बीजेपी यूपी विधानसभा चुनाव में दलित एजेंडे पर दांव लगाने जा रही थी लेकिन जेएनयू में देशद्रोही नारे को लेकर पूरे देश में हुए बवाल और इसमें विपक्ष की भूमिका के बाद पार्टी को बैठे-बैठाए मुद्दा दे दिया।
राज्यसभा में बसपा प्रमुख मायावती और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के बीच रोहित वेमुला की आत्महत्या की जांच के लिए बनी समिति में किसी दलित को शामिल न करने को लेकर गरमागरम बहस हुई। बहस से राजनीतिक हलकों में यह सवाल उछल गया कि अमेठी संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में गांधी नेहरू परिवार के राहुल को कड़ी चुनौती देने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का चेहरा हो सकती हैं।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दो दिन के दौरे पर 22 फरवरी को यूपी आए। उन्होंने बहराइच में राजा सुहेल देव की मूर्ति का अनावरण किया। राजा सुहेलदेव दलित नेता थे जिन्होंने मुगलों की सेना का डट कर सामना किया था। अमित शाह बलरामपुर भी गए और पार्टी कार्यालय अटल भवन का लोकार्पण किया। दोनों जगहों पर उनकी सभा हुई।
अमित शाह ने अपना पूरा भाषण जेएनयू मुद्दे पर ही केंद्रित रखा। उन्होंने खासकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से देशद्रोही नारे 'अफजल तेरे कातिल जिंदा हैं..' और 'भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी' को लेकर सवाल उठाए। बीजेपी अध्यक्ष ने कहा वो विश्वविद्यालय राहुल की दादी के पिता के नाम पर बना है जिन्होंने देशद्रोह के मामले को लेकर 16वां संविधान संशोधन किया था।
छात्रों का समर्थन लेने की राजनीतिक चाल के तहत राहुल जिस तरह जेएनयू पहुंचे उससे कांग्रेस को फायदे की जगह नुकसान हो गया। जेएनयू जाने के बाद राहुल इस मुद्दे पर अब पूरी तरह शांत हो गए हैं। यूपी में कांग्रेस के नेता भी इस मामले में डिफेंसिव हो गए हैं। जब जेएनयू की चर्चा होती है तो वे विषय को कहीं और मोड़ने की कोशिश करते हैं।
यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि यदि अभी चुनाव हुए तो बसपा बहुमत से अपनी सरकार बनाएगी जबकि समाजवादी पार्टी की जीत के दावे धुंधले हैं। सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव कहते हैं कि पार्टी जीतेगी और सरकार बनाएगी लेकिन जरूरत हुई तो गांधीवादी,लोहियावादी और चरणसिंहवादी मिलकर सरकार बनाएंगे। सत्तरूढ़ पार्टी कभी भी चुनाव के एक साल पहले ऐसे बयान नहीं देती लेकिन सपा को अपनी हार निश्चित दिख रही है। तीन सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं। इसमें सपा को अपनी दो सीटें गंवानी पड़ी थी। बसपा की चुनाव तैयारी पुख्ता है जो उपर से दिखाई नहीं देती ।
जेएनयू के सवाल पर सपा एकमद चुप है। पार्टी का कोई नेता कुछ बोलने को तैयार नहीं दिखता। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव लोकसभा में नपा-तुला बयान देते हैं कि देश के खिलाफ बोलने वालों को सजा दी जानी चाहिए लेकिन यह भी देखना चाहिए कि कोई निर्दोष इसमें नहीं फंसे।
संसद के चल रहे बजट सत्र में अकेले स्मृति ईरानी ने इस मुद्दे पर मोर्चा संभाला हुआ है। हालांकि राज्यसभा में अरुण
जेटली जैसे धाकड़ नेता मौजूद हैं। मावायती को अकेले स्मृति ने ही संभाला। बीजेपी लीडरशिप को अब लगने लगा है कि यूपी चुनाव में स्मृति पर दांव खेला जा सकता है। वे अमेठी में ही सही लेकिन यूपी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही हैं।
उनकी जाति पर भी सवाल नहीं उठाया जा सकता कि वे अगड़ी जाति की हैं या पिछड़ी। जन्म उन्होंने पंजाबी परिवार में लिया और विवाह के बाद पारसी हो गईं। अपनी बातों को सही तरीके से रखने और अपनी बात मनवा लेने में स्मृति को महारथ हासिल है। वे अच्छी पार्लियामेंटेरियन साबित हो रही हैं। बीजेपी चाहेगी कि संसद के चल रहे बजट सत्र में जेएनयू का मुद्दा चलता रहे ताकि इसे आगे भुनाया जा सके और चुनाव में इसका फायदा मिले।
यूपी में स्मृति, मायावती का जवाब हो सकती हैं
कल्याण सिंह के राज्यपाल बनने ओर लगभग सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद बीजेपी के पास कोई वोट कमाने वाला नेता नहीं है। पार्टी की अपनी दुश्वारियां हैं। प्रदेश बीजेपी के नेता हवा हवाई हैं। सोशल मीडिया में तो सक्रिय रहते हैं लेकिन वातानुकूलित कमरे को छोड़ कोई जनता के बीच जाना नहीं चाहता। प्रदेश बीजेपी ने अभी तक अपना अध्यक्ष भी तय नहीं किया है। आश्चर्य नहीं होगा यदि स्मृति यूपी में बीजेपी का चेहरा बनें। उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी का भी विश्वास मिला हुआ है। लिहाजा वे यूपी में मायावती का जवाब हो सकती हैं।