Digital India: भारत को बदलता डिजिटल इंडिया
Digital India: 2014 से पहले जब भारत के परिपेक्ष्य में डिजिटल की बात होती थी तो सबसे ज्यादा एक ही शब्द सामने आता था- डिजिटल डिवाइड।
Digital India: 2014 से पहले जब भारत के परिपेक्ष्य में डिजिटल की बात होती थी तो सबसे ज्यादा एक ही शब्द सामने आता था- डिजिटल डिवाइड (Digital Divide)। हो भी क्यों ना आजादी के 67 साल बीतने और देश में कम्प्यूटर क्रांति (Computer Revolution)के करीब 30 साल के बाद भारत के 49 गांव तक ही ऑप्टिक फायबर (Optic Fiber) पहुंच सके थे। पिछले सात साल में स्थितियां अब बदल चुकी हैं। आज भारत के डेढ़ लाख से ज्यादा ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड (Broadband) के वायर पहुंच चुके हैं। डिजिटल डिवाइड के उदाहरण बने ये लाखों गांव डिजिटली कनेक्ट हो चुके हैं।
ब्रॉडबैंड का ये तार सिर्फ गांव को ग्लोबल वर्चुअल ही नहीं बना रहे, बल्कि लोगों की जिंदगियों के तंतु को भी सजा रहे हैं, संवार रहे हैं। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (Digital India Program) के 6 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया (Digital India) से फायदा उठाने वाले लोगों से विस्तार से बात की। उनसे बात करने वालों में गांव के छोटे कस्बों के लोग थे, किसान थे, कामगार थे, बीपीओ में काम करने वाली युवा महिला थी, तो फल का ठेला लगाने वाली महिला भी थी, स्टूडेंट थे तो डॉक्टर भी थे।
'सबका साथ, सबका विकास'
डिजिटल इंडिया के इस संवाद को 'सबका साथ, सबका विकास' के पीएम मोदी के ध्येय वाक्य का उदाहरण बनाया गया। संकेतों के राजनीति के बड़े खिलाड़ी पीएम मोदी ने अपने लक्ष्य को हासिल किया या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, पर इस बात पर विवाद बिलकुल नहीं है कि डिजिटल इंडिया ने भारत के लोगों की जिंदगियों में बड़ा बदलाव किया है। भारत के उन लोगों की जिसे डिजिटल डिवाइड का शिकार बताया जाता था।
प्रधानमंत्री के साथ संवाद करने वाले छोटी से सुहानी साहू ने स्कूल शिक्षा के लिए बने 'वन नेशन, वन डिजिटल' प्रोग्राम ('One Nation, One Digital' Program) दीक्षा के जरिए कोविड महामारी के दौरान अपनी पढ़ाई जारी रखी। वहीं उनकी ही शिक्षिका प्रतिमा सिंह ने इस ऑनलाइन कार्यक्रम के लिए 100 से ज्यादा पाठ्यक्रम कर अपनी स्किल बढ़ाई और बच्चों की अनवरत पढ़ाई कराने में अपना योगदान दिया। इस दौरान सुहानी ने व्हाट्सऐप पर अपने शिक्षकों के भेजे लिंक से ना सिर्फ पढ़ाई जारी रखी बल्कि शिक्षकों ने जो लिंक भेजे हैं उसे देख कर समझ कर,सुनकर अपना ज्ञान बढ़ाया।
टेलीमेडिसिन (Telemedicine)
प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) की महत्वाकांक्षी योजना है कि गांव-गांव में विश्व स्तर की स्वास्थ्य सेवा मिल सके। इसी वजह से देश भर में वेलनेस सेंटर्स का जाल बिछाया जा रहा है। इन सेंटर्स पर टेलीमेडिसिन के जरिए लोगों का इलाज किया जाना है। इस संवाद ने इस सपने को साकार होते दिखाया है। इस संवाद में पीएम मोदी ने नेपाल सीमा पर छोटे से गांव में रहने वाले शुभम से बात की, जिन्होंने टेलीमेडिसिन के जरिए अपनी दादी मां का इलाज लखनऊ के किंगजार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉक्टर भूपेंद्र सिंह से करवाया। उन्होंने इलाज करने वाले डॉक्टर भूपेंद्र सिंह से भी बात की, जिन्होंने लॉकडाउन के समय टेली मेडिसिन के जरिए 2.5 लाख लोगों को परामर्श देकर उनका इलाज भी किया और विश्वरिकार्ड भी बनाया है।
ई-नाम (E-NAM)
इसी संवाद में हल्दी किसान प्रहलाद ने बताया कि उन्होंने कोरोना के दौरान ई-नाम (E-NAM) यानी ई-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट से अपनी उपज बाजार भाव से अच्छी कीमत पर बेच ली। उन्हें पुणे में बाकायदा इसकी ट्रेनिंग ली और एक क्लिक से अपनी उपज बेच ली। वहीं एक और किसान महेश दत्त शर्मा ने बताया कि उन्हें इसी कोरोनाकाल में ग्रामीण ई स्टोर (Grameen E Store) का लाभ मिला और उनका पशुचारा, दवा आदि उनके घर पर पहुंचायी गयी।
इस संवाद में मध्य प्रदेश की महिला नाजमीन बानो ने पीएम स्वनिधि योजना का लाभ उठाकर लोन लिया और क्यूआर कोड के जरिए अब डिजिटल पेमेंट को अपना लिया है। इसी संवाद में नार्थ ईस्ट के बीपीओ प्रमोशन योजना की लाभार्थी युवा महिला थी, वहीं डिजिबुनाई सॉफ्टवेयर से फायदा उठाने वाले महिलाओं का समूह भी था। यानी गांव, छोटे कस्बे और सुदूर पूर्वोत्तर तक डिजिटल इंडिया ने अपनी पहुंच बना ली है।
इस संवाद के ये कतई मायने नहीं कि अब डिजिटल सेवा में सब एकदम ठीक है। पर इतना जरुर है कि बहुत दूर मंजिल का आधे से ज्यादा रास्ता तय हो चुका है। अभी रास्ता बहुत लंबा है। देश के हर परिवार को डिजिटली साक्षर करने के लिए काफी कवायद बाकी है। दरअसल डिजिटल डिवाइड की असली तस्वीर क्या है, उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। विशेषज्ञ बताते हैं कि शहरी क्षेत्र में प्रति 100 लोगों पर 104 इंटरनेट कनेक्शन हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100 लोगों पर लगभग 27 कनेक्शन हैं। यानी अभी काफी काम किया जाना है, लेकिन दिशा सही है। एक बड़ी सेल कंपनी की जारी एक रिपोर्ट से इसकी पुष्टि होती है। इसके अनुसार पिछले चार वर्षों में भारत में डेटा ट्रैफिक में 44 गुना वृद्धि हुई है।
ग्रामीण इंटरनेट यूजर्स की संख्या पहुंची 30 करोड़ तक
डेढ़ लाख गांव में ब्रॉडबैंड के तार पहुंचने और गांवों में कॉमन सर्विस सेंटर खुलने से डिजिटल डिवाइड को कम करने में काफी काम किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से 2020 के बीच देश में इंटरनेट का प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या 30 करोड़ से बढ़कर 76 करोड़ पहुंच गयी है। इनमें अगर ग्रामीण इंटरनेट यूजर्स को देखें तो ये 18 करोड़ बढ़कर 30 करोड़ हो गयी है। यानी अब भी देश की करीब 40 प्रतिशत आबादी तक इंटरनेट की सुविधा पहुंचाई जानी बाकी है।
भारतनेट परियोजना
यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में साल 2011 में, भारतनेट परियोजना शुरुआत की गयी। इसके तहत ढाई लाख पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर (100 एमबीपीएस) से जोड़ा जाना था। बाकी योजनाओं की तरह ही उसमें भी काम नहीं हुआ,ब्रॉडबैंड 100 गांव तक भी नहीं पहुंच सके। इस परियोजना पर काम 2014 में जाकर शुरू हो सका। इस योजना के तहत इन ढाई लाख गांव को मार्च 2019 तक इंटरनेट से जोड़ना था, पर कोरोना लॉकडाउन की वजह से अब इस लक्ष्य के लिए निर्धारित समयसीमा को अगस्त 2021 तक बढ़ा दिया गया है।
प्रधानमंत्री से हुए डिजिटल इंडिया संवाद ने इस बात की तो पुष्टि कर दी है कि योजना जहां तक पहुंची वहां पर उसका असर दिख रहा है। इतना ही नहीं देश के बाकी बचे 1 लाख गांव के लिए एक बार फिर से 19 हजार करोड़ रुपये का फंड केंद्र सरकार देने की घोषणा कर चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा जारी फंड यह भी साबित कर दिया है कि इस योजना को लेकर सरकार पूरी तरह गंभीर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)