पंजाब के कॉमेडी शो में विलेन कौन?

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से 32 प्रतिशत दलित वोटर कांग्रेस की ओर आकृष्ट होंगे। उधर अकाली दल तथा मायावती की पार्टी को नये मुख्यमंत्री की जाति के कारण हानि हो सकती है।

Written By :  K Vikram Rao
Published By :  Divyanshu Rao
Update:2021-09-20 21:53 IST

भाजपाईयों को सोनिया— कांग्रेस से आस्था और धार्मिक आचरण के सिद्धांतों को समझने और सीखने का प्रयास करना चाहिये। मात्र ढोंगी सेक्युलरिज्म का प्रहसन नहीं। अब गौर कीजिये। चण्डीगढ़ राजभवन में आज प्रात: बिना देर किये अपने पार्टी नेता सरदार चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री पद की सोनिया ने शपथ दिलवा दी। कारण? आज (20 सितंबर 2021) से हिन्दुओं के पिण्डदान वाले दिनों की शुरुआत हुयी है। सोमवार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। शुभकार्य नहीं करतें हैं इस पखवाड़े में, सिवाय श्राद्ध, तर्पण के।

इससे पितर दोष से मुक्ति मिलती है। भले ही सोनिया वेटिकन के पोप की निष्ठावान अनुयायी हों, पर उनकी सास तो जन्मना पंडिताइन थीं। धर्म कर्म पर भरोसा रखतीं थीं। मुहूर्त पर विशेषकर। वर्ना हर खास निर्णय, पार्टी अध्यक्ष का निर्वाचन मिलाकर, को टाल देने के लिये मशहूर, यह यूरेशियन—राजनेता राहुल गांधी फिर तारीख आगे बढ़ा देते।

पार्टी से कई गुना अधिक धर्मप्राण और आस्थावान तो नये मुख्यमंत्री, मजहबी सिख सरदार चरणजीत सिंह चन्नी हैं। जिनकी निष्ठा (कुटुम्ब तथा नियति पर) कई गुना अधिक है। उनकी वास्तुशास्त्र और ग्रहदशा पर अटूट आस्था है। यूपी के योगी जी तो सेक्युलर हो गयें। नोएडा कई मुख्यमंत्री नहीं जाते थे क्योंकि मान्यता थी कि जो भी नोएडा गया। वह पद से गया। इसीलिये नास्तिक लोहिया के चेले, शुद्ध द्वंदात्मक भौतिकवादी अखिलेश यादव नोएडा यात्रा से बचते रहे। भले ही इस हरकत से नोएडा में लूट और भ्रष्टाचार पनपता—कूदता रहा हो।

योगी आदित्यनाथ असंख्य बार नोएडा गये, निडर होकर। पांचवां साल पूरा करने वाले हैं। उनके काशाय परिधान पर ढोंगी सेक्युलरवाद का धब्बा तक नहीं लगा। इसी संदर्भ में एक पदभ्रष्ट अभिव्यक्ति पर गौर कर लें। वस्तुत: दलित सिख और पसमांदा मुसलमान बेतुके बेमाने हैं। यह दोनों दो समतामूलक आस्थायें हैं। सनातन धर्म से बिलकुल विपरीत। ये शब्द पार्टीगत सियासत की देन है। वोट का खेल है।

पंजबा के नए सीएम सबसे जुदा और बिरले दिखते हैं

अत: पंजाब के यह नये कांग्रेसी मुख्यमंत्री सबसे जुदा और बिरले दिखते हैं। वे जब तकनीकी तथा वैज्ञानिक शिक्षा के काबीना मंत्री बने थे, तो हाथी पर सवार होकर अपने आवासीय बंगले में प्रविष्ट हुये थे। दिशा की खराबी के कारण दीवार तुड़वा कर नया दरवाजा बनवाया। ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र में आस्था ही कारण बताये जाते हैं। एक बार किसी एक तकनीकी पद पर दो आवेदकों की नियुक्ति का मामला था। वे दोनों पटियाला चाहते थे। चन्नी बोले कि, ''मसला भाग्यवाला है। अत: सिक्का उछालकर निर्णय करें।''

उनके पार्टी शत्रुओं ने उन पर खनन माफिया से याराना का आरोप थोपा। ऐसा ही एक उनके रास—विषयक प्रकरण का भी उल्लेख चर्चित रहा। तीन वर्ष बीते उन्होंने एक आईएएस अधिकारी के सौष्ठव की श्लाधा में मोबाइल पर दिल्ली उद्गार (नवंबर 2018) प्रेषित किये। शायद अधिक रसीला था। पंजाब महिला आयोग की अध्यक्षा तथा कांग्रेस नेता मनीषा गुलाटी ने कार्रवाही की मांग की। वर्ना आमरण अनशन की चेतावनी दे डाली। किन्तु पार्टी ने मामला रफा—दफा कर दिया। कई महिला आईएएस अधिकारियों द्वारा विरोध प्रदर्शन पर मनीषा गुलाटी ने गत मई माह में पुन: कठोर कार्रवाई की आवाज उठाई। मगर अमरिन्दर सिंह ने चन्नी को बचा लिया। ऐसा प्रकरण चन्नी वाला राज्य में दूसरा था।

पहला था श्रीमती रुपम देवल—बजाज आईएएस के नितंब को पुलिस मुखिया केपीएस गिल द्वारा स्पर्श करने पर। उसने 18 जुलाई, 1988 को काफी तूल पकड़ा था। तब कई टिप्पणियां आई थीं कि खालिस्तानियों से ग्रसित पंजाब की सुरक्षा हेतु गिल का पदासीन रहना आवश्यक है। बजाये रुपम देवल—बजाज के नितंब की रक्षा के। बात खत्म कर दी गयी।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से 32 प्रतिशत दलित वोटर कांग्रेस की ओर आकृष्ट होंगे। उधर अकाली दल तथा मायावती की पार्टी को नये मुख्यमंत्री की जाति के कारण हानि हो सकती है। मायावती को आशा थी कि अकाली दल से चुनावी गठबंधन द्वारा मिली मदद के कारण पंजाब में पहला दलित उपमुख्यमंत्री बनेगा।

इस अवधारणा को धक्का लगा है। चन्नी ने मायावती के प्रत्याशी के पद से पूर्वसर्ग ''उप'' हटाया, खुद मुख्यमंत्री बनकर। बसपा का चीरहरण कर डाला। पगड़ीधारी सिख तो पांथिक सिख पर सवा सेर पड़ गया। इसी बीच ज्ञात हुआ कि 78—वर्षीया अंबिका सोनी ने मुख्यमंत्री पद अस्वीकार कर दिया। अत: यदि छह माह बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस जीतती है तो मां—बेटे के निर्णय को दाद मिलेगी। यदि हार गये तो चन्नी की पगड़ी तो है ही ठीकरा फोड़ने को।

इधर अमरिन्दर सिंह ने फौजी अंदाज में मां और भाई—बहन को सूचित कर दिया है कि उन्होंने अभी ''अपने बूट के फीते बांधे नहीं हैं।'' बस मोजे कसने की देर है। उधर दलित रामदास अठावले ने अमरिन्दर सिंह को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होने का निमंत्रण दे दिया है। उनके शब्दों में टीवी विदूषक नवजोत सिंह सिद्धू की पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा से प्रगाढ़ मित्रता है। खान मोहम्मद इमरान खान के शपथग्रहण में सिद्धू हाजिरी बजा चुकें हैं। गेंद अब सोनिया—राजीव के पाले में पड़ी है।

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