UP एसेंबली इलेक्शन में बिहार वाली गलती तो नहीं दोहरा रही है बीजेपी?

Update:2016-03-17 14:51 IST

vinod-kapoor

लखनऊ: बीजेपी ने यह साफ कर दिया है कि यूपी में अगले साल होने वाले चुनाव में सीएम पद के लिए वो कोई चेहरा सामने नहीं लाएगी। पिछले साल झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में पार्टी ने यही प्रयोग किया और उसे अच्छी सफलता मिल गई। हरियाणा में मनोहर खट्टर ,महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और झारखंड में रधुवर दास सीएम बनाए गए जबकि इनका नाम कभी भी सीएम पद की दौड़ में शामिल नहीं था।

बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में किरण बेदी को सीएम के तौर पर पेश किया लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। बीजेपी को वोट तो उतने ही मिले लेकिन सीटों की संख्या सिमटकर मात्र तीन रह गई ।बीजेपी थिंक टैंक को लगा कि संभवतः ये गलत निर्णय था।

हां ये सच में गलत निर्णय था क्योंकि किरण बेदी पार्टी में शामिल हुईं और उन्हें सीधे चुनाव में उतार कर सीएम प्रोजेक्ट कर दिया गया। पार्टी कैडर के साथ वो वैसा सामंजस्य नहीं बिठा पाईं जैसी उम्मीद थी। या यों कहें कि बीजेपी का ग्रास रूट वर्कर उन्हें उस तरह से स्वीकार नहीं कर पाया जैसा कि चुनाव में होता आया है।

किरण बेदी नौकरशाह और कड़क अधिकारी रही हैं। उनकी छवि भी वैसी ही है कि वो कानून के आगे किसी की नहीं सुनतीं। दिल्ली में उन्हें किरण बेदी नहीं 'क्रेन बेदी' के नाम से पुकारा जाता था। यदि किरण बेदी की जगह कोई बीजेपी का स्थानीय स्थापित नेता सामने होता तो संभवतः दिल्ली चुनाव में पार्टी की वैसी बुरी हालत नहीं होती।

बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी बिना सीएम प्रोजेक्ट किए नरेंद्र मोदी के करिश्मे से चुनाव जीतने के इरादे से उतरी। दिल्ली की हार से जली बीजेपी बिहार में छाछ भी फूंककर पीना चाहती थी। हालांकि शत्रुघ्न सिन्हा समेत कई नेता इस बारे में आलाकमान को आगाह करते रहे कि पार्टी की ओर से सीएम पद के लिए कोई चेहरा तो सामने होना ही चाहिए। बिहार चुनाव में बीजेपी सीएम का कोई उम्मीदवार नहीं होने पर हमेशा विपक्ष के निशाने पर रही।

नीतीश ,लालू और कांग्रेस नेताओं की हर सभा में ये सवाल हमेशा खड़ा किया कि सरकार बनाने का दावा कर रही इस पार्टी के पास तो सीएम होने लायक कोई है ही नहीं। बिहार के मतदाता बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के इस आरोप से कंविंस हुए और खासे प्रचार-प्रसार के बावजूद पार्टी पिछले दस साल में अपने किए प्रदर्शन से आधी सीट तक सिमट कर रह गई।

हालांकि बिहार में बीजेपी की हार का सिर्फ यही कारण नहीं था। गलत समय पर आरक्षण की समीक्षा का मोहन भागवत का बयान, टिकट बेचे जाने के आरोप, गोमांस पर गलतफहमी के कारण पिछड़े और मुसलमान मतदाता लालू, नीतीश के पक्ष में गोलबंद हो गए।

अब यूपी में भी पार्टी ने सीएम प्रत्याशी प्रोजेक्ट नहीं करने का निर्णय लिया है। यूपी बीजेपी प्रभारी ओम माथुर कहते हैं कि पार्टी बिना सीएम प्रोजेक्ट किए कार्यकर्ताओं के बल पर संगठन की ताकत से जीत हासिल करेगी।

newztrack.com ने इं​टेलिजेंस रिपोर्ट और एवीपी नेलशन न्यूज सर्वे ने अभी विधानसभा चुनाव होने पर बीजेपी को 120 से 135 सीट देकर दूसरे स्थान पर रखा है। मायावती और अखिलेश यादव के बाद बतौर सीएम राजनाथ 18 प्रतिशत लोगों को पसंद हैं। बीजेपी वर्कर जब चुनाव में मतदाताओं के सामने जाएंगे तो बि​हार की तरह यहां भी सवाल उठेगा कि सीएम कौन और तब गोलमोल जवाब से काम नहीं चलेगा।

किसी का सीएम नहीं होना मतदाताओं पर नकारात्मक असर डाल सकता है। ऐसा नहीं कि इस खतरे का अहसास बीजेपी नेताओं को नहीं होगा। बीजेपी के एक नेता ने नाम नहीं देने की शर्त पर newztrack.com से कहा कि किसी नेता का बतौर सीएम नाम होना जरूरी है। नाम भी ऐसा होना चाहिए जो वर्कर के साथ नेताओं को भी स्वीकार्य हो। ऐसा नहीं होना प्रचार में बड़ी बाधा डाल सकता है। यदि कोई नाम होगा तो उसके समर्थक जी जान से जुटेंगे।

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