लखनऊ: बीएसपी में हाल के दिनों में भगदड़ मची है। विधानसभा में विपक्ष के नेता और अति पिछड़ी़ जाति में अपना खास रसूख रखने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या और दलित नेता आर के चौधरी ने पार्टी प्रमुख मायावती पर धन उगाही का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी है। इसके साथ ही ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि अब दलित मायावती को वोट क्यों दें। इस भारी भरकम वोट बैंक पर मायावती अब तक इतराती रही हैं और अन्य दलों से चुनाव में बारगेन भी करती रही हैं।
मायावती को उम्मीद नहीं थी कि स्वामी प्रसाद मौौर्या और आर के चौधरी जैसे नेता बीएसपी का दामन छोड़ सकते हैं, लेकिन पांच दिन के अंदर ही इन दो नेताओं ने मायावती को टाटा बाय बाय कह दिया। दोनों नेताओं ने आरोप लगा दिया कि मायावती टिकट देने के एवज में बड़ी रकम लेती है। बीएसपी अब दलित आंदोलन नहीं रहा बल्कि रियल इस्टेट कंपनी हो गई है।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने तो 1 जुलाई को बीएसपा के पूर्व विधायकों, जिला अध्यक्षों और बीडीसी सदस्यों को बड़ी संख्या में जुटा कर अपनी ताकत दिखा दी।
इसके अलावा अन्य जिलों में भी बड़ी संख्या में बीएसपी कार्यकर्ता पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके साथ ही अब ये सवाल भी उठ रहा है कि दलित मायावती को वोट क्यों दें। उन्होंने यूपी में दलितों के लिए किया क्या है ।
जयललिता के बाद मायावती अकेली ऐसी नेता हैं तो अपने राज्य में चार बार सीएम बनीं। लेकिन उन्होंने दलितों के लिए कभी कुछ नहीं कहा। 30 जून को बसपा छोड़ने वाले आर के चौधरी कहते हैं कि मायावती जब सीएम थीं तो कभी किसी दलित को अपने दरवाजे पर फटकने नहीं दिया। न तो वो कभी किसी दलित के घर गईं और न किसी दलित को बुलाया। यूपी में दलितों पर अत्चायार की घटनाएं इधर हाल के सालों में बढ़ी हैंं लेकिन मायावती के मुंह से सहानुभूति के एक भी बोल नहीं निकले। वो कहते हैं कि राजनीतिक फायदे के लिए मायावती रोहित वेमुुला की आत्महत्या पर हैदराबाद तो जा सकती हैं लेकिन यूपी के किसी जिले में जाना उन्हें गंवारा नहीं है।
दलितों में पढ़ा लिखा तबका अब नई सोच के सामने आ रहा हे जो जाति, वर्ग से अलग हट कर सोच रहा है। ये लोकसभा के लिए 2014 के चुनाव में साफ दिखा भी जब दलितों ने मायावती के बजाय नरेंद्र मोदी के नजदीक जाना सही समझा। लोकसभा चुनाव में मायावती एक भी सीट नहीं जीत सकीं। लोकसभा चुनाव का परिणाम मायावती के लिए बड़ा झटका था। उन्हें इसकी उममीद जरा भी नहीं थी।
स्वामी प्रसाद मौर्या कहते हैं कि मायावती जब सत्ता में आती हैं तो दलितों की अपेक्षा ब्राहम्णों के लिए ज्यादा करती हैं जबकि ये तबका बसपा के लिए विश्वासपात्र कभी नहीं रहा। उन्होंने कहा कि सतीश चंद्र मिश्रा का कोई जनाधार नहीं है। वो अपने दम पर कारपोरेशन का चुनाव भी नहीं जीत सकते ।लेकिन बसपा में उनकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है ।पिछले दस साल में सतीश चंद्र मिश्रा ने जितनी संपत्ति अर्जित की हे वो किसी से छिपी नहीं है ।
बसपा के संस्थापक कांशीराम ने बड़े जतन के बाद दलितों को जमा किया था । उन्होंने दलितों को उनकी ताकत का अहसास कराया था ।कांशीराम का नारा था जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागेदारी । मायावती जब पहली बार सीएम बनीं तो दलितों को अपनी ताकत का पता चला । उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं था कि उनकी नेता पर भ्रष्टाचार के क्या आरोप लगते हैं । चाहे आय से अधिक संपत्ति का मामला हो या ताज कारीडोर में भ्रष्टाचार ,या फिर राजधानी और नोयडा में बने अंबेडकर पार्क में पत्थर घोटाला। दलितों ने इन सब मामलों को नजरअंदाज करते हुए मायावती पर विश्वास बनाए रखा ।
यूपी में विधानसभा के चुनाव अगले साल के पहले एक दो माह में संभावित हैं ।अभी तक आए खबरिया चैनल के सर्वे में मायावती को सीएम की रेस में सबसे आगे दिखाया गया है ।पूरा बहुमत तो नहीं लेकिन सर्वे बता रहे हैं कि बसपा सबसे बडी पार्टी होगी ।लेकिन ये सर्वे बसपा के बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के पहले के हैं ।दो बड़े नेताओं के जाने की घटना ने मायावती को अंदर से हिला दिया है ।
कहा जाता है कि दोनों छोर के मजबूत रहने पर ही विश्वास की डोर पक्की रहती है ।लेकिन अब विश्वास की डोर कमजोर होने लगी है। दलित अब उस तरह से मायावती पर विश्वास नहीं करते जितना पहले किया करते थे । राजनीतिक प्रेक्षक ये सवाल उठा रहे है कि क्या अब चुनाव में दलितों को लेकर कोई नया समीकरण बनेगा ।