तुर्की: तुर्की में तकनीक को जिंदगी के सुख- सुविधा की खातिर नहीं, बल्कि जिंदगी को आसान बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि यहां जिंदगी काफी आसान भी है। शादी में रोशनी के लिए सिर पर बोझ लिए आदमी नहीं दिखता। उसने पीठ पर 2-3 किलोग्राम की बैटरी रख ली और गुब्बारे में एलईडी लगाकर शादी की रोनक बढ़ा दी। पटाखों की जगह आग का करिश्मा है। कमरों में बिजली, बैटरी और एसी के लिए अलग-अलग रिमोट नहीं हैं। अलग-अलग स्विच नहीं हैं। एक ही रिमोट से सबकुछ हो जाता है। व्हीलचेयर आदमी नहीं चलाता। वह बैटरी से चलती है। कुर्सी के पीछे प्लेटफार्म पर चलाने वाला आदमी खड़ा रहता है।
सोना पहनना हराम है
यहां सोना पहनना हराम है। हमारे मित्र नसीब भाई के चश्मे पर सोना लगा देखकर यह बात उन्हें एक दुकानदार ने समझाई। यह सुनने के बाद मुझे समझ में आया कि यहां की औरतें और लड़कियां सोना क्यों नहीं पहनती हैं। हालांकि यहां के लोगों की पसंद सुनहरा रंग जरूर है। तभी तो हर जगह स्टील की जगह पर पीतल का इस्तेमाल दिखता है। औरतों ने भी यहां अपने बालों को सुनहरा करा रखा है। यह बात और है कि वो इतनी गोरी हैं कि काले बाल उनकी खूबसूरती को और बढ़ा देते।
नहीं दिखती अनावश्यक बुर्का प्रथा
तीन दिन में एंटाल्या में कहीं कोई बुर्के वाली या हिजाबपोश महिला नहीं दिखी। मेरे लिए यह काफी सुखद है क्योंकि मैं बुर्के और अनावश्यक पर्दा प्रथा के खिलाफ हूं। यह एक बड़ी पराधीनता का प्रतीक है। 21वीं सदी में खुली आंखों से दुनिया को न देखने देने की पराधीनता।
सबकुछ हौले-हौले
लोग यहां जल्दी में नहीं दिखते हैं। सुबह एक्सरसाइज के लिए साइकिल चलाता युवक भी हौले-हौले ही पैडिल मारता है। ट्रेडमिल और क्रॉस ट्रेनर सरीखी मशीनों पर भी गति एकदम हौले-हौले। भारत की तरह यहां कोई किसी भी चीज में जल्दी में नहीं दिखता। लोग सुविधा को ज्यादा तरजीह देते हैं।
सबसे बड़ा देश, देश के बाद सब
यहां आजादी के बाद देश की जरूरत के बारे में कितना सोचा गया, इसको इसी से समझा जा सकता है कि तुर्की यहां की भाषा जरूर थी, लेकिन लिपि अरबी थी। कमाल पाशा ने लिपि में जबरदस्त बदलाव कराए। फ्रेंच और इंग्लिश की सहायता ली गई। कई शब्द बदले गए। पाशा ने तुर्की भाषा के अनुसंधान कार्य कराए। अरबी और फारसी के कठिन शब्दों को उनके तुर्की समतुल्यों से बदला गया। यहां पर प्रेस और मीडिया में उस समय विदेशी भाषा के शब्दों पर बकायदा बैन लगा और इस तरह सैकड़ों विदेशी शब्दों को तुर्की से बदल दिया गया। इसके साथ ही सदियों से भूले जा चुके तुर्की शब्दों को वापस प्रचलन में लाया गया।
27 अक्टूबर 1927 को आजाद हुए इस देश में लोगों को आजादी की कीमत आज भी खूब समझी जाती है। तभी तो यहां की खास इमारतों पर कमाल पाशा का यह वाक्य अब भी लिखा है- युवकों तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण और पहला काम है कि तुर्की की स्वतंत्रता और गणराज्य को हमेशा के लिए सुरक्षित रखना।