कोरोना की जंगः हम जीते हैं, हम जीतेंगे, अंततः हम जीत ही लेंगे

सब में हमने उम्मीद का कोई न कोई कण जगाया है।जहाँ भी हमें उम्मीद का कण दिखा,वहाँ हमने उम्मीद के सपने बोये और उसकी फ़सल काट ली । हमने धीरज और धैर्य की लंबी और न थकने वाली कई लड़ाईयां लड़ी है। इन लड़ाइयों में हम सदा जीतते आये हैं। मुल्क पर लगी किसी की भी नज़र को उतारते आये हैं।

Update:2020-03-27 16:14 IST

योगेश मिश्र

यह सही है कि भय का माहौल है ।यह सही है कि एक दूसरे से मिलने का मौक़ा नहीं है ।यह सही है कि हम सरपट दौड़ती सड़कों पर दौड़ नहीं सकते। यह सही है कि हम बाज़ार में चाट बेचने वाले की आमदनी नहीं बढ़ा सकते। यह सही है कि ग़ुब्बारे बेचकर अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करने वाले नन्हे मुन्ने बच्चे के सपनों में हम मदद के रंग नहीं भर सकते । यह सही है कि हम छोटे छोटे काम देकर दिहाड़ी के मज़दूरों की दो जून की मुकम्मल रोटी की व्यवस्था नहीं कर सकते। यह सही है कि हम उन सारे लोगों के लिए किसी काम के नहीं रह गए हैं , जिन्हें जोडकर हम बनते हैं और बनाते हैं अपना समाज अपना देश।

जरूरी है एकांत का अभ्यास

लेकिन इसी के साथ ही यह भी एक सच्चाई है कि हम ठहरकर भी वो सब कुछ कर रहे हैं, जो करना चाहते थे, जो करते आ रहे थे। शायद दुनिया की तवारीख में यह दिन लिखा जाएगा जब कोई भी पीढ़ी रेस दौड़कर जीतने की जगह ठहरकर जीत गई । यह ठहराव हमारे लिए सोचने का वक़्त है । यह ठहराव हमें अपने घर से परिचय प्राप्त करने का है ।

यह ठहराव नन्हें मुन्हें बच्चों की आदत जानने का है। उनके साथ लूडो, साँप सीढ़ी, ताश और शतरंज खेलने का है ।उनको बताने का है कि आप उनकी ज़िंदगी में सिर्फ़ एक मशीन नहीं ।पत्नी के साथ समय गुज़ारने का है।माँ बाप के साथ मिल बैठ याद कीजिए कितना लंबा समय हुआ होगा यह सब किये ।एकांत का अभ्यास, फ़ुरसत के क्षण जिये ।

याद करें

आप याद कीजिए जब आप ने ज़िंदगी की जंग जीतने की शुरुआत की थी, तब आप इन्हीं लोगों के साथ मिल बैठते थे । इन्हीं लोगों से मिली ऊर्जा व ऊष्मा ने आप में,हम में और सब में कई दशकों तक लगातार ट्रैक पर दौड़ने और जीतने जीतने का खेल खेलने का अवसर दिया। इनके साथ ही मिल बैठकर आप को, हमको , सबको और ऊर्जा और ऊष्मा इकट्ठी करनी है ताकि इस माहौल में आप जीत का परचम फहरा सकें।

कल मेरे एक दोस्त ने दिल्ली से फ़ोन करके कहा कि आज पहली बार दिल्ली के आसमान में तारे दिख रहे हैं। कल मेरे एक दोस्त ने फ़ोन पर कहा कि पक्षी शहरों में भी बोलते हैं। पक्षियों का कलरव गाड़ियों की शोर में गुम हो जाता था। हमारे कई दोस्त इन दिनों फ़ोन पर ज़िंदगी के ऐसे ऐसे वाकये बयान कर रहे हैं।जिससे लगता है कि ठहरी हुई इस दुनिया से सब कितने अनजान थे।

उम्मीद जिंदा रखनी है

संकट है । बड़ा है । पर ऐसा नहीं है कि इससे पहले हम संकटों से दो चार नहीं हुए। हमने, हमारी पीढ़ियों ने प्लेग का महाकाल देखा है। चेचक का काल देखा है। पोलियो जैसी बिमारी को ख़त्म किया है।लातूर और भुज का भूकंप देखा है। सार्स और मर्स की भी दहशत झेली है। हमने अकाल देखा है। हर साल कोई न कोई छोटी बड़ी आपदा झेली है। लेकिन सब से उबरकर हम आते रहे हैं।

सब में हमने उम्मीद का कोई न कोई कण जगाया है।जहाँ भी हमें उम्मीद का कण दिखा,वहाँ हमने उम्मीद के सपने बोये और उसकी फ़सल काट ली । हमने धीरज और धैर्य की लंबी और न थकने वाली कई लड़ाईयां लड़ी है। इन लड़ाइयों में हम सदा जीतते आये हैं। मुल्क पर लगी किसी की भी नज़र को उतारते आये हैं।

एक मिनट में खत्म होगा कोरोना

यह जंग भी हम जीतेंगे। क्योंकि अमेरिका का एक शोध बताता है कि ६२ से ७१ फ़ीसदी अल्कोहल,आधा फ़ीसदी हाइड्रोजन पर ऑक्साईड,०.१ फ़ीसदी सोडियम हाइपोक्लोराइट वाले ब्लीच से कोरोना वायरस एक मिनट के भीतर निष्क्रिय हो जाता है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक रमन गंगाखेडकर ने पाया है कि कोरोना वायरस की जेनेटिक संरचना ९९ .९ फ़ीसदी वैसी ही है जैसी जैसी वुहान में शुरुआती दौर में मिले वायरस की थी। आमतौर पर वायरस एक से दूसरे मानव शरीर से गुजरते समय संरचना बदल देता है। इस संरचना के बदलाव को म्युटेशन कहते हैं। करोना म्युटेशन नहीं करता। लिहाज़ा इसका इलाज निकल आयेगा।

कोरोना का चक्र समझिए

कोरोना के बारे में पता लगने में पाँच दिन अब लगता है। संक्रमित व्यक्ति में लक्षण १४ दिन तक रहता है। दोबारा संक्रमित होने का ख़तरा कम होता है। इस संक्रमण का प्रमुख लक्षण बुख़ार और सर्दी के साथ साँस की दिक़्क़त है। ब्रिटेन सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार मानते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मरने की आशंका एक से आधा फ़ीसदी के बीच है। विश्व स्वास्थ्य संगठन चार फ़ीसदी मानता है।

एक अनुभव यह भी

कोरोना पैदा करने वाला देश चीन जो अनुभव साझा कर रहा है, उसके मुताबिक़ संतरे और नींबू जैसे विटामिन सी के स्रोतों से भी कोरोना से पार पाया जा सकता है। चीनी वैज्ञानिकों के मुताबिक़ संतरे, नींबू, लहसुन, प्याज़ जैसे प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाई जा सकती हैं। न्यूयार्क के लॉंन्ग आइलैंड के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. एंड्रयू वेबर का दावा है कि कोरोना मरीज़ों को नसों के ज़रिये १५०० मिलीग्राम विटामिन सी दिया जा रहा है। हालाँकि इसकी डोज़ मरीज़ पर निर्भर करती है।

प्लाज्मा से इलाज को भी मंजूरी

अमेरिकी, ब्रिटेन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना से ठीक हो चुके मरीज़ों के प्लाज़्मा से इलाज की भी मंज़ूरी दी है। इबोला और सार्स के मरीज़ों का इलाज इस तरह किया जा चुका है।२००३ में सार्स से निपटने के लिए स्विट्ज़रलैंड के लाजेन विश्वविद्यालय के बायो केमेस्ट्री विभाग ने जो शोध शुरू किया था, कोरोना से निपटने के लिए वह मुफीद लगने लगा है। हालाँकि यह शोध सार्स पर नियंत्रण के बाद धन की कमी के चलते बंद कर दिया गया।

इसकी भी थी तैयारी

इसके मुताबिक़ जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार हीट शॉक प्रोटीन-७० (एचएसपी) को रोगी के शरीर में इंसुलिन की तरह डाल कर यह बंदोबस्त करना था कि श्वसन तंत्र फेल न हो,रोगी की मौत न हो। जब वायरस फेफड़े की कोशिकाओं की प्रोटीन पर क़ब्ज़ा कर लेता है ,शरीर की प्रोटीन बनाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, तब एचएसपी-७० शरीर में प्रोटीन की कमी नहीं होने देती। श्वसन तंत्र फेल होने से बचा रहता । शरीर की प्रतिरोधक क्षमता वायरस को शरीर से बाहर कर देती । इस शोध में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले के डॉ. सत्यम तिवारी भी शामिल हैं।

लो आ गई टेस्ट किट

इस बीच भारत में भी कोरोना वायरस की जांच और किट को लेकर बड़ी खबर आई है। अगले 3 से 4 सप्ताह के बीच में कोरोना वायरस किट मार्केट में मौजूद होगी। जिसकी कीमत 500 रुपए से 700 रुपए के बीच होगी। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने 18 कंपनियों को कोरोना वायरस टेस्टिंग की परमीशन दे दी है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की मंजूरी मिलने के बाद ये टेस्टिंग किट बहुत जल्द मार्केट में आ जाएगी। खास बात ये है कि इस टेस्ट किट से जांच की कीमत एक हजार रुपए से भी कम होगी।

जितनी जल्दी जायेंगें, उतनी जल्दी लौटेंगे

दिल्ली में कोरोना संक्रमण का पहला केस रोहित दत्ता का सामने आया था। वह विदेश से आये थे। डाक्टर के पास गये। खुद डॉक्टर को कह कर कोरोना टेस्ट कराया। पहली मार्च को रोहित दत्ता का टेस्ट पॉज़िटिव आया। वह उसी दिन से क्वोरोनटाइन में चले गये। ठीक हो गये। रोहित राय देते हैं- “सबसे पहले डॉक्टर के पास जाइये, टेस्ट कराइये। जितनी जल्दी जायेंगें, उतनी जल्दी लौटेंगे।” दत्ता बताते हैं, मैंने ज़िंदगी सिर्फ़ दौड़ने भागने में गुज़ार दी।

हर आदमी के पास है ये चीज

यह अहसास आज हर आदमी का है, होगा।इस एहसास के साथ हम ठहरें हैं। क्योंकि हमें पता है इस बार हमें ठहर कर जंग जीतनी है। दशों दिशाओं से राहत की खबर आने वाली है। हर तरफ़ आजू बाज़ू में उम्मीद की फसल लहलहाने वाली है। हर तरफ़ उम्मीदों की रोशनी पसरने वाली है। इस बार इस जंग के जीतने के बाद फिर अपने परिजनों से मिलना है। फिर लोगों को गले लगाना है । फिर उत्सव मनाना है । फिर उसी तरह लोगों के बीच इकट्ठे होकर नाचना और गाना है। फिर माल में जाना है। फिर बाज़ार में भीड़ बढ़ाना है। फिर रंग बदलते आसमान को देखना है । पक्षियों के कलरव सुनना है। भागते शहरों की ओर लौटना है।

इस हौसले को बरकरार रखें

शहरों की सड़कों पर दौड़ना है। पर खुद से इस संकल्प के साथ नहीं कि भागते रहो, भागते रहो, बल्कि हर रोज़ , हर पल ठहर कर चारों ओर यह देखने के साथ ही कि हम हैं कहाँ। हम जा किधर रहे हैं। हर बार हम जीते हैं।हम जीते हैं तभी तो जीते हैं। इस बार भी जीतना है। नई दौड़ के लिए तैयार होना है इसलिए लंबा सुस्ता लें। घर में रह कर प्लान बना लें। इस बार की लड़ाई में समूची दुनिया हमारे साथ है। हम कहते आये हैं- मानवता का कल्याण हो। यह आप्त चिरंतन जारी रहेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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