महागठबंधन में खिंची तलवारों के बीच, बस देखो...जानो, क्योंकि 'इशारों को अगर समझो...'
लखनऊ: बिहार में सत्ता के महागठबंधन में शामिल दो दलों के बीच तलवारें खींची हुई हैं। गठबंधन में बड़े घटक लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई की प्राथमिकी और सीएम नीतीश कुमार की ओर से उनसे जनता के बीच जवाब देने के निर्देश के बाद दोनों दलों की दूरी और बढ़ा दी है।
गौरतलब है, कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के घर पर सीबीआई छापों के बाद बिहार की गरमा गई राजनीति के घटनाक्रम में नीतीश कुमार चाहते हैं कि तेजस्वी यादव इस्तीफा दें, लेकिन खबर है कि अगर तेजस्वी इस्तीफा देंगे तो राजद के सभी मंत्री भी इस्तीफा देंगे।
'राज को राज रहने दो...'
नीतीश कुमार ने भले ही अब तक सीधे तेजस्वी को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा है लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं के बयान बहुत कुछ कह रहे हैं। जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है, कि 'इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो।' जबकि जदयू नेता नीरज कुमार कहते हैं, कि 'तेजस्वी ने जो सफाई दी है वो संतोषजनक नहीं है। सीबीआई ने तथ्यों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की है लिहाजा जवाब भी तथ्यों के आधार पर ही होने चाहिए।'
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ये हैं नीतीश के 'तीर'
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार के पास तीन विकल्प हैं। पहला- नीतीश, लालू को समझाएं कि तेजस्वी को इस्तीफा दे देना चाहिए। दूसरा- अगर इस्तीफा नही देंगे, तो बर्खास्त करना मज़बूरी होगी। हालांकि, ये अंतिम फैसला होगा। यह तब संभव है जब नीतीश गठबंधन से अलग होने का फैसला कर लें।
तीसरा रास्ता- जैसे चल रहा है चलने दें, लेकिन यहां नीतीश के सामने चुनौती है।
नीतीश को कांग्रेस का साथ
हालांकि, नीतीश कुमार की पार्टी के अनेक नेताओं की राय लालू से अलग हो जाने की है। बैठक में नेताओं ने लालू के साथ होने से हो रहे नुकसान के बारे में बताया। वैसे नीतीश कुमार के लिए राहत की बात ये है कि उनके लिए एनडीए के भी दरवाज़े खुले हैं। अब तो कांग्रेस भी उनके साथ है।
खोला विकल्प का रास्ता
उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में पूरे विपक्ष के प्रत्याशी गोपाल कृष्ण गांधी का समर्थन कर नीतीश ने विकल्प का एक और रास्ता खोल लिया है। नीतीश के समर्थन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने फोन पर उन्हें बधाई दी और आधा घंटे से ज्यादा तक बात की। जाहिर है आधे धंटे तक सिर्फ बधाई नहीं दी जाती, उनके बीच बिहार की ताजा हालात पर भी चर्चा हुई। उपराष्ट्रपति पद पर विपक्ष के प्रत्याशी के समर्थन के बाद नीतीश पर कांग्रेस के होने वाले हमले पर एकाएक विराम लग गया है। नीतीश की आलोचना से अब कांग्रेस पूरी तरह से बच रही है। गुलाम नबी आजाद को कहा गया है कि वो अपना मुंह बंद रखें।
80 विधायक की धौंस
तेजस्वी के इस्तीफे को लेकर लालू के खासमखास और विधायक भाई वीरेन्द्र का कहना है कि तेजस्वी किसी भी हालत में त्यागपत्र नहीं देंगे। तेजस्वी के इस्तीफे को लेकर पूरी पार्टी एकजुट है। उन्होंने तो ये भी संकेत दिए कि यदि गठबंधन टूटा तो बिहार में अगली सरकार राजद की होगी। उनके पास 80 विधायक हैं और जो वो चाहेंगे वो ही होगा।
तोड़ने में माहिर हैं लालू
उल्लेखनीय है, कि लालू प्रसाद दलों को तोड़ने में माहिर हैं। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा में लालू ने उन्हें समस्तीपुर में ही गिरफ्तार कर लिया था। उस वक्त बीजेपी बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी। लालू प्रसाद ने बीजेपी में फूट करा दी और इंदर सिंह नामधारी जैसे नेता लालू के साथ हो लिए। इसके अलावा लालू प्रसाद ने अन्य दलों के कद्दावर नेताओं को अपने पक्ष में कर उन दलों को कमजोर कर दिया था।
नीतीश भी टटोल रहे 'अपनों' का मन
राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि पिछले दिनों जनतादल यू विधायकों की बैठक में नीतीश ने यह टटोलने की कोशिश की थी, कि कहीं उनके अपने विधायक तो नहीं छिटक रहे हैं। हालांकि, 17 जुलाई राष्ट्रपति पद के चुनाव तक तो बिहार में कुछ होता नहीं दिख रहा है। राजद के विधायक भाई वीरेन्द्र कहते हैं, कि उनकी पार्टी किसी दल को तोड़ने में विश्वास नहीं करती। लेकिन पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर खास पकड़ रखने वाले लालू प्रसाद यादव इतनी जल्दी हथियार डाल देंगे, ये सोचा भी नहीं जा सकता।
ये भी हो सकता है
बीजेपी के साथ नीतीश को जाने से रोकने के लिए लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव समेत अपनी पार्टी के सभी मंत्रियों का इस्तीफा दिलाकर सरकार को बाहर से समर्थन दे सकते हैं।