Bhagavad Gita Controversy: गीता पर नाहक विवाद
Bhagavad Gita Controversy: गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिस पर दुनियाभर की भाषा में सबसे ज्यादा भाष्य, टीका, व्याख्या, टिप्पणी, निबंध, शोध ग्रंथ आदि लिखे गए हैं। बावजूद, ताजा विवाद ने Gita को भी नहीं छोड़ा।
Bhagavad Gita Controversy: प्रसिद्ध चिंतक मारकस गार्वी (Marcus Garvey) लिखते हैं,'अपने अतीत, मूल और संस्कृति के ज्ञान के बिना व्यक्ति अथवा समाज एक जड़हीन वृक्ष की तरह है। अतीत की ओर देखने का अर्थ भविष्य से मुंह मोड़ना नहीं है, क्योंकि अतीत भविष्य की प्रशस्त राह बनाता है।' पर, हमारे यहां वामपंथियों, छद्म उदारवादियों और अंग्रेजीपरस्त बुद्धिजीवियों ने अपने गौरवशाली अतीत को हिकारत की नजर से देखा। तभी तो आज अतीत की ओर झांकने, अतीत के गौरव बखान करने को पिछड़ापन बताया जाता है।
इसी मानसिकता के चलते हमारे यहां धर्म व अध्यात्म को लेकर नित नये-नये विवाद जन्म लेते रहते हैं। कर्नाटक से शुरू हुआ 'हिजाब विवाद' (Hijab Controversy) अभी थमा नहीं था, कि गीता (Bhagavad Gita) को लेकर वितंडा खड़ा कर दिया गया। इससे पहले छठवीं से बारहवीं कक्षा तक गुजरात में गीता पढ़ाए जाने को लेकर विवाद हो चुका है।
गीता की पढ़ाई को लेकर विवाद करने वालों को शायद यह न पता हो कि ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ हिन्दू स्टडीज में गीता पर एक कोर्स चलाया जाता है। भारत के शिक्षा मंत्रालय के पोर्टल पर वेद और गीता पर एक पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है। महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी का गीता पर पाठ्यक्रम है। बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में गीता पर 2012 से पाठ्यक्रम संचालित हो रहा है। आईआईटी कानपुर में गीता पाठशाला है। प्रोफेसर लीला पुरुषोत्तम दास इसके इंचार्ज हैं। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी का फिलॉसफी विभाग गीता पर पूर्णकालिक कोर्स चलाता है। पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ द्वारा गीता पर एक साल का सर्टिफिकेट कोर्स चलाया जाता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के लिए एक साल का गीता पर कोर्स है। इसे इस्कॉन के सहयोग से संचालित किया जाता है।
ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पर अमल करते हुए अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई ने इंजीनियरिंग में भगवद्गीता को शामिल किया। निष्काम कर्म का गीता का संदेश प्रबंधन गुरुओं को भी लुभा रहा है। 1785 में चार्ल्स विल्किंस द्वारा पहले अंग्रेजी अनुवाद के बाद से 1982 तक गीता के 75 भाषाओं में 1982 अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। विश्व जनमानस को भारतीय दर्शन और अध्यात्म से परिचित कराने वाले इस काव्य का अध्ययन और अध्यापन ऑक्सफोर्ड , हार्वर्ड और बर्कले जैसे दुनिया के अग्रणी विश्वविद्यालयों में किया जा रहा है।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) से लेकर प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक एल्डस हक्सले (Aldous Huxley), गांधीजी के दार्शनिक गुरु हेनरी डेविड थोरो (Henry David Thoreau), परमाणु बम के जन्मदाता रॉबर्ट ओपेनहाइम (Oppenheim), स्विट्जरलैंड के विख्यात मनोविश्लेषक कार्ल जंग (Carl Jung) और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (A P J Abdul Kalam) भगवद्गीता के बड़े प्रशंसक रहे हैं। आइंस्टाइन (Albert Einstein) को अफसोस था, कि मैं अपने यौवन में इस ग्रन्थ के बारे में नहीं जान सका? जान गया होता तो जीवन की दिशा कुछ और होती। जब मैं भगवद्गीता पढ़ता हूं तो इसके अलावा सब कुछ मुझे काफी उथला लगता है।
गांधीजी के मुताबिक,'जब कभी संदेह मुझे घेरते हैं। मेरे चेहरे पर निराशा छाने लगती है। तब मैं क्षितिज पर गीता रूपी एक ही उम्मीद की किरण देखता हूं। इसमें मुझे अवश्य ही एक छन्द मिल जाता है, जो मुझे सांत्वना देता है। तब मैं कष्टों के बीच मुस्कुराने लगता हूं।' योगी अरविन्द का अनुभव रहा, कि 'गीता के वक्तव्यों में सत्य की झलक इतनी स्पष्ट दिखती है कि एक बार इसके संपर्क में आने वाला सहज ही इसका कायल हो जाता है।'अठारहवीं शती में ब्रिटिश गवर्नर जनरल गीता से इतना प्रभावित था कि अंग्रेजी भाषा में गीता का अनुवाद कराया ।
गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिस पर दुनियाभर की भाषा में सबसे ज्यादा भाष्य, टीका, व्याख्या, टिप्पणी, निबंध, शोध ग्रंथ आदि लिखे गए हैं। आदि शंकराचार्य, रामानुज, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क, भास्कर, वल्लभ, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, मधुसूदन सरस्वती, संत ज्ञानेश्वर, बालगंगाधर तिलक, परमहंस योगानंद, महात्मा गांधी, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन, महर्षि अरविन्द घोष, एनी बेसेन्ट, गुरुदत्त, विनोबा भावे, स्वामी चिन्मयानंद, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी नारायण, जयदयाल गोयन्दका, ओशो रजनीश, स्वामी क्रियानंद, स्वामी रामसुखदास, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि सैंकड़ों विद्वानों ने गीता पर भाष्य लिखे या प्रवचन दिये हैं।
संत ज्ञानदेव कृत भावार्थदीपिका नाम की टीका बहुत प्रसिद्ध है जो गीता के ज्ञान को भावात्मक काव्य शैली में प्रकट करती है। यह 1290 की है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कृत गीतारहस्य टीका, जो अत्यंत विस्तृत भूमिका तथा विवेचन के साथ पहली बार 1955 में पूना से प्रकाशित हुई थी, गीता साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वस्तुत: शंकराचार्य का भाष्य गीता का अर्थ ज्ञानपरक करता है , जबकि तिलक ने गीता को कर्म का प्रतिपादक शस्त्र सिद्ध किया है। श्रीमद्भगवद्गीता यथा रुप : इस्कॉन के संस्थापक श्री प्रभुपाद ने इसमें प्रत्येक श्लोक के संस्कृत शब्दों का विग्रह कर हिन्दी में शब्दार्थ लिखा गया है। इसका प्रकाशन अन्य भाषाओं - अंग्रेज़ी, स्पेनिश, रूसी आदि में किया।
"गीता ऐज़ इट इज़" इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद द्वारा लिखा गया है। भगवान कृष्ण के गहन संदेश को मूल संस्कृत पाठ, रोमन लिप्यंतरण, अंग्रेजी अनुवाद में विस्तृत व्याख्याएं करते हुए प्रस्तुत किया गया है। यह गीता का एक उत्कृष्ट परिचय माना जाता है। भगवत गीता : स्वामी प्रभावानन्द इसे गीता के सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी अनुवादों में से एक माना जाता है। महान लेखक व दार्शनिक एल्डस हक्सले ने इसका एक शानदार परिचय लिखा है। स्वामी प्रभावानंद और क्रिस्टोफर ईशरवुड ने संयुक्त रूप से बेहतरीन अनुवाद किया है।
ओशो की किताब 'गीता दर्शन" आधुनिक युग में भगवान कृष्ण का संदेश देने वाली अनूठी पुस्तक है। इस किताब के 8 वॉल्यूम प्रकाशित हुए हैं जिनमें करीब 350 घंटे के प्रवचन संकलित हैं। ओशो ने वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक शब्दावली में भागवत गीता को समझाया है। आदि शंकराचार्य व रामानुज की गीता भाष्य, मधुसूदन सरस्वती की गूढार्थदीपिका टीका , श्रीधर स्वामी की सुबोधिनी टीका , महात्मा गांधी के अनासक्ति योग,अरविंद घोष की गीता पर निबंध, परमहंस योगानन्द की ईश्वरार्जुन संवाद, विनोबा भावे की गीता-प्रवचन , जयदयाल गोयन्दका की गीता तत्व विवेचनी टीका, स्वामी क्रियानंद की भगवत गीता का सार आदि गीता पर महत्वपूर्ण काम है।
गीता के सन्देश को जनसामान्य की समझ का बनाने के लिए आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, मध्वाचार्य, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, विनोबा भावे आदि तमाम विद्वानों ने व्याख्याएं कीं। इनसे गीता को आधुनिक सन्दर्भों में प्रासंगिक बनाने और इसके अनुशीलकों को नई प्रेरणा और जीवन दृष्टि मिलती है। महाभारत युद्ध आरंभ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच कुल 45 मिनट बातचीत हुई थी। गीता महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।इसका काल खंड लगभग 5156 वर्ष से लेकर 5018 वर्ष पुराना है। ज्ञात होता है कि लगभग ८वीं सदी के अंत में शंकराचार्य 788-820 के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। दसवीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का जावा की भाषा में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूल श्लोक भी सुरक्षित हैं। श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल संस्कृत के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है।
इसकी गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है। इसी में उपनिषद व ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। गीता का स्थान वही है जो उपनिषद और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में है। जो वेदज्ञान नहीं पा सकते, दर्शन और उपनिषद् का स्वाध्याय नहीं कर सकते; भगवद्गीता उनके लिए अतुल्य सम्बल है। जीवन के उस मोड़ पर जब व्यक्ति स्वयं को द्वन्द्वों तथा चुनौतियों से घिरा हुआ पाता है। कर्तव्य-अकर्तव्य के असमंजस में फंस जाता है। तब गीता उसका मार्गदर्शन करती है।
गीता भारत की सभी धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं में स्वीकार्य है। सांख्य, योग, वेदान्त के तो अनेक रहस्य इसके श्लोकों में समाहित हैं ।न्याय, वैशेषिक और मीमांसा के सूत्रों की व्याख्या भी यहाँ है। यह वेद से लेकर दर्शनों के सिद्धान्तों और उपनिषद से पुराणों तक की कथावस्तु को अपने में समेटे हुए है। इस में धर्म, कर्म, योग, जीवन, जगत और इनके गहन रहस्यों का समावेश है। इसमें ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग का अद्भुत समन्वय है।गीता का रिश्ता महज़ धर्म से नहीं है। इसे दर्शन ग्रंथ के रूप में देखा जाता है ।जो कर्म और ज्ञान का संदेश देता है। अपने तार्किक सिद्धान्तों और व्यावहारिक उपदेशों के चलते गीता भारत से बाहर भी मान्य और सम्मानित है।
पर, आज इसी गीता को हथियार व ढाल बनाकर अपना काम निकाला जा रहा है। कहा जा रहा है, दर्शनशास्त्र ही पढ़ाना हो तो इसमें कुरान, बाइबिल आदि क्यों नहीं शामिल हों? यह भी कहा जा रहा है कि भगवद्गीता पलायनवाद को बढ़ावा देगी। एक आरोप यह भी है कि भगवद्गीता के माध्यम से संस्कृत द्वारा तमिल और द्रविड़ संस्कृति पर हमला है। लेकिन, जिस तमिल- संस्कृत का द्वंद्व पैदा करने की कोशिश की जा रही है ,उसके बारे में द्रविड़ भाषा विज्ञान के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ प्रो. थॉमस बरो का शोधकार्य 'लोनवर्डस इन संस्कृत' और 'कलेक्टेड पेपर्स ऑन द्रविड़ियन लिंग्विस्टिक्स' दर्शाता है कि संस्कृत के हजारों शब्द कुछ परिवर्तनों के साथ तमिल भाषा में शामिल हो चुके हैं । इसी तरह संस्कृत ने बड़ी संख्या में तमिल से शब्द ग्रहण किए हैं।
धर्म को हमेशा विवाद का सबब बना दिया जाता है। प्राय: सभी धर्मों के बारे में सवाल खड़े करने वाले उसी धर्म के अनुयायी होते हैं। लेकिन यह बात इस्लाम के बारे में सही नहीं साबित होती है। इस्लाम में किसी भी कुरीति के खिलाफ आवाज इस धर्म के अनुयायियों की ओर से आज तक कभी नहीं उठी है। जबकि कठोर सच्चाई है कि हर धर्म में कुरीतियां होती ही हैं। हालांकि इसके पक्षकार इसे धर्म का हिस्सा न मानकर प्रैक्टिस व समाज की देन मानते हैं। कई नवीनतम शोध बताते हैं है कि जीवन में सफल होने के लिए व्यक्ति में बौद्धिक गुणांक के अतिरिक्त भावात्मक गुणांक, सामाजिक गुणांक और विपरीत परिस्थिति गुणांक होना भी आवश्यक है। गीता का अध्ययन चारों के उत्पन्न होने का अवसर देता है।