कविता, मंजिल: हाथ पे रख हाथ क्यों बैठा है प्यारे, मंजिलें कब से खड़ीं बाँहे पसारे

Update:2018-01-19 15:53 IST

रमा प्रवीर वर्मा

हाथ पे रख हाथ क्यों बैठा है प्यारे

मंजिलें कब से खड़ीं बाँहे पसारे

 

ये सफर तुझको ही तय करना पड़ेगा

फिर भला तू रास्ता किसका निहारे

 

ठोकरों की अब नहीं परवाह करना

बस हवाओं के समझ लेना इशारे

 

क्या हुआ गर खार का मौसम हुआ तो

लौट आएँगी कभी फिर से बहारें

 

हौसलों की हाथ में पतवार है तो

दूर आँखों से नहीं होंगे किनारे

 

गम न कर तन्हाइयों का, देख भी ले

रात, चलते हैं अकेले ही सितारे

 

है जिन्हें खुद पर यकीं सबसे जियादा

जिंदगी में वे नहीं ढूंढें सहारे

 

डर नहीं उसको अँधेरे का जरा भी

चाँद सूरज रास्ता जिसका सँवारे

 

जब रमा थामेंगे दामन कोशिशों का

काम सब होंगे तभी पूरे हमारे

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