Lok Sabha Election 2024: बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे?

Lok Sabha Election 2024: AAP कहती है कि उसके पास पैसा नहीं है। कांग्रेस अपने खाते फ्रीज़ होने का रोना रो रही है। देश की वित्त मंत्री के पास चुनाव लड़ने का पैसा नहीं है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2024-04-23 09:40 IST

Lok Sabha Election 2024 (Photo: Social Media)

Lok Sabha Election 2024: दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव, सबसे महंगा चुनाव और सबसे हैरतअंगेज चुनाव, धन्य हैं हम देशवासी जो इसके हिस्सेदार हैं, इसके गवाह हैं। जरा सोचिए, 140 करोड़ जनसंख्या, 98 करोड़ से ज्यादा वोटर, तीस करोड़ निष्क्रिय वोटर , एक विशाल क्षेत्र, हजारों प्रत्याशी। इनको मैनेज करते हुए चुनाव करा लें जाना कोई मजाक नहीं है। ये एक करिश्मा ही है।

करिश्मा यह भी है कि एक अमीर देश न होते हुए भी हम 2024 के आम चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये का खर्च कर रहे हैं। करिश्मा यह भी है कि पार्टियां अपने को ठनठन गोपाल घोषित कर रही हैं। आम आदमी पार्टी कहती है कि उसके पास पैसा नहीं है। कांग्रेस अपने खाते फ्रीज़ होने का रोना रो रही है। देश की वित्त मंत्री कह चुकी हैं कि उनके पास चुनाव लड़ने का पैसा नहीं है। जनता से पूछिए तो चुनाव लड़ने के नाम पर सब जेबें पलट देते हैं। सब महंगे चुनाव से सहमे हुए हैं। लेकिन वहीं दूसरा पहलू कुछ और ही है। वोटरों को खरीदने के लिए देश में कैश, ड्रग्स, शराब, गिफ्ट्स की सुनामी सी आई हुई है।

जरा सोचिए, देश में लोकसभा चुनावों के 75 साल के इतिहास में इस साल अब तक की सबसे अधिक "प्रलोभन जब्ती" हो चुकी है। प्रलोभन जब्ती यानी वोटरों को लालच देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चीजों को जब्त करना। हमारे चुनाव आयोग ने खुद बड़े फख्र से ऐलान किया है कि उसने 1 मार्च से 13 अप्रैल के बीच नकदी, ड्रग्स, शराब, सोने-चांदी जैसी कीमती धातुएं और जो मुफ्त की गिफ्ट्स जब्त की हैं, जिनकी वैल्यू 4,650 करोड़ रुपये की है। पिछले आम चुनाव से यजब्ती 34 फीसदी ज्यादा है। नकदी में तो 114 फीसदी की वृद्धि देखी गई, जबकि शराब और कीमती धातु की जब्ती में क्रमशः 61 फीसदी और 43 फीसदी की वृद्धि हुई। मूल्य के हिसाब से सबसे अधिक वृद्धि नशीली दवाओं की जब्ती में हुई। यह 62 फीसदी बढ़कर 2,068 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।



पकड़ा पकड़ी में राजस्थान टॉप पर

ये तो कुछ नहीं। चुनाव आयोग ने तो यह भी बताया है कि इस साल की शुरुआत में यानी जनवरी और फरवरी में देश भर में नकदी, शराब, ड्रग्स, कीमती धातुओं और मुफ्त वस्तुओं में कुल 7,502 करोड़ रुपये की जब्ती हुई। इससे अब तक कुल जब्ती 12000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है, जबकि चुनाव पूरा होने में अभी भी छह हफ्ते बाकी हैं।

आयोग बताता है कि पकड़ा पकड़ी में 'पधारो म्हारे देस' राजस्थान टॉप पर है। इसके बाद गुजरात और तमिलनाडु हैं। पूरे देश में वोटों की कीमत इन्हीं राज्यों में सबसे ज्यादा है, बाकियों के बारे में अब क्या ही कहा जाए। जरा गोवा के बारे में जानिए। मात्र दो लोकसभा सीटों वाले इस नन्हें से राज्य में नकदी, ड्रग्स, शराब और मुफ्त गिफ्ट्स की बारिश हो रही है। चुनाव आयोग का ही कहना है कि उसने गोवा में एक लाख लीटर से ज्यादा शराब, 15.64 करोड़ नकद, 3.23 करोड़ की ड्रग्स और 1.18 करोड़ तक की मुफ्त वस्तुएं जब्त की हैं। यही नहीं, गुजरात और बिहार जैसे ड्राई यानी टोटल शराबबंदी वाले राज्यों में चुनावी मौसम झूम कर छाया है। गुजरात मे 7,60,062 लीटर शराब पकड़ी गई वहीं बिहार में 845,758 लीटर की जब्ती दर्ज की गई।


मेहनत और सतर्कता का गौरवशाली बखान

ये है वोटों की कीमत और जीतने का दांव। चुनाव आयोग ने अपनी मेहनत और सतर्कता का गौरवशाली बखान तो कर दिया । लेकिन एक सवाल पर मौन है। सवाल यह है कि जो 12,000 करोड़ रुपये का माल पकड़ा वो था किसका? जरा हम भी तो जानें उस पार्टी, प्रत्याशी, समर्थक का नाम। लेकिन आयोग यह नहीं बताता। धरपकड़ वाली टीमें भी नहीं बतातीं। कभी नहीं बतातीं। पिछले कोई चुनाव उठा कर देख लीजिए, इस रहस्य का खुलासा हो ही नहीं पता। जब्ती तो ड्रग्स, शराब, नकदी और तमाम तरह की चीजों की होती है । लेकिन ये समान किसका था ये जानकारी सामने नहीं आती। जिनके कब्जे से जब्ती की गई है उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई, किसी को क्या सज़ा हुई ये भी रहस्य बना रहता है। कितना ही अच्छा हो अगर चुनाव आयोग इन रहस्यों से भी पर्दा हटा दे।

एक बात और, ऐसा माना जाता है कि किसी भी चीज की जब्ती 100 फीसदी नहीं होती। यानी जितना माल पकड़ा जाता है उसका कई कई गुना पकड़ में आ ही नहीं पाता। नकदी से भरी एक कार पकड़ी जाती है । लेकिन कितनी पकड़ में नहीं आतीं। उनका क्या? ये तो डाल डाल पात पात का खेल है। यह खेल भी तभी है जब निर्वाचन आयोग अपने आँख पर गांधारी की तरह पट्टी बाँध रखा है। देश का बच्चा बच्चा जनता है कि तमाम दलों के टिकट बिकते हैं। तमाम ऐसे दल चल रहे हैं जिनका आधार जाति है।जिनका काम जातीय वैमनस्य फैलाना है। विधायक का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम एक से दो करोड़ और सांसदी के लिए पांच करोड़ रुपये का खर्च भी जीतने की गारंटी नहीं है।यह धनराशि केवल जीत की रेस में बने रहने के लिए है। पर बेचारा निर्वाचन आयोग यह मान लेता है कि एक करोड़ रुपये से कम खर्च करके लोग सांसद बन जाते हैं। किसी भी चुनाव के समय किसी भी शहर में केवल शराब। डीज़ल पेट्रोल की खपत और गाड़ियों की बिक्री के आंकडे उठा लिये जायें तो किसी के भी होश फ़ाख्ता हो सकते हैं। इन की केवल चुनाव के समय की बिक्री पूरे साल की बिक्री को शर्मिंदा करने के लिए पर्याप्त होती है।


ड्रग्स लेकर मतदान 

अब कहें तो क्या कहें, जब चुनाव में इस हद तक स्थिति बन गई है कि ड्रग्स लेकर मतदान किया जाने लगे हैं तो फिर बाकी बचा क्या है। अभी तो लालच चल रहा है, कल को पता नहीं क्या नया आ जाये। किसी अन्य देश में शायद ही सुना देखा जाता हो। क्या वोट इतना सस्ता हो गया है या इस कदर चुनावी लोकतंत्र के प्रति मायूसी और बेज़ारी है कि वोट जैसी अमूल्य चीज बिकाऊ आइटम बन चुकी है? दो वक्त का खाना, कुछ देर का नशा और कुछ नोट, बस इतने पर बिके जा रहे हैं लोग। ये बहुत गंभीर सवाल है। वोट बेचने वाले ये तो एकदम ही नहीं जानते कि वोटों के सौदागर एक एक पाई वसूलेंगे। कुछ भी मुफ्त नहीं होता, सबकी कीमत होती है जो किसी न किसी रूप में वसूली जाती है। वोटर को बताए भी कौन?


सब तो शत प्रतिशत वोटिंग कराने की कोशिश में लगे हैं। जबकि यहां अभी लोगों को वोट की वकत पढ़ाने और विक्रेता न बनने का पाठ रटाने की दरकार है। लोकतंत्र का उत्सव है, डांस ऑफ डेमोक्रेसी है । लेकिन ड्रग्स, शराब, पैसे पर चलते कुछ लोगों के उत्सव और डांस को आप क्या कहेंगे, जरा सोचिए जरूर।

( लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार।)

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