धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून
Dharm Parivartan: वास्तव में धर्म-परिवर्तन है क्या? यह वास्तव में धर्म-परिवर्तन के नाम पर ताकत का खेल है। इसका एक मात्र उद्देश्य अपने-अपने समुदाय का संख्या-बल बढ़ाना है।
Dharm Parivartan: कर्नाटक की विधानसभा ने धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून (dharm parivartan kanoon) पारित कर दिया है। भाजपा ने उसका समर्थन किया है और कांग्रेस ने उसका विरोध। इस तरह के कानून भाजपा-शासित कई अन्य राज्यों ने भी बना दिए हैं और कुछ अन्य बनाने जा रहे हैं। कर्नाटक के इस कानून के विरोध (anti conversion law karnataka) में कई ईसाई संगठनों ने बेंगलूरु (anti conversion law bangalore) में प्रदर्शन भी कर दिए हैं। कई मुस्लिम नेता भी इस कानून के विरोध में अपने बयान जारी कर चुके हैं। इस तरह के जितने भी कानून बने हैं, उनके कुछ प्रावधानों से किसी-किसी पर मतभेद तो जायज हो सकता है लेकिन भारत-जैसे देश में धर्म-परिवर्तन (Religion change) पर कुछ जरुरी प्रतिबंध अवश्य होने चाहिए।
वास्तव में धर्म-परिवर्तन है क्या (dharm parivartan kya hai)? यह वास्तव में धर्म-परिवर्तन के नाम पर ताकत का खेल है। इसका एक मात्र उद्देश्य अपने-अपने समुदाय का संख्या-बल बढ़ाना है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में संख्या-बल के आधार पर ही सत्ता पर कब्जा होता है। सिर्फ सत्ता पर औपचारिक कब्जा ही नहीं, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी अपना वर्चस्व कायम करने में मजहबी-संख्या की जबर्दस्त भूमिका होती है। जो लोग अन्य लोगों का धर्म-परिवर्तन करवाते हैं, उनसे कोई पूछे कि वे जिस धर्म के हैं, क्या वे उस धर्म का पालन अपने खुद के जीवन में ईमानदारी से करते रहे हैं ?
यूरोप का इतिहास बताता है कि वहां एक हजार साल की अवधि को अंधकार युग माना जाता है, क्योंकि उस काल में पोप की सत्ता ही सर्वोपरि रहती थी। कर्नल इंगरसोल ने अपनी रचनाओं में पोपों और पादरियों के भ्रष्टाचार, दुराचार, व्यभिचार आदि की पोल खोलकर रख दी है। पादरियों के दुराचार की खबरें आज भी अमेरिका और यूरोप से आए दिन संसार को चमकाती रहती हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि सभी पादरी या धर्मध्वजी भ्रष्ट होते हैं लेकिन यह कहने का अर्थ यही है कि धर्म की आड़ में पादरियों, मौलवियों, पंडितों, पुरोहितों, साधुओं और संन्यासियों ने सदियों से अपना ठगी का धंधा चला रखा है। सारे संगठित धर्म राजनीति से भी अधिक खतरनाक होते हैं, क्योंकि वे अंधश्रद्धा पर आधारित होते हैं। कोई भी व्यक्ति जब अपना धर्म-परिवर्तन करता है तो क्या वह वेद, त्रिपिटक, बाइबिल, जिंदावस्ता, कुरान या गुरु ग्रंथसाहिब पढ़कर और समझकर करता है?
हम लोग जिस भी धर्म को मानते हैं, वह इसलिए मानते हैं कि हमारे माँ-बाप ने उसे हमें घुट्टी में पिला दिया था। यदि कोई व्यक्ति किसी भी धर्म, संप्रदाय, पंथ या विचारधारा को सोच-समझकर उसमें दीक्षित होना चाहता है तो उसे परमात्मा भी नहीं रोक सकता लेकिन जो व्यक्ति लालच, भय, प्रतिरोध, अज्ञान और ठगी के कारण धर्म-परिवर्तन करता है, उसे वैसा करने से जरुर रोका जाना चाहिए। इसीलिए ये धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून बन रहे हैं लेकिन इन कानूनों को शुद्ध प्रेम पर आधारित अंतरजातीय विवाहों और तर्क पर आधारित धर्म-परिवर्तन के मार्ग की बाधा नहीं बनना चाहिए।