British Empire: इस साम्राज्य का सूरज डूबने के बाद भी चमक रहा

British Empire: ब्रिटिश साम्राज्य पर उत्पीड़न, लूट-खसोट के तमाम आरोप लगे, इस साम्राज्य के खिलाफ आज़ादी की लड़ाईयां लड़ी गईं और आज ये साम्राज्य मात्र एक देश में सिमट कर रह गया है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2022-09-15 11:10 GMT

King Charles-III (photo: social media )

British Empire: ब्रिटिश साम्राज्य के बारे में कहा जाता था कि इसके शासन में सूरज कभी डूबता नहीं था यानी इतने ढेर सारे देशों पर ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित था कि चौबीसों घंटे कहीं न कहीं सूरज निकला ही रहता था। ब्रिटिश साम्राज्य पर उत्पीड़न, लूट-खसोट के तमाम आरोप लगे, इस साम्राज्य के खिलाफ आज़ादी की लड़ाईयां लड़ी गईं और आज ये साम्राज्य मात्र एक देश में सिमट कर रह गया है।

सब कुछ होने के बाद भी आज ब्रिटेन के राजा कम से कम 14 मुल्कों के राजा माने जाते हैं- जिनमें ऑस्ट्रेलिया और कनाडा भी शामिल हैं। इसके अलावा पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य वाले देशों के संगठन राष्ट्रमंडल ग्रुप के अगुवा भी ब्रिटेन के सम्राट हैं। यानी आज भी ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज डूबा नहीं है। उस साम्राज्य और उसके शासक का विस्मयकारी रूतबा, उसका रोबदाब, शासक होने के बावजूद उसके प्रति सम्मान और श्रद्धा आज भी बरकरार है जो संभवतः किसी अन्य सम्राट में न रही होगी न अब है।

दुनिया में नीदरलैंड, स्पेन, बेल्जियम आदि कई देशों का औपनिवेशिक फैलाव रहा। लेकिन उन शासकों के प्रति वो सम्मान जरा भी नहीं है जो ब्रिटिश सम्राटों के प्रति है। यही वजह है की क्वीन एलिजाबेथ के निधन पर पूरी दुनिया शोक मना रही है जिनमें वह देश भी शामिल हैं जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाइयाँ लड़ीं,, कुर्बानियां दीं। इसकी वजह शायद इस बात में छिपी हुई है कि ब्रिटिश साम्राज्य ने बहुत लूटा । लेकिन बहुत कुछ दिया भी। शासक तो मंगोल, तुर्क, पर्शियन, आदि भी रहे । लेकिन आज इनको रत्ती भर कोई याद नहीं करता सम्मान तो बड़ी दूर की बात है।

दुनिया में कई जगह राजशाही का सिलसिला आज भी जारी है । हालांकि, इनमें से अधिकांश देशों में राजशाही नाममात्र की है ।असली शासन लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत जन निर्वाचित सरकारों द्वारा चलाया जाता है। जिन देशों में राजशाही है वहां इसे एक सम्मान और परंपरा के तौर पर जारी रखा गया है। कुछ सिर्फ अरब देशों में ऐसी व्यवस्था चली आ रही है जहाँ असली शक्ति राजाओं के हाथ में है।

ब्रिटेन की तरह बेल्जियम, स्पेन, डेनमार्क, जापान, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, न्यूज़ीलैण्ड, नॉर्वे, मलेशिया, थाईलैंड, मोनाको, भूटान, कम्बोडिया ऐसे देश हैं जहाँ राजवंश की परम्परा चली आ रही है। इन देशों में निर्वाचित सरकारें भी हैं ।लेकिन राजा / रानी को भरपूर सम्मान दिया जाता है। नॉर्वे में सन 872 से हराल्ड फेयर हेयर का राजवंश शासन कर रहा है। स्पेन के राजा दसवीं शताब्दी से शासन कर रहे हैं। जबकि जापान में तो छठवीं शताब्दी से सम्राट किनमेई के शासन के प्रमाण मिलते हैं।

स्पेनिश साम्राज्य या हिस्पैनिक राजशाही या फिर कैथोलिक राजशाही

स्पेनिश साम्राज्य या हिस्पैनिक राजशाही या फिर कैथोलिक राजशाही ब्रिटेन के बाद सबसे व्यापक साम्राज्य कहा जाता है। 1492 और 1976 के बीच इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक स्पेनी साम्राज्य ने , अमेरिका के विशाल हिस्से, पश्चिमी यूरोप, अफ्रीका के क्षेत्रों और ओशिनिया तथा एशिया में विभिन्न द्वीपों को नियंत्रित किया। यह प्रारंभिक आधुनिक काल के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था, जिसके बारे में ब्रिटिश साम्राज्य की तरह कहा जाता था कि उसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था। स्पेनी साम्राज्य का असर ऐसा रहा कि आज तमाम देशों की असली भाषा स्पेनी है, जबकि मूल भाषाएँ गायब हो चुकी हैं। लेकिन जो सम्मान ब्रिटिश साम्राज्य का है, वह आज स्पेन का नहीं है। यानी सिर्फ राज करने से कुछ नहीं होता। मायने वह रखता है जो लोग और पीढियां याद रखती हैं। करने को तो बेल्जियम और जर्मनी ने अफ्रीका के बड़े हिस्सों पर शासन किया लेकिन आज उन्हें कोई याद नहीं करता।

ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ के निधन पर जिस तरह दुनिया भर से शोक संदेश आये, जिस तरह दुनिया के तमाम देशों में अकुलाहट देखी गयी, उससे यह तो साबित होता है कि ब्रिटेन के राजवंश का सूरज डूबा नहीं है। पर ऐसा हो इसके लिए एलिज़ाबेथ द्वितीय ने बहुत काम किया। सात दशक के अपने बेहद उथल पुथल भरे कार्यकाल काल में एलिज़ाबेथ ने तब गद्दी संभाली जब दुनिया में ब्रिटेन की हैसियत घट रही थी। उस समय उनके विरोधियों ने कहा कि वह बिना देखे कोई भाषण नहीं दे सकती। यह सच है कि वह स्कूल नहीं गयीं। पर कई भाषाएं सीखीं। एलिज़ाबेथ की ताजपोशी को जब दुनिया भर के टीवी में प्रसारित किया गया तब उनके ही प्रधानमंत्री चर्चिल को यह फ़िज़ूलख़र्ची लगा।

स्वेज नहर संकट के समय तो मिस्र ने ब्रिटेन की बहुत तौहीन की। नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। ब्रिटेन की फ़ौज को बैरंग वापस आना पड़ा। एलिज़ाबेथ ने राजशाही की जगह शाही शब्द को प्रचलन में लाने पर ज़ोर दिया। अफ्रीकी देशों से रिश्ते सामान्य करने और रंग भेद समाप्त करने के एलान की एलिजाबेथ की कोशिश को उनकी ही प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का समर्थन नहीं था। आयरिश रिपब्लिकन आर्मी ने इनके चचेरे भाई लार्ड माउंटबेटन की हत्या की। पर एलिज़ाबेथ ने इस आर्मी के नेता मार्टिन मैक्गिनस से हाथ मिलाया। आयरिश लोगों पर ब्रिटेन के पुराने जुल्म पर एलिज़ाबेथ ने अफ़सोस जताया। उन्होंने शाही परिवार से आम आदमी से मिलने जुलने की रीति नीति स्थापित की। उनकी जनता पर पकड़ का ही नतीजा है कि जब ब्रिटेन से स्कॉटलैंड के अलग होने की रायशुमारी हो रही थी तब एलिज़ाबेथ ने लोगों से अपील की कि सोच समझकर फैसला लें। इसका ही असर था कि रायशुमारी में स्कॉटलैंड को उचित समर्थन नहीं मिला। अमेरिकी का कांग्रेस को संबोधित करने वाली पहली महारानी थीं।

मुश्किल वक़्त में भी संस्था को कुशलता से सँभाला । उनमें हास्यबोध की झलक भी दिखती है। वह काफ़ी अच्छी मिमिक्री करती थीं। रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की काफ़ी अच्छी नक़ल किया करती थीं। उनके परिवार के लोग उनके इस लाजवाब हास्य बोध की ज़िक्र करते मिलते हैं। उनका खुद को बहुत गंभीरता से नहीं लेना उनके शासन की सफलता का राज रहा। वह हंसने को जीवन की एक अहम तकनीकी मानती थीं। उनके पास जीवन के मज़ाक़िया पहलू को देखने की क्षमता थी। एलिज़ाबेथ की ही देन थी कि आज के ब्रिटेन के किंग चार्ल्स तृतीय राज परिवार के पहले सदस्य बने जो स्कूल गये। शाही परिवार के ये पहले उत्तराधिकारी हैं जिनने डिग्री कोर्स पूरा किया।

जनवरी, 61 और 83 ,97 में जब वह भारत आईं थीं। तब दिल्ली हवाई अड्डे से राष्ट्रपति भवन तक देखने के लिए दस लाख लोग जुटे थे। इस दौरे पर वह शासक के तौर पर नहीं बल्कि समकक्षों तौर पर दिखी, रही। उनकी अंत्येष्टि में जापानी सम्राट नारुहितो, बेल्जियम के किंग फिलिप व स्पेन के किंग फेलिपे अपनी रानियों के साथ होंगे। नार्वे , स्वीडन व डेनमार्क के राजपरिवार के सदस्य, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपनी पत्नी के साथ, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी एल्बनीज, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रम सिंघल, जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक वाल्टर स्टिनमायर , इटली के राष्ट्रपति सर्गियो मातारेला, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल, ब्राज़ील के जाएर बोलसोनारो, तुर्की के रेचेप तैय्यप अर्दोआन, फ्रांस के इमैनुएल मैक्रो ,आयरिश नेता ताओइशिच माइकल मार्टिन , यूरोपियन कमीशन के प्रेसिडेंट उर्स वोडनर लियेन शामिल होंगे। जिस तरह दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष शरीक हो रहे हैं, वह भी बताता है कि डूबन के बाद चमक रह है सितारा।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

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