ब्राह्मण कर्म से बनते और बिगड़ते रहें

ब्राह्मण कौन है यह बड़ा गूढ़ प्रश्न है। हजारों साल से इस पर बहस चली आ रही है। पतंजलि का समय ईसा से डेढ़ सौ से दो सौ वर्ष पूर्व माना जाता है। ऐसे में पतंजलि भाष्य की रचना निश्चित रूप से ईसा से पूर्व तो हो ही चुकी थी। जिसमें कहा गया है कि विद्या, तप और ब्राह्मण-ब्राह्मणी से जन्म ये तीन बातें जिसमें पाई जाएं वही ब्राह्मण है

Update:2019-04-23 19:46 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: ब्राह्मण कौन है यह बड़ा गूढ़ प्रश्न है। हजारों साल से इस पर बहस चली आ रही है। पतंजलि का समय ईसा से डेढ़ सौ से दो सौ वर्ष पूर्व माना जाता है। ऐसे में पतंजलि भाष्य की रचना निश्चित रूप से ईसा से पूर्व तो हो ही चुकी थी। जिसमें कहा गया है कि विद्या, तप और ब्राह्मण-ब्राह्मणी से जन्म ये तीन बातें जिसमें पाई जाएं वही ब्राह्मण है, पर जो विद्या तथा तप से शून्य है और जातिमात्र के लिए ब्राह्मण है, पूज्य नहीं हो सकता। यानि पूर्व के नियमों में संशोधन करते हुए इस बात को जोड़ दिया गया कि ब्राह्मण होने की शर्त है विद्या और तप के साथ ब्राह्मण पिता व ब्राह्मण माता से जन्म हो। इसे रूढ़ अर्थ भी कह सकते हैं और रूढ़ि की शुरुआत भी।

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जबकि ईसा से 31 सौ या 12 सौ वर्ष पूर्व महाभारत के रचनाकार वेदव्यास और नारदमुनि के अनुसार जो जन्म से ब्राह्मण है किन्तु कर्म से ब्राह्मण नहीं है। उसे मजदूरी के काम में लगा दिया जाना चाहिए। महर्षि याज्ञवल्क्य व पाराशर व वशिष्ठ के अनुसार भी जो कुछ भी मिल जाए ऐसी आसक्ति त्याग कर वेदों के अध्ययन में व्यस्त रहे और वैदिक विचार संरक्षण और संवर्धन हेतु सक्रिय रहे वही ब्राह्मण है।

वर्तमान युग में इतने कठिन नियम संभव नही हैं। इसीलिए तत्तकालीन समाज के सुधारक श्रीकृष्ण भगवद गीता में ब्राह्मणत्व की पहचान शम, दम, करुणा, प्रेम, शील(चरित्र), निस्पृही जैसे गुणों के स्वामी को ही ब्राह्मण बताते हैं।

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सत्य यही है कि केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं है। ब्राह्मण कर्म से ही बना जा सकता है यही सत्य है। इसके उदाहरण भी हैं ऐतरेय ऋषि दास पुत्र थे। परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की। ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण पढ़ना अतिशय आवश्यक माना जाता है।

ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे। उनको जुआरी भी कहा जाता था। परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये। ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया। सत्यकाम की मां जाबाला को उनके पिता का नाम नहीं पता था। परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए।

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इसके भी उदाहरण हैं कि एक ही कुल अलग अलग वर्ण अपनाया गया। राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए। पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए। विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने।

क्षत्रियकुल में जन्मे शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया। वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए। मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने। विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया। विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। विदुर दासी पुत्र थे। तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया।

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