Andra Pradesh: आंध्र में किसानों की जनवादी जीत!

Andra Pradesh: आंध्र हाईकोर्ट ने कल (3 मार्च 2022) मुख्यमंत्री वाईएसआर जगनमोहन रेड्डि (Chief Minister YSR Jaganmohan Reddy) के एक निखालिस तुगलकी निर्णय को निरस्त कर दिया। तीनों जजों ने निर्दिष्ट किया कि राजधानी एक ही रहेगी।

Written By :  K Vikram Rao
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2022-03-04 20:57 IST

आंध्र प्रदेश: Photo - Social Media

Andra Pradesh: आंध्र हाईकोर्ट (Andhra High Court) ने कल (3 मार्च 2022) मुख्यमंत्री वाईएसआर जगनमोहन रेड्डि (Chief Minister YSR Jaganmohan Reddy) के एक निखालिस तुगलकी निर्णय को निरस्त कर दिया। दिल्ली से दौलताबाद की राजधानी की भांति अमरावती के दो और टुकड़े करने का उनका प्लान था, (कर्नूल, अमरावती तथा विशाखापत्तनम)। तीन पृथक राजधानियों के निर्माण होना।

विधानसभा अमरावती में, कार्यपालिका (सचिवालय), सागरतटीय विशाखापत्तनम तथा कर्नूल में (न्यायपालिका) तय किया था। तीस हजार सीमान्त किसानों के उर्वर खेतों को जबरन कब्जियाकर बनी, राजकोष की लूट पर पली यह योजना यूपी के भूभाग तथा जनसंख्या की आधी है। यहां इकलौती राजधानी है लखनऊ। इलाहाबाद कभी थी।

राजधानी एक ही रहेगी

तीनों जजों ने निर्दिष्ट किया कि राजधानी एक ही रहेगी। तेलंगाना की राजधानी है हैदराबाद जो अविभाजित आंध्र प्रदेश की भी थी। मुख्यमंत्री का दंभभरा दावा (17 दिसम्बर 2019) का है कि इस योजना पर अब तक 47 हजार करोड़ व्यय हो चुका है। उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पहले सोनिया कांग्रेस का हिस्सा थी उन्होंने राज्य के विकेन्द्रित विकास के लिये तीन राजधानियों की योजना रची थी। नयी राजधानी की रुपरेखा तेलुगु देशम पार्टी के मुख्यमंत्री रहे एन. चन्द्रबाबू नायडू ने तेलुगु भूमि की प्राचीन वैभवशाली नगरी अमरावती, जो धर्मस्थल तिरुपति से केवल अस्सी किलो मीटर दूर है, को राजधानी चुना था।

यह नूतन राजधानी आजाद भारत में बने चण्डीगढ़ नया रायपुर, गांधीनगर आदि से कई गुना अनूठी और मनभावन होती। चन्द्रबाबू नायडू की कल्पना थी कि अमरावती में नौ उपनगर होंगे : ज्ञाननगर, स्वास्थ्य, एलेक्ट्रानिक, पर्यटन, न्याय, मीडिया, खेल, वाणिज्य, तथा प्रशासनिक। मगर चुनाव जीतते ही नये मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डि ने इस कल्पनाशील, अद्भुत कलात्मक योजना को ही समाप्त कर दिया। कृष्णा तथा गुन्टूर जिले के 29 गांवों को अमरावती का भूभाग बनाने वाला कार्य भी प्रारम्भ हो गया था।

राजशेखर रेड्डि पर आरोप

जगनमोहन रेड्डि के पिता डा. राजशेखर रेड्डि (Dr. Rajasekhar Reddy) सोनिया कांग्रेस के पुरोधा थे। उन्होंने तिरुपति में एक रोमन कैथोलिक चर्च बनवाया था, जिस पर पुरोहितों ने घोर विरोध जताया। इसे मुख्यमंत्री के लिये अपशकुन बताया था। चन्द दिनों बाद ही राजशेखर रेड्डि का हवाई जहाज गिर गया और मुख्यमंत्री का देहांत हो गया था। राजशेखर रेड्डि पर आरोप भी था कि वे आंध्र प्रदेश के वैदिक आस्थाकेन्द्रों का ईसाईकरण कर रहे है।

आंध्र के श्रमजीवी पत्रकारों की भी शिकायत रही कि पिता—पुत्र ने अकूत सम्पत्ति बनायी जिसकी केन्द्रीय संस्थानों द्वारा जांच भी की गयी थी। विशाल तेलुगु टीवी तथा दैनिक ''साक्षी'' इस रेड्डि परिवार की सम्पत्ति है। बस वहीं अवसरवादी राजनीति कि राज्यों को मनमाफिक या आज्ञाकारी बनाने हेतु उनके नेतृत्व पर वित्तीय जांच का खौफ बनाओं, ताकि उनके सांसद केन्द्रीय सरकार के पक्ष की हाजिरी बजायें।

यूं भी इस दक्षिणी राज्य का साथ भाग्य ने अक्सर नहीं दिया। आजाद भारत का यह पहला भाषावारी प्रदेश एक ही भाषा पर टूटा भी। तेलंगाना के इतिहास में विशाल आंध्र का भूभाग था। कृष्णदेव राय तथा शालिवाह द्वारा शासित यह प्रदेश नदियों से आप्लावित है। आजाद भारत के राष्ट्र को भाषावार राज्यों में पुनर्गठित करने की मांग तेलुगुभाषी, प्रखर गांधीवादी पोट्टि श्रीरामुलु के 69 दिनों बाद भूख हड़ताल के कारण शहीद होने पर नेहरु सरकार ने मानी थी। बहुभाषीय मद्रास प्रेसिडेंसी को विभाजित कर आंध्र प्रदेश की स्थापना हेतु उनका यह अनशन था।

भाषावार पहला राज्य आंध्र प्रदेश

जब प्रथम भाषावार राज्य आंध्र बना था, तो लोगों ने महसूस किया था कि स्वाधीन भारत अब जनभाषा की उपेक्षा असहाय और अक्षम्य है। मांग की गयी कि बर्तानवी साम्राज्यवाद द्वारा प्रशासकीय सुलभता के लिए बनाये गये प्रदेशों का भौगोलिक पुनर्गठन लोक भाषा के आधार पर हो। आंध्र राज्य के बनने के तुरंत बाद ही (अंग्रेजी साम्राज्यवादी सुविधा के सिद्धांत पर बने भारत राष्ट्र का) कन्नड, मलयालयम, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के आधार का सीमांकन हुआ। सिलसिला थमा जब हिन्दीभाषी हरियाणा (1 नवम्बर 1966) को निर्मित हुआ था।

राष्ट्रीय कांग्रेस के 22—26 दिसम्बर 1926 के दिन सम्पन्न 41वें सम्मेलन में काकीनाडा नगर में प्रस्ताव पारित किया था कि भाषावारी प्रदेश बनाया जाये। काकीनाडा तेलुगुभाषी क्षेत्र के गोदावरी तट पर बसी ऐतिहासिक चालुक्य वंशवाली राजधानी थी। भाषावाले प्रस्ताव के अलावा काकीनाडा का कांग्रेस अधिवेशन एक अन्य घटना के लिये भी स्मरणीय है। यह सम्मेलन मौलाना मोहम्मद अली जौहर, रामपुरवाले, की अध्यक्षता में हुआ था। मौलाना तब सभापति पद तजकर वाक आउट कर गये थे क्योंकि संगीतज्ञ पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने ''वंदे मातरम्'' गाया था। इसे इस्लाम—विरोधी बताकर मोहम्मद अली ने बहिष्कार किया। यही से भारत के विभाजन की नींव भी पड़ी थी। यह

समायोजन तथा विखण्डन का शिकार रहा। आंध्र आज फिर अल्पज्ञानी तथा स्वार्थी राजनेताओं के कारण भुगत रहा है। केन्द्र सुधरे, देशहितैषी हो तो जगमोहन रेड्डि जैसे संकुचित दिगाम वाले सूबेदारों को दुरुस्त किया जा सकता हे। वर्ना कल यूपी के विभाजनवाली पुरानी आवाज फिर तेज हो जाये तो? एक राजधानी देहरादूर बन गयी है। कही मेरठ, झांसी तथा बलिया बन जाये तो?

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