गणतंत्र दिवस विशेष : मलाणा एक गांव नहीं, लोकतांत्रिक व्यवस्था की धरोहर भी

गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन प्रत्येक भारतवासी के मन में देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति स्नेह और स्नेह की लहरें हिलोरें लेने लगती हैं। हम सभी जानते हैं कि संवैधानिक सभा के 389 सदस्यों द्वारा 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में हमारे संविधान का प्रारूप बनाया गया था। संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में इस प्रारूप समिति का गठन हुआ था।

Update:2017-01-26 15:13 IST

पूनम नेगी

लखनऊ : गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन प्रत्येक भारतवासी के मन में देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति स्नेह और स्नेह की लहरें हिलोरें लेने लगती हैं। हम सभी जानते हैं कि संवैधानिक सभा के 389 सदस्यों द्वारा 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में हमारे संविधान का प्रारूप बनाया गया था। संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में इस प्रारूप समिति का गठन हुआ था।

समिति में डॉ.भीमराव अंबेडकर के अलावा पं.जवाहर लाल नेहरू, गणेश वासुदेव मालवांकर, सी.राजगोपालचार्य, संजय पाखे, बलवंत राय मेहता, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कन्हैया लाल मुंशी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, नालिनी रंजन घोष, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और संदीप कुमार पटेल, सरोजनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, दुर्गा देवी देशमुख, हंसा मेहता और विजय लक्ष्मी पंडित प्रमुख सदस्य थे। इस महत्वपूर्ण दिवस से हमारी अनेक भावनात्मक स्मृतियां जुड़ी हैं।

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष

भारत में पूर्ण स्वराज के लिये हमारे महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत संघर्ष किया। उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दी जिससे उनके आने वाली पीढ़ी को कोई संघर्ष न करना पड़े और वो देश को आगे लेकर जाएं। उनके बलिदानों के बलबूते 26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू हुआ और एक संप्रभुतासंपन्न समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश का नया राजनैतिक स्वरूप सामने आया। पर क्या आप इस रोचक तथ्य से अवगत हैं कि विश्व के सबसे प्राचीन संसदीय लोकतंत्र का उदाहरण अपने ही देश के एक राज्य में विद्यमान है। जी हां! यह है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का मलाणा गांव। अनेक विशेषज्ञों ने इसे प्राचीनतम लोकतंत्र मानते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था की धरोहर के रूप में स्वीकार किया है।

मुगल काल से था लोकतांत्रिक व्यवस्था

गौरतलब हो कि मलाणा गांव की लोकतांत्रिक प्रणाली में अनेक विद्वानों ने अपनी अभिरुचि दिखाई है। खास बात यह है कि समुद्र तल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कुल्लू जिले के इस गांव की संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था यहां पर तब भी थी, जब देश गुलाम था। एक ओर जब पूरा देश अग्रेजों और उनके संरक्षित राजवंशों के शासन के अंतर्गत चल रहा था, तब भी यह गांव अपने संसदीय लोकतंत्र का सौंदर्य बिखेर कर सभी को आश्चर्यचकित कर रहा था। अंग्रेज ही क्यों, यहां की यह व्यवस्था उनसे भी पूर्व यानी मुगल काल में भी थी।

दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र में बसे इस गांव में प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर ज्येष्ठांग (उच्च सदन) एवं कनिष्ठांग (निम्न सदन) के चुनाव होते हैं। यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था कई अर्थों में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक व्यवस्था से विशिष्ट है। जिस "राइट टू रिकॉल, यानी वापस बुलाने के अधिकार की आज हम बात करते हैं, वह व्यवस्था यहां सदियों पूर्व से लागू है, जिसके तहत ठीक से कार्य न होने पर चयनित सदस्यों को निर्धारित अवधि से पहले ही हटाया जा सकता है।

देवता स्वयं करते हैं चुनाव

गांव में प्रचलित धार्मिक मान्यता के अनुसार उक्त दोनों सदनों के चुनाव गांव के शासक और संरक्षक जमदग्नि ऋषि (जिन्हें लोकभाषा में जमलू देवता पुकारा जाता है) के आदेशानुसार कराए जाते हैं। इस अति प्राचीन संसदीय लोकतंत्र के उच्च सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं। इनमें से 8 का चुनाव होता है और तीन को मनोनीत किया जाता है। मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों में कर्मिष्ठ, पुजारी और गुरु होते हैं। ये सभी सदस्य स्थायी होते हैं। गांव की परंपरा और प्रचलन के अनुसार इनका चुनाव देवता स्वयं करते हैं। बाकी आठ सदस्यों का चुनाव आम सहमति से होता है। रोचक तथ्य यह है कि जिन सदस्यों का चुनाव होता है, उन्हें भी यह जानकारी नहीं रहती कि उन्हें चुना जा रहा है।

दूसरी ओर निचले सदन के सदस्यों के चुनाव की अलग व्यवस्था है। इसके अन्तर्गत गांव में सदियों से रहने वाले डरानी, पलचानी, नागवानी और धमयानी परिवारों में से दो-दो सदस्य चुने जाते हैं। यानी निचले सदन के लिए भी आठ सदस्यों का चयन होता है। इस सदन के चुनाव में गांव के धाराबेहड़ और साराबेहड़ सभी परिवारों के मुखिया शामिल होते हैं। मुखिया न होने पर परिवार के वयस्क सदस्य को यह अधिकार दिया जाता है।

आज भी चलते हैं अपने ही कानून

विशेष बात यह है कि मलाणा गांव में आज भी गांववासियों के अपने ही कानून चलते हैं। गांव के लोग जमलू देवता को ही अपना शासक मानते है। ग्यारह सदस्यों पर आधारित परिषद के सदस्य स्वयं को जमलू देवता का प्रतिनिधि मानते हैं। गांव में किसी तरह के विवाद और अन्य किसी महत्वपूर्ण मसले पर चर्चा के लिए परिषद की बैठक बुलाई जाती है। यहां सभी प्रकार के निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं तथा गांववासी परिषद के फैसलों का पूरा सम्मान करते हैं।

शोधकर्ताओं के अध्ययानुसार

लुइस एम पॉल, डॉ. गोरिस, डॉ. वीरेन्द्र बांगडू, आर. तलवार जैसे कुछ शोधकर्ता ने मलाणा गांव की संसदीय लोकतंत्र व्यवस्था का अध्ययन किया है। कुछ इतिहासकार मलाणावासियों को यूनानियों का वंशज मानते हैं। उनके अनुसार, मलाणा गांव हिमालय का एथेंस है। इन इतिहासकारों का मानना है कि विश्व विजेता बनने का सपना चूर-चूर होने के बाद सिकंदर वापस यूनान की ओर जाने लगा तो उसके कुछ सैनिक मलाणा में रुक गए। इन इतिहासकारों का यह भी कहना है कि इन सैनिकों को हिमालय की दिव्यता ने आकर्षित किया। युद्ध, रक्तपात से थक और ऊबे इन सैनिकों को हिमालय के आध्यात्मिक सौंदर्य ने भरपूर आकर्षित किया और वे यहीं के होकर रह गए।

वहीं कुछ इतिहासकार मलाणावासियों को इंडो-आर्यन मानते है। कुछ अन्य इतिहासकार इस बारे में एक इतिवृत्त का उल्लेख करते हैं। इनका कहना है कि एक बार हिंदुस्तान के शहंशाह अकबर को किसी गंभीर रोग ने परेशान कर दिया। उसने इसकी चिकित्सा के अनेक उपाय किए, परंतु उसे इन सबसे कोई लाभ न हुआ। जो भी चिकित्सा पद्धतियां उस समय पर उपलब्ध थीं, उन सभी के विशेषज्ञ बुलाए गए- हकीम, वैद्य, जर्राह, तांत्रिक सभी अपने-अपने प्रत्यत्न करके हार गए पर इनमें से किसी को भी सफलता न मिली। शहंशाह अकबर भी इतने दिनों में अपनी बीमारी से निराश हो चुके थे। अपनी इस निराशा की चर्चा उन्होंने अपने मित्र व सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना से की।

रहीम श्रीकृष्ण भक्त थे, उनमें ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा थी। उन्होंने अकबर की बात सुनकर कहा-""जहाँपनाह! मैंने सुना है हिमालय की औषधियां और वहां के ऋषि सभी तरह के चमत्कार करने में सक्षम हैं। इसकी अधिक जानकारी तो राजा टोडरमल ही दे सकेंगे, क्योंकि वह इस देश की संस्कृति व हिमालय की महिमा से अधिक परिचित होंगे। राजा टोडरमल ने रहीम जी की बातों से सहमति जताई। उनकी सलाह पर बादशाह अकबर रहीम और टोडरमल के साथ हिमालय के इसी मलाणा गांव में आए। इसे मलाणावासियों की चिकित्सा का चमत्कार कहें या फिर हिमालय की आैषधियों की महिमा, बादशाह अकबर पूर्णतया स्वस्थ हो गए।

स्वस्थ होने के बाद अकबर ने प्रसन्न होकर मलाणावासियों को आजाद कर दिया तथा गांववासियों को अपने ढंग के शासन की आजादी दे दी। तभी से आज तक यहां पर इस गांव में अपने ही कानून चल रहे हैं। कहते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी यहां के संसदीय लोकतंत्र से प्रेरित थे। उन्होंने देश की संसदीय प्रणाली के निर्माण में ब्रिटेन और अमेरिका के साथ मलाणा गांव से भी प्रेरणा प्राप्त की थी।

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