UP चुनाव: पश्चिमी यूपी की बयार फिर से ध्रुवीकरण की ओर, जो सफल होगा वो मारेगा बाजी

Update:2017-02-02 14:40 IST

Vinod Kapoor

लखनऊ: विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की बयार फिर से ध्रुवीकरण के बड़े संकेत दे रही है। कहीं ऐसा न हो कि पीएम नरेंद्र मोदी के 'विकास' और सीएम अखिलेश के 'काम बोलता है' जैसे नारे और मुद्दे हवा न हो जाएं। हालात ये हैं कि जो दल ज्यादा ध्रुवीकरण में सफल होगा, वो बाजी मार ले जाएगा।

जब भी चुनाव की शुरुआत होती है तो हर पार्टी विकास की बात करती है। लेकिन समय बीतते ही ध्यान इस पर केंद्रित हो जाता है कि सीटें कैसे जीती जाएं।

अखिलेश दे रहे विकास की दुहाई

यूपी विधानसभा चुनाव में दो बड़ी पार्टी लगातार विकास की बात कर रही है। बीजेपी का नारा नरेंद्र मोदी के किए काम को लेकर है, तो सीएम अखिलेश यादव लगभग पांच साल में किए काम की दुहाई दे रहे हैं। राजधानी में मेट्रो रेल, आगरा एक्सप्रेस-वे, छात्र-छात्राओं के बीच लैपटाप वितरण उनके कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धि में शुमार है।

बीजेपी का दावा भी बेअसर

इसी तरह बीजेपी नेता भी गरीबों को मुफ्त गैस देने की उज्जवला योजना, जाली नोट और कालेधन पर रोक के लिए नोटबंदी की बात करते रहे हैं। लेकिन पश्चिमी यूपी में इन बातों का कोई असर अभी तक दिखाई नहीं दे रहा।

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बीजेपी को मिला था दंगे का लाभ

मुज़फ्फरनगर में 2013 के दंगों के जख्म अभी तक लोग भूल नहीं पाए हैं। इसमें कैराना से हिंदुओं के पलायन की घटना ने उन जख्मों को और हरा किया है। मुज़फ्फरनगर दंगे को विभाजन के वक्त हुए दंगे के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी के तौर पर देखा जाता है। दंगे की वजह से 50 हजार से ज्यादा लोग महीनों तक शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हुए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त दंगे के जख्म हरे थे और बीजेपी ने इसे पूरे राज्य में भुना लिया था। इसलिए सहयोगी दल के साथ मिल 80 में 73 सीटें उसने जीत ली थी।

आदित्यनाथ के भाषण में पलायन है मुद्दा

जाहिर है हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी इस मामले को भुनाने में लगी है और फिर से पुराना प्रयोग दोहराना चाहती है। बीजेपी ने अपने फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को पश्चिमी यूपी में पूरी तरह से लगा दिया है। मुस्लिम विरोधी और हिंदू हितैषी की छवि वाले आदित्यनाथ अपनी हिंदु युवा वाहिनी से लगातार पार्टी को भी चुनौती देते रहते हैं। आदित्यनाथ के भाषणों में मोदी के विकास की तो चर्चा भी नहीं होती। वो लगातार पलायन की बात की हवा दे रहे हैंं। उनका कहना है कि 'यदि ऐसे ही हालात रहे तो यूपी का ये इलाका भी कश्मीर हो जाएगा।'

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माया ने भी खेला मुस्लिम कार्ड

मायावती ने अपने प्रत्याशियों की सूची में 100 मुस्लिमों को जगह दे, ये साबित कर दिया है कि वो इस बार मौका छोड़ने के मूड में नहीं हैं। मायावती अपने दलित वोट के भरोसे सत्ता हासिल नहीं कर सकतीं इसलिए उन्होंने इस बार मुस्लिमों पर भी दांव लगाया है। उनके ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवार पश्चिमी यूपी से ही हैं।

यूपी को कितना पसंद आएगा ये साथ

अपने काम के भरोसे फिर से सत्ता में आने का दावा करने वाले यूपी के सीएम अखिलेश भी इस बात से शशंकित थे कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव का बनाया गया ठोस मुस्लिम वोट बैंक कहीं बसपा की ओर न छिटक जाए। इसलिए उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिलाया। दोनों दलों के गठबंधन ने नया नारा दिया 'यूपी को ये साथ पसंद है'। लेकिन वो ये भूल गए कि जिस वोट बैंक के भरोसे वो आज राज कर रहे हैं वो पहले कांग्रेस का ही वोट बैंक था। यदि कांग्रेस मजबूत हो गई तो सपा सत्ता में आने के बारे में जल्द सोच भी नहीं सकती। राहुल और अखिलेश दोनों बड़े राजनीतिक घरानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये अलग बात है कि एक को यूपी जैसे बड़े राज्य की कुर्सी मिली, लेकिन राहुल अभी तक इससे दूर हैं।

दावे और प्रतिदावे अपनी जगह लेकिन पश्चिमी यूपी की हवा तो अभी बदलती नहीं दिखती। ये भी देखना होगा कि कौन राजनीतिक दल ध्रुवीकरण में ज्यादा सफल होता है।

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