Media: पत्रकार को तमगे बांटने से बचना चाहिए

Media: आज की पत्रकारिता को वैसे तो मोदी मीडिया-गोदी मीडिया के नाम से अलंकृत किया जाता है। पर समूची मीडिया मोदी विरोध और मोदी समर्थक के दो खांचों में बंटी है। आगे पढ़ें पूरा लेख...

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-10-18 18:05 IST

प्रतीकात्मक चित्र (Social Media)

Media: आज की पत्रकारिता को वैसे तो मोदी मीडिया-गोदी मीडिया के नाम से अलंकृत किया जाता है। पर समूची मीडिया मोदी विरोध और मोदी समर्थक के दो खांचों में ऐसी बंटी है कि पत्रकारिता व पत्रकार दोनों ने अपना वजूद खो दिया है। अब समूचे देश में एजेंडा मीडिया चल रहा है। कोई भाजपा सरकार बनवाओ काम कर रहा है। कोई भाजपा सरकार न बन पाये उसके उपाय रच रहा है।

मेरे तीस बत्तीस साल के काल में मीडिया पर इतना संक्रमण कभी नहीं आया था। हमने मायावती व मुलायम सिंह के काल खंड देखे हैं, जो एक ओर पत्रकारों को उपकृत करते थे, दूसरी तरफ़ प्रेस कांफ्रेंस  में सवाल पूछने पर यह कह दिया करते थे? अरे! आप भी सवाल पूछोगे। पत्रकार का मुंह बंद हो जाया करता था। मुलायम सिंह जी ने तो हद ही कर दी अपने मुख्यमंत्री काल में पत्रकारों को दोनों हाथ से धन बांटे, बाद में पत्रकारों की यह सूची एक सवाल के जवाब में विधानसभा को पटल पर रख दी। पहले एक दौर था कि बच्चों को अख़बार पढ़ने की हिदायत दी जाती थी।बाद में अखबार देखने की बात कही जाने लगी। अब तो मीडिया से दूर रहने की बात बच्चों को सिखाई जाती है।

भारतीय मीडिया पर विदेशी मीडिया की टिप्पणी को देखना उस संदर्भ में जरूरी हो जाता है। 11 सितम्बर को समाचार एजेंसी एएफपी ने मुंबई डेटलाइन से एक खबर दी जो काफी साइट्स पर प्रकाशित हुई। खबर में लिखा था कि,"भारत का अनियंत्रित, गैर जिम्मेदार और दिखावे वाले टीवी मीडिया का लंबा इतिहास टेबलायड स्टाइल पत्रकारिता का रहा है। ख़ास तौर पर क्राइम या सेलेब्रिटी जिस चीज में शामिल हों तो टीवी मीडिया सब हदें पार कर जाता है। एक्ट्रेस श्रीदेवी की मौत के केस में ऐसा ही हुआ था, जब एक रिपोर्टर तो बाकायदा एक बाथ टब में लेट कर रिपोर्टिंग कर रहा कि एक्ट्रेस कैसे डूब गयीं होंगी। रिपब्लिक और टाइम्स नाउ जैसे अग्रणी टीवी चैनल खुल्लम-खुल्ला पक्षपाती हैं। वे सुशांत सिंह राजपूत के केस पर फोकस करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को सहारा और राहत प्रदान करते रहे।"


तुर्की की समाचार एजेंसी 'अनाडोलू' ने सुशांत सिंह" रिया चक्रवर्ती मामले में भारतीय मीडिया की 'घनघोर पक्षपातपूर्ण' रिपोर्टिंग की भर्त्सना की। समाचार एजेंसी ने प्रेस कौंसिल के दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए लिखा है कि किस तरह भारतीय मीडिया का एक वर्ग बेहद आक्रामक और पक्षपात पूर्ण रिपोर्टिंग करने के साथ साथ मीडिया ट्रायल कर रहा है। " गल्फ न्यूज़ में स्वाती चतुर्वेदी ने सम्पादकीय पेज के एक लेख में भारतीय मीडिया की हालत का वर्णन करते हुए पूछा है कि मीडिया आखिर कितना नीचे गिरेगा। लेख में कहा गया है कि भारत में मीडिया प्रतिदिन अपनी ही छीछालेदर कर रहा है।

हफिंग्टन पोस्ट में एक समाचार रिया-सुशांत केस की रिपोर्टिंग पर छपा जिसमें लिखा था कि "क्या भारतीय जर्नलिस्टों को किसी मौत पर संवेदनशीलता से रिपोर्ट करने की ट्रेनिंग या शिक्षा दी जाती है?" इस खबर में पूरे भारतीय मीडिया की ट्रेनिंग का सवाल उठाया गया है। यही नहीं, अख़बारों में हादसे इतने मेरे वतन में है कि अखबार निचोड़ो तो खून निकलता है। यह ख्याल नहीं रखा जाता है कि खबर का समाज पर क्या असर पड़ेगा।यह भी भूल जाया करते हैं कि हर नागरिक व हर प्रोफेशन की सामाजिक जिम्मेदारी होती है।

ऐसा महज इसलिए कहा गया क्योंकि मीडिया का प्रसार के लिहाज़ से मूल्यांकन हुआ,प्रभाव के लिहाज़ से नहीं। अख़बार क्षेत्रीय हुए, इलाकाई हुए, इससे मारक क्षमता, प्रभाव क्षमता कम हुई। यही कारण है कि इंडियन एक्सप्रेस की खबरों का संज्ञान लिया जाता है। बाकी तमाम अखबारों व चैनलों का प्रभाव ही नहीं है। संपादक खत्म हुए, संस्कार खत्म हुए। चैनल या अखबार का आइडियलिज्म या कमिटमेंट न्यूज़ के साथ नहीं है, मालिक के साथ है। जैसे हिंदुस्तान टाइम्स को लोग कांग्रेस के साथ का मानते हैं। इंडियन एक्सप्रेस सत्ता विरोधी अमेरिकी कैपटलिज्म का पक्षधर है। धर्मवीर भारती पत्रकार  नहीं थे, पर उन्होंने धर्मयुग चलाया। इसमें साहित्य भी था, पत्रकारिता भी। गणेश शंकर विद्यार्थी ने जो किया उसमें राष्ट्रीयता भी थी, साहित्य भी था, पत्रकारिता भी।खबरें निष्पक्ष थीं, आजादी से जुड़ी हुई थीं। साहित्यकार पत्रकार का जो अंतर था, धीरे धीरे ख़त्म हो गया है। अब ट्रेंड आया है कि संपादक से ज़्यादा मालिक या मार्केटिंग ज़रूरी है। राजेंद्र माथुर, मनोहर श्याम जोशी, प्रभाष जोशी, आलोक मेहता तक पत्रकारिता के साथ साहित्य जुड़ा था। आज पत्रकारिता की दिक्कत यह है कि संपादक से ज़्यादा मालिक का रोल है। व्यंग्य अधिकतर साहित्यिक घटनाओं पर टिप्पणी हैं।


मीडिया मैजिक मल्टीप्लायर है। पर पत्रकारों ने खुद को मैजिशियन समझ रखा है। हम बिस्तर हैं- कभी कांग्रेस के साथ, कभी भाजपा के साथ, कभी किसी क्षेत्रीय दल के साथ, कभी किसी नेता के साथ। ब्रेकिंग न्यूज़ का आइडिया बदल चुका है। लोगों के दिमाग़ में यह धारणा है कि ब्रेकिंग न्यूज़ कोई भी चीज है। ब्रेंकिग न्यूज़ बड़ी और ऐसी होनी चाहिए जिसका आप अंदाज़ा नहीं लगा रहे हैं।उत्तर प्रदेश के सपा नेता आजम की भैंस का चोरी चला जाना ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है। कोई न्यूज़ ब्रेकिंग न्यूज़ तब तक नहीं बनायेंगे जब तक दोनों तरफ़ से कंफर्म न कर लें। दो सूत्रों से पुष्टि होना चाहिए । यह केवल बीबीसी करता है।

लंदन से हमने टैब्लॉयड जर्नलिज्म और पैकेजिंग सीखी। पर उसे बंडलिंग में बदल दिया। अख़बारों से नरेशन ग़ायब हुआ है। रिफरेंस ग़ायब हुआ है। रिसर्च मैटेरियल ग़ायब हुआ हैं। खबरों को नरेटिव के ढंग से कहानी के रूप में लिखा जाये ।उस वक्त आदमी डिस्क्रिप्टिव चाह रहा है। आप नहीं दे रहे हैं। जो चीज़ गायब हो जाती है, वह महंगी बिकती है। आज के अखबारों में रेफरेंस संदर्भ होना चाहिए । डीप पॉलिटिकल एनालिसिस होनी चाहिए । न्यूज़ 'विद नरेशन विद रेफरेंस' होना चाहिए। उदयन शर्मा की राजीव गांधी की हजरत गंज की रैली की रिपोर्ट को एक बेमिसाल उदाहरण के रूप में रख सकते हैं। उसमें कहीं भी उन्होंने कहा शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ। वह सभा का पोर्ट्रेट था।

भूतकालीन हो गयी है पत्रकारिता। दस साल पुराने अखबार दोनों भाषाओं के अखबार निकाल कर पढ़िये। आज के अखबार पढ़िए इस निष्कर्ष पर आप पहुंच जाएंगे कि पत्रकारिता भूत कालीन हो गयी है। पिज़्ज़ा दम मिनट लेट पहुंचता है तो पैसा नहीं देते है। बासी अख़बार  का पैसा क्यों दिया जाना चाहिए ।


भाषा को लेकर भी हिंदी मीडिया बेपरवाह है। चुगली करना शब्द ठीक नहीं है। यह शब्द डिकांस्ट्रेक्शन थ्योरी को बताता है। पर हम इसका इस्तेमाल करते नहीं थकते। सबब, इबारत ,बानगी, तासीर, जुमला, , गुरेज़ , नमूना, फ़लक, दृष्टांत,  प्रारूप अच्छे  शब्द हैं। पलीता लगाना नहीं। पलीता चढ़ाना।इलेक्शन के बारे में फ़तवा नहीं दे सकते। यह धर्म पर स्पष्टीकरण देता है। प्रश्न धर्म से जुड़ा होना चाहिए ।कोख, शख़्स, फ़तवा, जायज़,रीती रिवाज, वक़्फ़, तरजीह, बरअक्स,नाराज़गी, ज़मीन, जबरन, जेरे बहस, जद्दोजेहद, जुमले, खूरेंज, ख़त्म, ख़ारिज, साज़िश , चीख , जुर्माना, खुद, मुफलिसी , जश्न, फांसी, फ़साद, महज़,नतीजा , फ़ितरत,ख़रीद फ़रोख़्त,निजता,तरफ़दार, नज़रिये  उर्दू के शब्द हैं। क़वायद उर्दू शब्द है। उर्दू के हिसाब से इसका अर्थ व्याकरण है। मदिर मधुर का प्रयोग बहुत होना चाहिए ।

बानगी शब्द उर्दू का नहीं है। हिंदी का है। इसका प्रयोग निरर्थक किया जा रहा है। इसका मतलब नमूना व सैंपल है। जज़्बा का बहुवचन जज़्बात है। जज़्बातों शब्द ग़लत है। मौजू से ज़्यादा पसंद है- लाइट हार्टेड।इबारत की जगह वर्णमाला का प्रयोग होना चाहिए । कोरम शब्द औपचारिकता के लिए नहीं प्रयोग होना चाहिए । वह संख्या से जुड़ा शब्द है। संस्कृत में वधु, हिंदी में वधू है। ना नहीं इस्तेमाल होना चाहिए । न इस्तेमाल होना चाहिए । वो उर्दू में प्रयोग होना चाहिए,हिंदी में वे प्रयोग होना चाहिए । मुल्क से ज़्यादा अच्छा शब्द देश व स्वदेश है। जमी , सरज़मीं की जगह मातृभूमि शब्द अच्छा है। लायक़ से लियाक़त शब्द बना है। महारत शब्द नहीं है। शब्द महारथ है।गद्य में पूरा शब्द इस्तेमाल करना चाहिए । अनुस्वार प्रयोग नहीं करना चाहिए । बहुवचन में सुविधा होती है। गद्य में पूरा प्रयोग करें बया नहीं बयान।

खुलासा नहीं। खुला सा। मुख़ालफत को ख़िलाफ़त नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि ख़िलाफ़त की अर्थ विरोध नहीं है। ख़िलाफ़त- प्रतिनिधित्व, नुमाइंदगी, स्थानापन्ता। यह कहना ग़लत है कि तमाम भारत के लोग। यह कहना ग़लत है कि दिलेर मेंहदी बेहद लोकप्रिय गायक हैं। यहाँ बेहद शब्द का बहुत ग़ैर ज़िम्मेदार इस्तेमाल है ।कैपिटल लेटर्स को नज़रअंदाज़ करके स्थानों के नाम का अनुवाद करने पर पोर्ट ऑफ स्पेन ,स्पेन का बंदरगाह बन सकता है। आर्ट ऑफ राइटिंग सीखना हो तो बाबरनामा पढ़ना चाहिए ।बाबर टर्की का सूरदास था। तुर्की भाषा का बड़ा कवि था। हुमायूँ को पत्र लिखता था।


आत्म विश्वास के साथ आटो क्यू पर खबरों को पढ़ना एक ऐसा कौशल है जो अभ्यास से बेहतर हो सकता है। ट्राइपॉड, माइक, बैटरियाँ हेडफ़ोन एक्स्ट्रा सामान, वाइड शॉट- लोकेशन दिखाने के लिए। क्लोज़ अप- बातें रिकार्ड करने के लिए,ओवर द शोल्डर शॉट- इंटरव्यू के लिए। रिवर्स शॉट- ताकि एडिटिंग में सहायता मिले, इसके लिए ज़रूरी होते हैं। कुछ एक्सट्रा शॉट ज़रूर रिकार्ड कर लेना चाहिए। जो हिस्सा प्रज़ेंटर पढ़ेगा उसे इंट्रो कहते हैं। इसे छोटा और दिलचस्प होना चाहिए। इसमें महत्वपूर्ण तथ्य आने चाहिए। इसे कौतूहल पैदा करना वाला होना चाहिए। इंट्रो व रिपोर्ट की पंक्तियों में दोहराव नहीं होना चाहिए ।अपनी रिपोर्ट लिखने के बाद बोल कर पढ़ें। ताकि पता चल जाये कि कहीं लड़खड़ा तो नहीं रहे हैं।

स्क्रिप्ट को टीज़र जैसा होना चाहिए। ताकि श्रोता और जानना चाहें। रिपोर्टर की बात भी सुनना चाहे। यह सुनिश्चित कर लें कि आप एक दूसरे की बात काट तो नहीं रहे हैं। दोहरा तो नहीं रहे हैं। टेढ़े-मेढ़े मुहावरे न लिखें। बहुत उद्धरण न दें। सामान्यतया किसी क्लिप को ख़त्म होने के बाद दो सेकेंड की खामोशी होनी चाहिए ।अन्यथा जब इसे अगले आइटम के साथ मिक्स किया जायेगा। तो यह साउंड बाइट रुकी हुई प्रतीत होगी। साउंडबाइट में प्रेजेंटर की कही बात को नहीं दोहराया जाता है। किसी विडियो स्क्वैश को एडिट करने के लिए अलग अलग शॉट साइज चाहिए। हर शॉट साइज़ से अलग अलग जानकारी मिलती है। पता चलता है कि व्यक्ति कहाँ है। क्या कर रहा है। कौन है। आदि।


एक्सट्रीम लॉग शाट XLS

इसका इस्तेमाल बड़े प्राकृतिक कैनवास को दिखाने के लिए होता है। या फिर किसी की पहचान ज़ाहिर न करनी हो तो उसे दूर से शूट करते हैं। ताकि चेहरा पहचाना न जा सके।

वैरी लॉग शाट VLS

जब बैक ग्राउंड को दिखाना अहम हो। मुख्य पात्र फ़्रेम के एक तिहाई ऊँचाई पर हो।

मीडियम लॉग शॉट MLS

इस शॉट का इस्तेमाल चलते फिरते लोगों को घुटनों से नीचे चक दिखाने के लिए होता है। ज़मीन पर चल रही गतिविधियों के लिए किया जाता है।


सोशल मीडिया, मोबाइल फोन और इंटरनेट के वजह से भाषा बदली है। बदलाव से संघर्ष करने की जगह उसे समझ कर उस पर चलना चाहिए । कंप्यूटर व इंटरनेट से जुड़े शब्द अंग्रेजी के हैं। उनका अनुवाद करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन कुछ लोगों ने कंप्यूटर के लिए संगणक और इंटरनेट के लिए अंतरजाल शब्द चलाया है। एसएमएस की भाषा न लिखें ठीक है कि जगह Tk,  ग्रेट की जगह ग्रे 8 । अनुवाद केवल शब्दों का ही नहीं, पूरी रिपोर्ट या लेख का करना चाहिए । उसके लिए पूरे टेक्स्ट को पढ़ा जाना चाहिए ।अनुवाद का मतलब है पढ़ना, समझना फिर समझाना। अंग्रेजी में एक ही वाक्य में ढेर सारी जानकारियाँ हो सकती हैं। लेकिन हिंदी में ऐसा जरूरी नहीं है।

अंग्रेज़ी के जुमले को ठीक से समझना चाहिए ।वर्ना गलती होने का डर बना रहता है। I can't thank you enough का अनुवाद मैं आपको बहुत धन्यवाद नहीं दे सकता, नहीं होगा। इसका मतलब मैं आपको जितना धन्यवाद दूं कम ही होगा। हिंदी में मैं किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूँ। डेड लाइन का मतलब मृत रेखा नहीं है। स्टेट ऑफ द ऑर्ट का अनुवाद लोग कला की स्थिति कर रहे हैं। उच्चारण न जानने की वजह से शिकागो को चिकागो लिखने की गलती हो रही है।

सोशल मीडिया पर भरोसा करने से यह खतरा होता है कि वह सत्य भी हो सकता है। असत्य भी। लोगों को ट्विटर में फ़ोटो लिंक, वीडियो ज़रूर दिखना चाहिए । तभी लोग इसे अच्छा मानते हैं। बहुत सारे हैशटैग के इस्तेमाल से ट्विट अप्रभावित हो जाता है। कई बार कि शब्दों के चक्कर में संक्षिप्त शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। जो अस्पष्ट हो जाता है। ट्विट में ईमोजी का इस्तेमाल खूब हो रहा है। वे अच्छे लगते हैं । पर इमोजी के इस्तेमाल से बचें। ट्विट deck की मदद से हम ट्विट को शेड्यूल कर सकते हैं। Bitly से आपको यह जानकारी मिल सकती है कि किस ट्विट के बारे में लोग ज्यादा जानना चाहते हैं । ट्विटर एकालाप नहीं होना चाहिए । उसमें लिंक हो ।बातचीत हो। रिट्विट हो। केवल प्रसारण न हो। लोग एक तरफ़ा ज्ञान नहीं सुनना चाहते है।


टीवी ने दो एडवांटेज दिये। एक, बैठकर नहीं पढ़ना। दो, पन्ना नहीं पलटना है। टीवी एक घंटे का होता है। अख़बार चौबीस घंटे का व्हील होता है। पोर्टल ने इससे आगे की सुविधा दी। टीवी की खबर के लिए एक जगह बैठकर देखना था। पर पोर्टल में मोबाइल रहते हुए समाचार देख सकते हैं। इसे टॉयलेट में देख सकते हैं। एनी टाइम देख सकते हैं। किसी काल तक देख सकते हैं। पोर्टल एक साथ ऑडियो विज़ुअल व टेक्स्ट तीनों दे रहा है।

अख़बार में टेक्स्ट व इमेज था। टीवी में टेक्स्ट ग़ायब हो गया। वहां वीडियो आ गया। पोर्टल में टेक्स्ट ,वीडियो, इमेजिंग सब होना चाहिए ।पोर्टल में न्यूज़ का रिप्ले कई बार कर सकते हैं, जो ज्यादा लाभ देगा वही रहेगा। अच्छा आदमी होने से ज़्यादा काम का आदमी होना है। हालांकि, पोर्टल को लेकर ख़तरे भी हैं। फर्जी साइटें भी बहुत हैं। संदिग्ध उद्देश्य से लिखा जा रहा है। यह अनपैरलल डैमेज करेगा।इसका काउंटर नहीं है। यही पोर्टल के लिए भस्मासुर का काम करेगा। पोर्टल को रिप्लेस वह मीडिया करेगा जिसमें इमेज ,ऑडियो, वीडियो,टेक्स्ट के साथ ही इंटरवेंशन करने का भी अवसर हो।आपकी राय शामिल होने लगे। बाक्स पॉप में आप भी शामिल होने लगे, शामिल हो जायें। इसमें भी एक और आगे की स्थिति बन सकती है कि आप इतने बड़े इंटरसेप्टर ग्रुप बन जायें तब जाकर सबसे बड़े इफेक्टिव हो जायेंगे।


मीडिया के बारे में यह भ्रांत धारणा रूढ़ है कि मीडिया कानून से बंधा नहीं है। पर सच यह है कि आईपीसी की धाराओं से मीडिया भी आम आदमी तरह बंधा है। मीडिया क्रिमिनल व सिविल अवमानना झेलता है।नैतिक तौर पर मीडिया की आचार संहिता अंदर से उपलब्ध होनी चाहिए । आपने विधायक की आचार संहिता बनाई है क्या? उसका नियंता अधिक से अधिक अध्यक्ष या सभापति होता है। विधायक क्योंकि इसी का हिस्सा होता है।इसलिए विधायक अपनी आचार संहिता खुद बनाता है। जजेज ग़लत करते हैं तो उनकी कमेटी बनती है। आईएएस ग़लत करता है तो आईएएस जाँच करता है। लोगों को गलतफहमी है कि मीडिया सबसे ऊपर है। पर हक़ीक़त है कि मीडिया को विशेषाधिकार का अधिकार सिर्फ़ सूचना संकलन से जुड़ा हुआ है। हम मीडिया के लोग किसी। किसी धारा से बंधे हैं। ऐसा नहीं कि हम आईपीसी की धाराओं से बंधे नहीं हैं।

मीडिया को नियंत्रित समय व समाज कर सकता है। एनडीटीवी को टीआरपी नहीं मिलती पर चर्चा तो रहती है। इंडियन एक्सप्रेस भले ही बिक्री में फिसड्डी हो पर उसका इंपैक्ट है। प्रभाव है। सेल्फ रेगुलेशन ही तरीका है।

पत्रकारों को अपनी तरफ से तमगे बांटने से बचना चाहिए। मसलन कोई शहंशाह है। इतनी भीड़ में आपके पास लोग क्यों आयेंगे? आपकी यूएसपी क्या है। जो देख रहे हैं उससे थोड़ा पीछे हटिये डिटैच रखिये। थोड़ा सा अलग देखने की आदत होना चाहिए। रिपोर्ट में वह अंश होना चाहिए कि आम लोग जो चर्चा नहीं कर रहे। उसकी चर्चा करनी चाहिए । कैलेंडर इवेंट सब लोग कर रहे हैं। कौन वह है जो कोई और नहीं कर रहा है। रिपोर्टर्स को मल्टी मीडिया ट्रेंड होना चाहिए। Invisible Women/Men की कहानियां लेकर आये हैं, Consent communication & Feedback होना चाहिए । पत्रकार को इस बात का ख़्याल रखना चाहिए कि किसी बात को  पुरजोर तरीके से कहने और बढ़ा-चढ़ा के कहने में कोई अंतर नहीं है। इस महीन लाइन की समझ होनी ही चाहिए। पत्रकार में प्रतिभा , परिश्रम व प्रतिबद्धता चाहिए । पूर्व धारणाएं प्रभावी न रहे इतना सचेत व सतर्क होना चाहिए ।

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