डॉक्टरों की घबराहट ?

देश के गरीब, ग्रामीण और पिछड़े लोगों को भी शल्य-चिकित्सा का लाभ मिलने लगेगा। आयुर्वेद में शल्य-चिकित्सा सदियों से चली आ रही है जबकि एलोपेथी को तो सवा सौ साल पहले तक मरीज को बेहोश करना भी नहीं आता था।

Update:2020-12-13 12:28 IST
देश में डॉक्टर आंदोलन पर डॉ. वेदप्रताप वैदिक का लेख (PC: social media)

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: देश के डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी है। किसान आंदोलन के बाद अब यह डॉक्टर आंदोलन शुरु हो गया है। इन दोनों आंदोलनों का आधार गलत-फहमी है। इस गलतफहमी का कारण किसान और डॉक्टर नहीं है। उसका कारण हमारी सरकार है। उसका अहंकार है। वह जो कुछ कर रही है, वह देश के भले के लिए कर रही है। लेकिन इसके पहले कि वह कोई क्रांतिकारी कदम उठाए, वह उससे प्रभावित होनेवाले लोगों से बात करना जरुरी नहीं समझती। जो उसे ठीक लगता है या अफसर जो चाबी घुमाते हैं, सरकार आनन-फानन उसकी घोषणा कर देती है।

ये भी पढ़ें:संसद हमले की 19वीं बरसी: राष्ट्रपति समेत प्रधान मंत्री मोदी ने शहीदों को ऐसे किया याद

आयुर्वेदिक अस्पतालों में भी शल्य-चिकित्सा होगी

अब उसने घोषणा कर दी है कि आयुर्वेदिक अस्पतालों में भी शल्य-चिकित्सा होगी। यह ठीक है कि ऐसी दर्जनों छोटी-मोटी शल्य-क्रियाएं हमारे वैद्यगण सदियों से करते चले आए हैं। उन्हें अभी सिर्फ नाक, कान, आंख, गले आदि की ही सर्जरी की अनुमति दी गई है। मष्तिष्क और दिल आदि की नहीं लेकिन हमारे डॉक्टर इस पर बहुत खफा हो गए हैं। उनकी हड़ताल का कारण मुझे समझ में नहीं आ रहा है। वे कह रहे हैं कि इस अनुमति से मरीज़ों की जान को खतरा हो जाएगा। उन्हें मरीजों की जान का खतरा है या उनका धंधा चौपट होने का खतरा है ? एलोपेथी की सर्जरी काफी सुरक्षित होती है लेकिन वह इतनी खर्चीली है कि देश का आम आदमी उसकी राशि सुनकर ही कांप उठता है। अब डॉक्टर इसलिए कांप रहे हैं कि यदि वही काम वैद्य करने लगेंगे तो उनका पाखंड खत्म हो जाएगा।

आयुर्वेद में शल्य-चिकित्सा सदियों से चली आ रही है

देश के गरीब, ग्रामीण और पिछड़े लोगों को भी शल्य-चिकित्सा का लाभ मिलने लगेगा। आयुर्वेद में शल्य-चिकित्सा सदियों से चली आ रही है जबकि एलोपेथी को तो सवा सौ साल पहले तक मरीज को बेहोश करना भी नहीं आता था। डॉक्टरों को सबसे बड़ा धक्का इस बात से लगा है कि अब ये वैद्य उनके बराबर हो जाएंगे। पश्चिमी एलोपेथी और अंग्रेजी माध्यम की श्रेष्ठता ग्रंथि ने उन्हें जकड़ रखा है। इस दिमागी गुलामी से उबरने की बजाय वे इस नई पद्धति को 'मिलावटीपैथी' कह रहे हैं।

ये भी पढ़ें:भारत में वैक्सीन जनवरी से, अब कोरोना का अंत तय, इन्होंने किया एलान

मैं तो चाहता हूं कि भारत में इलाज की सभी पैथियों को मिलाकर, सबका लाभ उठाकर, डॉक्टरी का एक नया पाठ्यक्रम बनाया जाए, जिसका अनुकरण सारी दुनिया करेगी। लेकिन वैद्यों और हकीमों को शल्य-चिकित्सा का अधिकार देने के पहले सरकार को चाहिए कि वह उन्हें मेडिकल सर्जनों से भी अधिक कठोर प्रशिक्षण दे। हड़बड़ी में कोई फैसला न करे।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Tags:    

Similar News