अश्वमेध
बधाई हो, महाराज ! हम फिर जीत गये । बज रही है दश दिश हमारी विजय दुंदुभी, तक्षशिला से कामरूप कश्मीर से कन्याकुमारी
बधाई हो, महाराज !
हम फिर जीत गये ।
बज रही है दश दिश
हमारी विजय दुंदुभी,
तक्षशिला से कामरूप
कश्मीर से कन्याकुमारी
बंग,कलिंग, केरलपुत्र, सतियपुत्र
सौराष्ट्र,विदर्भ, मध्य देश
आटविक क्षेत्र,सिंधु और समूचे
गंगा यमुना के मैदानों तक ।
दौड़ रहा है हमारा अविजित अश्व
निरंतर सबको रौंदता हुआ।
मगर यह क्या ?
सब ज़न स्तब्ध हैं
नहीं जला रहा कोई दिये
बज नहीं रहे नक्कारे
और शंख घोष।
लगता है जनपदों में
नहीं रह गया है कोई
महाराज ! ताज मुबारक हो ।
अच्छा है ! जितने हों
रोग शोक में डूबे लोग,
विप्लव की सोच नहीं सकते ।
हम जानते हैं इनकी याददाश्त को
हम मल देंगे उनके घावों पर
वादों के ढेरों मरहम
कुछ दिन बाद
वे सब भूल जाएंगे ।
फिर उठाएंगे हमारा विरुद
और करेंगे चारण घोष
आप निश्चिंत रह सकते हैं महाराज
आत्मरति में डूबे हुए
इसअंतराल में !