पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक के तीन खाताधारकों ने अपनी जीवनलीला इसलिए समाप्त कर दी कि बैंक के डूबने का भय था। ये घटनाएं न केवल भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पर बल्कि शासन व्यवस्था पर भी एक बदनुमा दाग हैं। आज यह स्वीकारते कठिनाई हो रही है कि देश की आर्थिक व्यवस्था को सम्भालने वाले हाथ इस कदर दागदार हो गए हैं कि नित-नया बैंक घोटाला एवं घपला सामने आ रहा है। दिन-प्रतिदिन जो सुनने और देखने में आ रहा है, वह पूर्ण असत्य भी नहीं है। पर हां, यह किसी ने भी नहीं सोचा कि जो बैंक राष्ट्र की आर्थिक बागडोर सम्भाले हुए थे और जिन पर जनता के धन को सुरक्षित रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी, क्या वे सब इस बागडोर को छोडक़र अपनी जेब सम्भालने में लग गये? जनता के धन के साथ खिलवाड़ करते हुए घपले करने लगे।
सर्वविदित है कि बैंक में फ्राड को पकडऩे की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक आफ इंडिया की है। लोगों का पैसा सुरक्षित रहे, इसकी जिम्मेदारी भी आरबीआई की है। आरबीआई अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़?सकता, केन्द्र सरकार भी इन स्थितियों के लिये दोषी है। घर में अपनी मेहनत की पूंजी को जमा रख नहीं सकते, बैंकों में जमा कराये तो जमा धन के सुरक्षित रहने की गारंटी नहीं, कहां जाये आम आदमी? लोगों का बैंकिंग तंत्र में भरोसा बहाल करने के लिए सरकार को?ठोस कदम उठाने ही होंगे अन्यथा पूरा अर्थतंत्र ही अस्थिर एवं डूबने की कगार पर पहुंच जायेगा।
बैंक घोटालों की त्रासद चुनौतियों का क्या और कब अंत होगा? भ्रष्टाचार, अराजकता, घोटालों-घपलों की उफनती नदी में नौका को सही दिशा में ले चलना और मुकाम तक पहुंचाना बहुत कठिन है। सवाल है कि भ्रष्ट लोगों और बैंक का पैसा डकार कर भागने वाले के गुनाह का खामियाजा बैंक के ग्राहक क्यों भुगतें? घोटालेबाज क्यों नहीं सजा पाते? भविष्य में ऐसे घोटाले न होने की गारंटी सरकार क्यों नहीं देती? बैंक के खाताधारकों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के आगे गुहार लगाई थी, तब उन्होंने भरोसा दिलाया था कि वह ग्राहकों को राहत दिलाने के लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर से बात करेंगी। राहत ही क्यों, पूरा पैसा देने की गारंटी क्यों नहीं? रोशनी बन कर गृहमंत्री अमित शाह ने पीएमसी घोटाले पर आश्वासन दिया है कि ग्राहकों का पूरा पैसा वापस किया जाएगा।
पीएमसी काण्ड ने बैंकों के प्रति विश्वास की हवा निकाल दी है। मोदी सरकार को ऐसा उपाय करना होगा कि बैंक के विफल होने पर लोगों की मेहनत की कमाई पूरी वापस मिल सके। इसके लिए कानून में संशोधन भी करना पड़े तो किया जाना चाहिए। दरअसल, समानान्तर काली अर्थव्यवस्था इतनी प्रभावी है कि वह कुछ भी बदल सकती है, कुछ भी बना और मिटा सकती है। एक वक्त था जब राज्यों की सुरक्षा व विस्तार हथियारों के बल पर होते थे। शासकों को जान हथेली पर रखनी पड़ती थी। आज सत्ता मतों से प्राप्त होती है और मत काले धन से। और काला धन हथेली पर रखना होता है। बस यही घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ है और अब बैंकों तक उनकी पहुंच हो गयी है।
लोकतंत्र एक पवित्र प्रणाली है। पवित्रता ही इसकी ताकत है। इसे पवित्रता से चलाना पड़ता है। अपवित्रता से यह कमजोर हो जाती है। ठीक इसी प्रकार अपराध के पैर कमजोर होते हैं। पर अच्छे आदमी की चुप्पी उसके पैर बन जाती है। अपराध, भ्रष्टाचार अंधेरे में दौड़ते हैं। रोशनी में लडख़ड़ाकर गिर जाते हैं। हमें रोशनी बनना होगा। और रोशनी बैंक घोटालों एवं जनता की मेहनत की कमाई को हड़पने से प्राप्त नहीं होती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)