मैं भी उड़ना चाहती हूँ, वक्त का पंख लगा कर, जैसे वक्त उड़ जाता है

Update:2018-01-05 15:31 IST

सरोज तिवारी आर्यावर्ती

मैं भी चाहती हूँ उड़ना

वक्त का पंख लगा कर,

जैसे वक्त उड़ जाता है,

ओझल हो जाता है....

अदृश्य पंखों के साथ।

 

मैं भी उड़ना चाहती हूँ,

वक्त के साथ...........

गोया -पल-क्षण-घरी,

प्रहर-दिन-रात.........,

सप्ताह-पक्ष-महीने-साल

निकल जाते हैं...........

बहुत कुछ दिखाकर

बहुत कुछ सिखाकर

जो देख लेता है.....

जो सीख लेता है

‘वो’ वक्त का बादशाह होता है,,

जो नहीं देखता, नहीं सीखता..

वह हारा हुआ जुआरी ..........,,

 

मैं हारना नहीं चाहती

जीतना चाहती हूँ

जिन्दगी की जंग में

मैं उड़ना चाहती हूँ,

वक्त का पंख लगा कर

एक दिन उड़ जाऊँगी

मैं भी....,,

आप भी,,

हम सभी

अदृश्य पंखों के साथ

अदृश्य दुनियाँ में......,

वक्त के साथ..........

हम अदृश्य हो जाएँगे

सिर्फ वक्त रह जाएगा,,

इस जहाँ में............

जी लो जिन्दगी...

हर पल...............

बाँट लो खुशियाँ

पल-पल की........

क्यों कि

वक्त उड़ जाएगा

अदृश्य पंख लगा कर

और

एक दिन हम सब

इस लिए.................

मैं उड़ना चाहती हूँ

वक्त का पंख लगा कर।

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