मनीला में 31वें आसियान शिखर सम्मेलन: भारत-आसियान संबंध और चीन की घेराबंदी

Update:2017-11-17 14:22 IST

राहुल लाल

भारत-आसियान संबंध भारतीय विदेश नीति के ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का आधारस्तंभ है। आसियान यानी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का समूह, 10 सदस्यों वाली इस संस्था के गठन का मुख्य उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में अर्थव्यवस्था, राजनीति, सुरक्षा,संस्कृति और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है। मनीला में 31वें आसियान शिखर सम्मेलन,15वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन तथा 12वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। भारत दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र की उन्नति का पक्षधर है। आॢथक गलियारों से लेकर निवेश जैसे मामलों में वह सदस्य देशों के साथ मजबूती से बढ़ रहा है। मनीला बैठक में हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका एक साथ आए हैं।

भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान को मिलकर चतुष्कोणीय संगठन बनाने का विचार 10 वर्ष पूर्व आया। अब जाकर यह अस्तित्व में आया है। इस पहल को दक्षिण चीन सागर में चीन की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल के साथ अलग-अलग मुलाकात कर गठबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बात की।

मोदी की वियतनाम और न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्रियों और ब्रुनेई के सुल्तान से भी मुलाकात हुई जो हिन्द प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को देखते हुए महत्वपूर्ण है। अब इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत-अमेरिका-जापान के बीच होने वाले नौसैनिक अभ्यास में आस्ट्रेलिया को जल्द ही शामिल कर लिया जाएगा। तीन देशों का पिछला सैन्य अभ्यास कुछ माह पहले बंगाल की खाड़ी में हुआ था। जापान इस गठबंधन को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित है। वह इसे सिर्फ सैन्य या सुरक्षा तक सीमित नहीं रखना चाहता बल्कि वह इसका आॢथक व निवेश क्षेत्र में भी विस्तार करने का इच्छुक है।

प्रधानमंत्री मोदी ने आसियान के मंच से पाकिस्तान और चीन को कड़ा संदेश दिया। दोनों ही देशों का नाम लिए बिना प्रधानमंत्री मोदी ने जहां आतंकवाद और चरमपंथ को क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती करार दिया,वहीं पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करने वाले चीन को सख्त संदेश देते हुए कहा कि भारत हिन्द प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था का पक्षधर है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य को दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते दखल के प्रति आसियान देशों की नाराजगी को स्वर देने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है।

चीन प्राकृतिक संसाधनोंं से भरपूर इस समुद्री क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है,जबकि वियतनाम और फिलीपींस जैसे पड़ोसी देशों को इस पर एतराज है। भारत पहले से ही इस इलाके में निर्बाध समुद्री परिवहन की वकालत करता रहा है। भारत के लिए दक्षिण चीन सागर का अति विशिष्ट महत्व है। हमारा भी 55' से अधिक व्यापार दक्षिण चीन सागर के माध्यम से होता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद और चरमपंथ को क्षेत्र के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब क्षेत्र के सभी देश मिलकर इस चुनौती का सामना करें। आतंकवाद पर गंभीरता दिखाते हुए पूर्वी एशिया सम्मेलन ने भी मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद को वित्त पोषण के खिलाफ अलग से घोषणापत्र जारी किया। इसमें आतंकी नेटर्वकों की चुनौती से निपटने के लिए एकजुटता के साथ कार्य करने का संकल्प जताया गया। भारत-आसियान संबंधों की ऊंचाइयों को इससे भी समझा जा सकता है कि भारत ने पूर्व की परंपरा को तोड़ते हुए 26 जनवरी 2018 में गणतंत्र दिवस समारोह में एक मुख्य अतिथि के स्थान पर सभी आसियान देशों को आमंत्रित किया है।

आसियान के स्थापना के 50 वर्ष

इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे पांच देशों के साथ मिलकर अगस्त 1967 में जब आसियान का गठन किया था, तब इस बात का अनुमान ही नहीं था कि यह संस्था अपने गठन के 50 वर्ष पूरा कर सकती है। मनीला में 31वें शिखर सम्मेलन के साथ धूमधाम के साथ इसकी 50वीं वर्षगांठ भी मनाई गई। आसियान का मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में है। वर्तमान में इसके 10 सदस्य हैं-इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलीपींस, ब्रुनेई, वियतनाम, म्यांमार, कंबोडिया और लाओस।

भारत-आसियान संबंधों का विकासक्रम

भारत-आसियान संबंधों की शुरुआत तब हुई जब भारत ने अपनी लुक ईस्ट नीति के अंतर्गत पूर्वी देशों से संबंधों को प्रगाढ़ करने की कवायद शुरू की। यद्यपि इसकी आधिकारिक घोषणा 1991 में तब की गई जब भारत आसियान का प्रभागीय वार्ताकार बना। आसियान के 1995 के 5वें शिखर सम्मेलन में भारत को पूर्ण वार्ता भागीदार के रूप में स्वीकार कर लिया गया। भारत-आसियान संबंधों में विकास के चलते 1996 में भारत को आसियान की रीजनल फोरम की सदस्यता प्रदान की गई।

1997 में आसियान द्वारा अपने बाहरी रिश्तों के संबंध में आसियान विजन 2020 की घोषणा की गई। इस विजन ने भारत को आसियान के और निकट आने के लिए प्रेरित किया,जो अंतत: 12 अगस्त 2009 को मुक्त व्यापार समझौता के रूप में फलीभूत हुआ। इसके अंतर्गत 1 जनवरी 2010 से भारत और आसियान के बीच फ्री ट्रेड एरिया अस्तित्व में आया। 2014 में म्यांमार में हुए आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 9वें पूर्वी एशिया सम्मेलन में भारत की ओर से लुक इस्ट पॉलिसी के स्थान पर नई एक्ट ईस्ट पॉलिसी के रूप में स्थापित किया गया।

आसियान भारत का चौथा बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2015-16 में दोनों पक्षों के बीच 65 अरब डॉलर का व्यापार हुआ,जो कि भारत के कुल वैश्विक बाजार का 10.12' है। 2016-17 में यह बढक़र 70 अरब डॉलर हुआ। भारत ने आसियान से 2015-16 में 25 अरब डॉलर का आयात किया था,जो 2016-17 में बढक़र 30 अरब डॉलर हो गया।

उभरती अर्थव्यवस्था

भारत और आसियान देशों की संयुक्त जनसंख्या 1.85 अरब है। वहीं भारत और आसियान देशों की अनुमानित संयुक्त जीडीपी 3.8 लाख करोड़ डॉलर है। 2050 तक यूरोपीय संघ, अमेरिका और चीन के बाद आसियान के चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अनुमान है। 2018 तक शीर्ष 15 मैन्युफैक्चरिंग केंद्रों में शीर्ष 5 में आसियान के शामिल होने का भी दावा है।

भारत की दो महत्वपूर्ण परियोजनाएं

कालादान परियोजना कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोडऩे वाली परियोजना है। इससे भारत-म्यांमार में लॉजिस्टिक खर्च सीधे कम से कम 40' घट जाएगा। इससे पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के साथ ही भारत आसियान के मुख्य द्वार म्यांमार तक पहुंच जाएगा। एशियन ट्राइलेटरल हाइवे परियोजना मूलत: भारत, म्यांमार और थाइलैंड के बीच 1360 किमी लंबा हाइवे है। यह मणिपुर के मोरेह से शुरू होकर म्यांमार होता हुआ थाइलैंड के मेसोट तक जाएगा। 2019 तक यह शुरू होगा। अगर इस हाइवे की लंबाई को 3200 किमी कर दिया जाए तो भारत की पहुंच प्रत्यक्षत: वियतनाम तक हो जाएगी। भारत से वियतनाम तक के इस 3200 किमी लंबे हाइवे को ईस्ट-वेस्ट इकॉनोमिक कॉरिडोर का नाम दिया गया है। हाइवे से जुड़े सभी क्षेत्रों में रोजगार और निवेश की संभावनाएं बढ़ेगी।

भारत-आसियान संबंधों ने कई नए अवसरों को खोला है और भारत के लिए भी एक बड़ा बाजार उपलब्ध हुआ है। आशा है कि इस संबंध में इस क्षेत्र में आॢथक अवसरों की वृद्धि से पिछड़ापन दूर होगा व आॢथक संवृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप रोजगार में वृद्धि होगी व विघटनकारी तत्वों में कमी आएगी। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक संपर्कों में वृद्धि होगी। यह भी संभव होगा कि भारत-आसियान आपसी सहयोग बढ़ाकर विश्व को अधिक लोकतांत्रिक समरसतापरक और बहुध्रुवीय बना सकें।

(कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ)

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