Maharashtra: इस्तीफा देने से पहले कांग्रेस को नाराज कर गए उद्धव, नाम बदलने के फैसले से खुश नहीं है पार्टी

Maharashtra Political News: उद्धव ठाकरे के इस फैसले से महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस खुश नहीं दिखी। हिंदू मतों का नुकसान होने की आशंका से पार्टी ने चुप्पी साधे रखी।

Report :  Anshuman Tiwari
Update: 2022-06-30 04:09 GMT

उद्धव ठाकरे (social media)

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र (Maharashtra Political News) में कई दिनों से चल रहे सियासी संकट के बीच आखिरकार उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray Resigning) ने बुधवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने से पहले आखिरी कैबिनेट बैठक में उन्होंने बड़ा हिंदुत्व कार्ड चलते हुए औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव रखने का फैसला किया। शिवसेना (Shivsena) की ओर से काफी दिनों से यह मांग की जा रही थी मगर उन्होंने अपने ढाई साल के राज्य के आखिरी लम्हों में यह फैसला लिया। 

वैसे उद्धव के इस फैसले से महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस खुश नहीं दिखी मगर हिंदू मतों का नुकसान होने की आशंका से पार्टी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। पार्टी नेताओं के एक बड़े वर्ग का मानना है कि जाते-जाते उद्धव सरकार को यह फैसला नहीं लेना चाहिए था। राज्य कांग्रेस के नेताओं ने इस बाबत दिल्ली के बड़े नेताओं से संपर्क भी साधा मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसके साथ ही उद्धव ने पुणे का नाम बदलकर जीजाऊ नगर रखने की कांग्रेस की मांग भी नहीं पूरी की। 

कांग्रेस के कई नेता फैसले से नाखुश 

दरअसल अंतिम कैबिनेट बैठक में ही इस बात का संकेत मिल गया था कि उद्धव मुख्यमंत्री पद पर अधिक समय तक नहीं रहने वाले हैं। शिवसेना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से बहुमत परीक्षण पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद उद्धव ने फेसबुक लाइव में अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। अंतिम कैबिनेट बैठक में उन्होंने सभी साथियों का शुक्रिया भी अदा किया। अंतिम कैबिनेट बैठक हिंदुत्व का बड़ा कार्ड चलने के लिए ही बुलाई गई थी और इस बैठक में औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव रखने का फैसला किया गया।

कांग्रेस के नेता जाते-जाते उद्धव की ओर से लिए गए इस फैसले से खुश नहीं है। पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि उद्धव सरकार में शामिल कांग्रेस के मंत्रियों को इस फैसले से दूरी बनानी चाहिए थी। महाराष्ट्र कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इस बाबत पार्टी के वरिष्ठ नेता मलिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल से संपर्क भी साधा मगर मौजूदा सियासी हालात में इन दोनों नेताओं ने भी इस मामले में दखल देना उचित नहीं समझा।

इसलिए नहीं किया फैसले का विरोध 

सियासी जानकारों का कहना है कि पार्टी हाईकमान ने सोच समझकर इस मामले से दूरी बनाए रखी। दरअसल कांग्रेस को इस फैसले का विरोध करने पर हिंदुओं के नाराज होने का डर सता रहा था। वैसे कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई पहले भी इन दोनों स्थानों का नाम बदलने के प्रस्ताव का विरोध कर चुकी है। कांग्रेस का यह रुख जानने के बावजूद उद्धव ठाकरे जाते-जाते हिंदुत्व का बड़ा कार्ड खेलने में कामयाब रहे। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि जाते-जाते उन्होंने इस फैसले में कांग्रेस को भी शामिल कर लिया। कांग्रेस चाहकर भी खुलकर इस प्रस्ताव का विरोध नहीं कर सकी। दरअसल बागियों के रुख को देखते हुए शिवसेना आगे भी हिंदुत्व की पिच पर खुलकर बैटिंग करना चाहती है और इसी कारण उसने यह फैसला किया।

कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि पार्टी अब इस फैसले का हिस्सा बन चुकी है और आने वाले दिनों में उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। औरंगाबाद का नाम बदलने को लेकर लंबे समय से राजनीति हो रही थी और उद्धव ठाकरे ने 8 जून को औरंगाबाद में हुई शिवसेना की रैली के दौरान आने वाले दिनों में शहर का नाम बदलने की घोषणा की थी। जाते-जाते वे अपनी इस घोषणा को पूरा करने में कामयाब रहे।

कांग्रेस की मांग की अनदेखी 

अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक के दौरान उद्धव ठाकरे ने शिवसेना का एजेंडा तो पूरा कर दिया मगर कांग्रेस की ओर से की जा रही एक मांग की अनदेखी कर दी। जानकारों का कहना है कि उद्धव की कैबिनेट बैठक में कांग्रेस की ओर से पुणे का नाम बदलने की मांग की गई थी। कांग्रेस की मांग थी कि पुणे का नाम बदलकर जीजाऊ नगर रखा जाना चाहिए। दरअसल छत्रपति शिवाजी की मां का नाम जीजाबाई था और उन्हें महाराष्ट्र में जीजाऊ नाम से भी जाना जाता है। 

इसी कारण कांग्रेस की ओर से यह मांग रखी गई थी मगर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की ओर से की गई इस मांग की अनदेखी कर दी। उद्धव ठाकरे ने कैबिनेट बैठक के दौरान सभी साथियों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि यदि ढाई साल के राज में मुझसे कोई गलती हुई हो तो मुझे माफ कर दें। उद्धव के इस रुख से बैठक के दौरान ही साफ हो गया था कि वे अब जल्द ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट होने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने का बड़ा ऐलान कर दिया। 

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