गंगा की अविरलता में बाधाएं- राज, समाज, कंपनियां और हम

हमें अपने वर्तमान और भविष्य को स्वास्थ बनाना है तो गंगा की अविरलता सुनिश्ति करने के लिए जिन चार बांधों पर निर्माण कार्य चल रहा है। जबतक की गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने वाला पर्यावरणीय प्रवाह का डिजाइन तैयार न हो इन्हें तुरन्त प्रभाव से रोकना चाहिए।

Update:2020-08-24 14:33 IST
गंगा की अविरलता में बाधाएं- राज, समाज, कंपनियां और हम

जलपुरुष प्रो. राजेंद्र सिंह

आज नदियों के बारे में बे-समझी से मानवता और सभ्यताओं में बिगाड़ हो रहा है। इसी का नकारात्मक प्रभाव जलवायु परिवर्तन पर पड़ता है। जलवायु बिगाड़ने में नदियों की भूमिका हम पूर्णतः भूल गये हैं। इसलिए हम नदी जोड़ने की बात तो करते हैं, लेकिन नदियों से मानवता और सभ्यता को जोड़ने की बात नहीं करते हैं। हम रोज अपने गीतों में गाते रहते हैं। हमारा राष्ट्रगान भी नदियों के महत्व को गाता है। ‘‘यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग’’।

नदियाँ हमारी सभ्यता और संस्कृति हैं। इस हेतु दिखावे का सम्मान करने के लिए हम नदियों पर आरती और उत्सव बराबर करते हैं, लेकिन नदियों की सेहत हमारी सेहत के साथ जुड़ी है। यह नहीं जानते! तभी तो हम अपनी सेहत के लिए तो अच्छे से अच्छे चिकित्सक ढूंढते हैं लेकिन नदियों की सेहत की हमें चिंता नहीं है।

अविरलता और निर्मलता समझिये

नदियों का जलप्रवाह मानवीय रक्त प्रवाह की तरह ही है। ऐसा हम नहीं समझते हैं। इसलिए हमें नदियों की निर्मलता तो समझ आती है, चूंकि यह पैसे का लेन-देन और विकास का मापक बन गया है। सबसे प्रदूषित नदी वाला शहर ही विकसित शहर कहलाता है।

इसलिए निर्मलता के काम तो विकास के काम माने जाते हैं। अविरलता को विकास का पर्यायवाची नहीं माना जाता है। इसलिए दिल्ली, मुम्बई प्रदूषित नदियों वाले शहर विकसित कहलाते हैं।

गंगा की अविरलता को हमारे समाज, कथित संत और सरकार ने विकास विरोधी मान लिया है। इसलिए हमारे आज के सबसे बड़े नेता अब कहते हैं कि हमें विकास करना है। गंगा को निर्मल बनाना है। निर्मलता, अविरलता के बिना सम्भव नहीं है। अविरलता ही निर्मलता को बनाती और टिकाती है। फिर भी हम सब अविरलता को भूल गये हैं।

सबसे जरूरी है अविरलता

गंगा में भारत का उच्चतम न्यायालय, राष्ट्रीय हरित न्याय प्राधिकरण तथा भारत सरकार सभी एक मत होकर गंगा को पर्यावरणीय प्रवाह द्वारा अविरलता देने के लिए सहमत हैं। गंगा में पर्यावरणीय प्रवाह दिए बिना अर्थात् अविरलता सुनिश्चित किये बिना गंगा जी नष्ट हो जायेंगी। गंगा में अविरलता का अर्थ है कि गंगा में बिना अवरोधों के जल धारा प्रवाहित होती रहे। पर्यावरणीय प्रवाह नष्ट होने से नदियाँ मर जाती हैं। नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती हैं। जब नदियां रास्ता बदलती हैं तो सभ्यताएं भी नष्ट हो जाती हैं।

आज गंगा की अविरलता में बाधाएँ इसलिए हैं क्यों कि हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता की चिंता नहीं है। केवल विकास की चिंता है। विकास गंगा की अविरलता का सबसे बड़ा बाधक है।

बिजली अनाज का लालच

हमारी विकास की लालसा हमारी गंगा माँ की प्राचीन अविरलता को पुनः नहीं पाने देगी। गंगा जी पर बांध बनाने वाली कम्पनियां हमें बिजली और अनाज का लालच देती हैं। यह तो हम सही में गंगा जी की अविरलता से ही प्राप्त कर सकते हैं।

नदी का अज्ञान हमें आज हमारी मां गंगा से ही अलग कर रहा है। गंगा जी को कहते माँ हैं और करते इनसे कमाई हैं। अविरलता की सबसे बड़ी बाधा बड़ी कम्पनियों की कमाई है। अविरलता से इनकी कमाई पर रोक लग जाती है। नये बाँध बनने रुक जाते हैं। इसलिए पावर कम्पनियां गंगा की अविरलता में दूसरी सबसे बड़ी बाधा हैं।

गंगा की समग्रता को समझने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि हम गंगा जी को केवल पानी का प्रवाह मान बैठे हैं। गंगा जी अपने विशिष्ट गुण वाले केवल जल प्रवाह नहीं बल्कि हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक, वैज्ञानिक सभ्यता का आधार हैं। यह अपनी मानवीय सभ्यताओं को प्राचीन काल से टिकाए हुए थीं।

गंगा से संबंध भूल गए

जटिल व्यवस्था होने के कारण हम गंगा जी से अपने संबंधों को भूल गये हैं। इसलिए अब कुम्भ हमारे स्नान मात्र का अवसर रह गया है। कुम्भ में स्नान करने से हमारे पाप धुल जाते हैं। हमारी यह समझ पूरी नहीं है।

हम गंगा के प्रति केवल आरती और उत्सव करते हैं। अपने व्यवहार को प्रयोगात्मक नहीं बनाते चूंकि हमारा व्यवहार मां के अध्यात्मिक और वैज्ञानिक संबंधों को भूल गया है। इसलिए हम गंगा मां की अविरलता के अनुकूलन की दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

माँ गंगा भारत की ‘लिटमस पेपर’ की तरह है। यही हमारे स्थाई और सनातन विकास का आधार हैं। इसके किसी भी विकास की दिशा इस बात का जायजा लेने के लिए हमें गंगा जी को देखना ही होगा।

अगर हमारी नदियां मरणासन्न जैसी हालत में हैं। जैसे हमारी माँ गंगा। वह अब मरणासन्न है। इसका अर्थ ये है कि हम हमारे लालची विकास में अंधे हो गये हैं और अपनी माँ गंगा के सनातन, शाश्वत और पर्यावरणीय प्रवाह को भूल गये हैं।

हमें अब माँ गंगा की अविरलता समझ में नहीं आ रही है। यदि हमने मां गंगा के विनाश की असली वजह को गंगा की घाटी में प्राकृतिक संप्रदा का विनाश, मिट्टी का कटाव, पेयजल का नाश और उसपर अतिक्रमण और भूजल का अतिशोषण किया तो फिर गंगा की अविरलता की बात कैसे करेंगे?

अविरलता में अवरोध महाप्रलय की दस्तक

यह अतिक्रमण, प्रदूषण और गंगा के जल प्रवाह क्षेत्रों का शोषण हमारा गंगा के साथ अनुकूलन नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक कारण बन रहा है।

इस कारण को बदलना है तो गंगा घाटी में प्राकृतिक खेती, प्रदूषण मुक्त उद्योग और माँ गंगा के सतत प्रवाह को सम्मान करके अविरलता प्रदान करने की जरूरत है।

आज विकास के नाम पर माँ गंगा में हर जगह बड़े बांध विनाश कर रहे हैं। वह खनन, जंगलों का कटान उसके कारण जो गंगा क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन हुआ जिससे अतिवृष्टि 2013 केदारनाथ जैसी और सूखाड़ दोनों साथ-साथ आने लगे हैं। इसके आने के कारण नदी प्रवाह कभी सूख जाता है तो दूसरी तरफ बाढ़ से महाप्रलय कर देता। इस महाप्रलय से बचाने के लिए भारत के इंजीनियर गंगा की अविरलता में सबसे बड़े बाधक हैं।

पत्थर, गिट्टी, मिट्टी सब गंगा में

चार धाम सड़क योजना से गंगा में आने वाली मिट्टी, गिट्टी, पत्थर भी गंगा की अविरलता के बहुत बड़े बाधक हैं। यह सीधे गंगा जी में न जायें उस हेतु सड़क बनाने से पहले व्यवस्था करनी चाहिए।

हिमालय में बनने वाली सड़कों के लिए यह व्यवस्था सड़क निर्माण से पहले सदियों से होती आई है। लेकिन अब जो नई चार धाम सड़क निर्माण योजना है उसमें इसका आभाव है।

इसलिए हिमालय के गंगा जी के उद्गम क्षेत्र में पत्थर, गिट्टी, मिट्टी सब अब गंगा जी में आ रही है। यह 2013 के बांधों की ट्रनल में निकली गिट्टी के कारण हुए गंगा में आई बाढ़ के विनाश से भी सौ गुना ज्यादा विनाश करेंगी। इस काम पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगाई थी, लेकिन सरकार के एफीडेविट से रोक हटवा ली गई है।

कंपनियां दिखाती हैं स्वप्न

बड़ी कम्पनियाँ गंगा पर प्रदूषण मुक्त बिजली बनाने का स्वप्न दिखाते हैं और गंगा के जल से भूख मिटाने का सिंचाई का रास्ता बताते हैं। ये कभी भी मानवीय उपयोग किए हुए जल से खेती, बागवानी और अन्य उपयोग करने के रास्ते नहीं बताते हैं।

इसीलिए ही जो विशिष्ट गुणों वाला गंगा जल हम गन्ने जैसी फसल में उपयोग करते है। जबकि गन्ना तीसरी श्रेणी के जल में उगाया जा सकता है। इसलिए गंगा का 90 प्रतिशत जल केवल गन्ने आदि की फसलों में उपयोग करना भी गंगा की अविरलता में बड़ी बाधा है।

इस बाधा को ना राज समझता न समाज समझता है। इसलिए एक गलत काम हम बेसमझी के कारण करते जा रहे हैं। हमें गन्ना पैदा करना है तो हम अपने शहरों के गंदे जल को गन्ने की फसल में उपयोग करने योग्य आसानी से तैयार कर सकते हैं, लेकिन हम उसको उस रुप में नहीं देखते हैं। इसलिए गंगा जी की अविरलता की बाधाएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं।

उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने गंगा को एक जीवित मानवीय अधिकार दिया था। उसे भी भारत सरकार ने अपना एफीडेविट देकर स्थागित करा दिया। यह सरकारी व्यवहार गंगा जी की अविरलता के प्रति पूर्णरूप से प्रतिबद्ध नजर नहीं आता है।

सत्याग्रह में लगना होगा

इसलिए अविरलता में विकास और उससे पैदा हुआ विनाश सरकार के गंगा दर्शन में निहित नहीं है। समाज भी गंगा की अविरलता को बहुत समझता नहीं है। उसकी अज्ञानता वश ही सरकार भी अविरलता विरोधी बनी है। गंगा की अविरलता के लिए वैज्ञानिक, अध्यात्मिक, सर्वधार्मिक समझ चाहिए। तभी गंगा की अविरलता की बाधाएं दूर की जा सकती हैं।

गंगा की अविरलता की बाधाओं को तोड़ना है तो हमें गंगा जी और भारत की सब छोटी-बड़ी नदियों को समझना, समझाना, सहेजना और प्रदूषणकारियों के विरूद्ध सत्याग्रह में लगना होगा और जल शोधन करके अपने जीवन को चलाना जब हम सीख जायेंगे तब हम गंगा की अविरलता की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

इसे भी पढ़ें गंगा राष्ट्रीय प्रतीकः सबसे बड़ा सवाल, इसे सम्मान कौन दिलाएगा

हमें अपने वर्तमान और भविष्य को स्वास्थ बनाना है तो गंगा की अविरलता सुनिश्ति करने के लिए जिन चार बांधों पर निर्माण कार्य चल रहा है। जबतक की गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने वाला पर्यावरणीय प्रवाह का डिजाइन तैयार न हो इन्हें तुरन्त प्रभाव से रोकना चाहिए। हमें यह बताते हुए प्रसन्नता है कि भारत सरकार ने गंगा को अविरलता प्रदान करने के लिए नये बांधों के निर्माण पर रोक लगा दी है लेकिन इसे क्रियांवित करने की प्रतीक्षा है।

(मैग्सेसे पुरस्कार विजेता जल और पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता जलपुरुष राजेंद्र सिंह)

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