ऊर्जा का संचय और किसानों की आमदनी दोगुना करना

भारत मौजूदा समय में विश्‍व औसत की एक तिहाई ऊर्जा की खपत करता है। अगर हम ऊर्जा की खपत के विश्‍वसनीय आंकड़ों पर गौर करें, तो पता चलता है कि भारत को असमान और प्रतिस्‍पर्धी जरूरतों को पूरा करने की अनोखी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

Update:2020-12-31 19:27 IST
ऊर्जा का संचय और किसानों की आमदनी दोगुना करना

धर्मेन्‍द्र प्रधान

 

 

 

भारत मौजूदा समय में विश्‍व औसत की एक तिहाई ऊर्जा की खपत करता है। अगर हम ऊर्जा की खपत के विश्‍वसनीय आंकड़ों पर गौर करें, तो पता चलता है कि भारत को असमान और प्रतिस्‍पर्धी जरूरतों को पूरा करने की अनोखी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही उसे आयात पर निर्भरता में कटौती कर अन्‍य साधनों से खपत को पूरा करने, ऊर्जा उपलब्‍धता सुनिश्चित करते हुए ग्रिड को अनुकूल बनाने, ऊर्जा उत्‍पादन के पुराने स्रोतों के स्‍थान पर नए स्रोतों का इस्‍तेमाल करने के साथ-साथ रोजगार को बढ़ावा देकर आम जनता की मानवीय और आर्थिक पूंजी को बढ़ाने पर भी ध्‍यान देना पड़ेगा।

खासतौर से इन क्षेत्रों के लिए मुख्‍य सवाल

यह सवाल खासतौर से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्र के लिए मुख्‍य है, जिसका कि मैं प्रभारी हूं। खासतौर से ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दे ऊर्जा क्षेत्र से बहुत ही करीबी तौर पर जुड़े है। हम अपने घरेलू उपयोग के करीब 85 प्रतिशत कच्‍चे तेल और 56 प्रतिशत गैस का आयात करते हैं। ये बातें उन सभी उद्देश्‍यों को पूरा करने में बाधा उत्‍पन्‍न करती है, जिन्‍हें हम प्राप्‍त करना चाहते हैं। इस संदर्भ में जैव ईंधन इस नाजुक संतुलन को बनाने और प्राप्‍त करने का एक महत्‍वपूर्ण जरिया बन गया है।

ये भी पढ़ें: हम अटल जी को इतना याद क्यों करना चाह रहे हैं ?

पिछले कुछ वर्षों में जैव ईंधन के विविध प्रकारों जैसे इथेनॉल, कम्‍प्रेस्‍ड बायो-गैस और बायो-डीजल के क्षेत्र में हुई प्रगति का किसानों की आय पर और उनके समुदायों की खुशहाली पर सीधा सकारात्‍मक असर हुआ है और इसके साथ ही ऊर्जा के लिए हमारी आयात निर्भरता में भी कमी आई है। इस समय हमारा लक्ष्‍य 2022 तक पेट्रोल में दस प्रतिशत इथेनॉल का मिश्रण करना और 2030 तक इसे बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक लाना है। इससे वाहनों से कार्बन का उत्‍सर्जन काफी कम हो जाएगा।

गन्‍ना भारत में इथेनॉल के उत्‍पादन का प्राथमिक स्रोत

2019 के गणतंत्र दिवस परेड के दौरान भारतीय वायुसेना के विमानों ने ‘विक’ की आकृति बनाते हुए उड़ानें भरी थीं और इस दल का प्रतिनिधित्‍व कर रहे विमान में पारम्‍परिक और जैव ईंधन के सम्मिश्रण का इस्‍तेमाल किया गया था, जोकि ईंधन के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की सरकार की प्रतिबद्धता का सूचक है। भारत में इथेनॉल के उत्‍पादन का प्राथमिक स्रोत गन्‍ना और उसके सह-उत्‍पाद हैं। मंत्रालय के इथेनॉल सम्मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत 90 प्रतिशत से ज्‍यादा इथेनॉल आपूर्ति का यही मुख्‍य जरिया है। इस कार्यक्रम के जरिए संकटग्रस्‍त चीनी क्षेत्र को पर्याप्‍त पूंजी तरलता और गन्‍ना किसानों को वैकल्पिक जरिए से धन की प्राप्ति होती है। यह कार्यक्रम इथेनॉल उत्‍पादन के लिए गन्‍ने की फसल के इस्‍तेमाल को प्रोत्‍साहित करता है और इस तरह देश में चीनी के अतिरिक्‍त भंडार में भी कटौती करता है।

इथेनॉल की आपूर्ति में पिछले कुछ वर्षों में सुधार हुआ है और यह 2013-14 के 38 करोड़ लीटर के मुकाबले 2019 में 189 करोड़ लीटर हो गई है। उम्‍मीद है कि इस वर्ष चीनी/गुड़ शीरा और अनाज आधारित भट्टियों से 350 करोड़ लीटर के प्रस्‍ताव मिलेंगे। गन्‍ने के अलावा इथेनॉल का उत्‍पादन अखाद्य अनाज, बी-हैवी गुड़ शीरा और गन्‍ने के रस से भी होता है। इससे पिछले छह सालों में किसानों को चीनी मिलों और भट्टियों के जरिए करीब 35,000 करोड़ रुपये प्राप्‍त हुए हैं, क्‍योंकि तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) ने इन मिलों और भट्टियों को निर्धारित कीमत पर कुल खरीद की गारंटी दी थी।

किसानों को किए जाने वाले भुगतान के चक्र में भी सुधार हुआ

इस व्‍यवस्‍था से किसानों को किए जाने वाले भुगतान के चक्र में भी सुधार हुआ, क्‍योंकि ओएमसी ने इन भट्टियों को उनके द्वारा उत्‍पादित इथेनॉल का भुगतान मात्र 21 दिन में कर दिया, जबकि पहले चीनी मिलों से अपना भुगतान प्राप्‍त करने के लिए किसानों को महीनों तक इंतजार करना पड़ता था। हाल में लिए गए इस फैसले से, कि इस वर्ष से भारतीय खाद्य निगम के पास एकत्र अतिरिक्‍त चावल और मक्‍का भंडार का इस्‍तेमाल इथेनॉल उत्‍पादन के लिए किया जाएगा, किसानों को अपने उत्‍पाद के लिए एक वैकल्पिक बाजार मिल सकेगा।

‘जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति’ का लक्ष्‍य...

बायोडीजल के संबंध में, 2018 में तैयार ‘जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति’ का लक्ष्‍य 2030 तक डीजल में बायोडीजल का 5 प्रतिशत सम्मिश्रण करना है। इस नीति के तहत गैर-खाद्य तिलहन, इस्‍तेमाल किए जा चुके खाद्य तेल और कम समय में तैयार होने वाली फसलों से बायोडीजल के उत्पादन के आपूर्ति श्रृंखला तंत्र की स्थापना को प्रोत्‍साहन मिला है। कम समय में तैयार होने वाली इन फसलों की खेती विभिन्न राज्यों में ऐसी भूमि पर आसानी से की जा सकती है, जो इस समय बंजर हैं या जहां खाद्य फसलों को उगाना संभव नहीं हैं। इन फसलों से किसानों की आय में वृद्धि होगी। तेल विपणन कंपनियों द्वारा हाई स्‍पीड डीजल में मिश्रण के लिए की गई बायोडीजल की खरीद 2015-16 में 1.19 करोड़ लीटर थी, वह पिछले साल बढ़कर 10.55 करोड़ लीटर हो गई।

ये भी पढ़ें: बुनकरों की चमकेगी किस्मत, कल्याण हेतु प्रतिबद्ध योगी सरकार

अक्टूबर 2018 में शुरू की गई सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टूवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) योजना का उद्देश्य देश के विभिन्न अपशिष्ट बायोमास स्रोतों से कम्प्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) के उत्पादन के लिए एक इको-सिस्‍टम स्थापित करना है। एसएटीएटी के तहत 2023 तक 15 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष (एमएमटीपीए) की कुल उत्पादन क्षमता वाले 5,000 सीबीजी संयंत्र लगाने की योजना है, जो 54 एमएमएससीएमडी गैस के बराबर है। इस पहल के तहत लगभग 1.75 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित होगा और लगभग 75,000 प्रत्यक्ष रोजगार अवसर पैदा होंगे।

इस वजह से दिल्ली जैसे शहरों में बहुत ज्‍यादा वायु प्रदूषण होता है

प्रस्तावित संयंत्रों में से कई में फसल अवशेषों जैसे धान की पुआल और जैव ईंधन का उपयोग सीबीजी के उत्‍पादन के लिए किया जाएगा। ऐसे संयंत्र विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब और उत्‍तर प्रदेश में लगाना प्रस्‍तावित है। एसएटीएटी योजना से न सिर्फ जीएचजी उत्सर्जन में कमी आएगी, बल्कि फसलों के अवशेषों को जलाने की प्रवृत्ति में भी कमी आएगी, जिसके फलस्‍वरूप दिल्ली जैसे शहरों में बहुत ज्‍यादा वायु प्रदूषण होता है। इससे ग्रामीण और अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्रों में रोजगार पैदा होगा तथा किसानों को अन्य लाभों के साथ-साथ उनके अनुपयोगी जैविक कचरे से भी आय प्राप्‍त होगी। सीबीजी संयंत्रों के उप-उत्पादों में से एक जैविक खाद है, जिसका उपयोग खेती में किया जा सकता है।

किसानों की आय होगी दोगुनी

जैव ईंधन आपूर्ति श्रृंखला के मुख्‍य तत्‍व ऐसी चक्रीय ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था का निर्माण करते है, जिनसे समुदायों को पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी लाभ प्राप्‍त होते हैं। निकट भविष्‍य में ओएमसी‍ मिश्रण के लिए प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रुपये के जैव ईंधन की खरीद करेंगी। यह धन ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में वापस आएगा और किसानों की आय को दोगुना करने में इसका महत्‍वपूर्ण योगदान होगा।

अंतर्राष्ट्रीय जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं और घरेलू आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने ऊर्जा की उपलब्धता, उसकी पहुंच और वहन क्षमता, ऊर्जा उपयोग में दक्षता, ऊर्जा की स्थिरता और वैश्विक अनिश्चितताओं को कम करने के लिए सुरक्षा पर जोर दिया है। अत: जरूरत इस बात की है कि मेरे मंत्रालय के कामकाज और दृष्टिकोण को सिर्फ अंतर्राष्‍ट्रीय व्यापार पर केन्द्रित करने की जगह मानव विकास सूचकांक को दृढ़ करने पर केन्द्रित किया जाए, ताकि कतार में खड़े आखिरी गरीब व्‍यक्ति तक इसका लाभ पहुंच सकें।

(धर्मेंद्र प्रधान केंद्र सरकार के पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री हैं)

Tags:    

Similar News