेंकने के लिए इसबार बीजेपी पूरा जोर लगाने के मूड में है। यही वजह है कि मुंबई इन दिनों राजनीतिक अखाड़ा बनता जा रहा है। राज ठाकरे की अजान पॉलिटिक्स और अमरावती सांसद नवनीत राणा (Navneet Rana) की हनुमान चालीसा पॉलिटिक्स (Hanuman Chalisa Politics) दोनों की टाइमिंग इस और इशारा भी कर रहे हैं। दरअसल राज्य में विधानसभा चुनाव में अभी दो साल का वक्त बचा है।
बीएमसी शिवसेना के लिए हमेशा से एक दुधारू गाय की तरह रही है। हजारों करोड़ की बजट वाली बीएमसी का बजट देश के कई छोटे राज्यों से भी अधिक है। लंबे समय तक विपक्ष में बैठने वाली शिवसेना के लिए ये फंड का बड़ा स्त्रोत रहा है। ऐसे में अगर सेना अपने इस किले को गंवाती है तो निश्चित तौर पर उसके लिए ये सबसे बड़ी क्षति होगी। इसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव में भी पड़ सकता है। यही वजह है कि बीएमसी के चुनाव को मिनी विधानसभा चुनाव भी कहा जाता है।