K Vikram Rao: दो दलित नेताओं में कितनी विषमता!
बाबू जगजीवन राम की आज 114वीं जयंती है। दूसरे ही डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर है। दोनों में कुछ साम्य है। वे लोग आजाद भारत की नेहरु काबीना में मंत्री रहे। जगजीवन राम केवल 38 वर्ष के थे।
K Vikram Rao: भारत के राजनीतिक इतिहास में दो दलित पुरोधा अत्यधिक चर्चित रहे। महान भी। इसी माह (अप्रैल) इन दोनों की जयंती भी पड़ती है। केवल नौ दिनों के फासले पर। बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) जिनकी आज (5 अप्रैल 2022) 114वीं जयंती है। दूसरे ही डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar) (14 अप्रैल 1891)। दोनों में कुछ साम्य है। वे लोग आजाद भारत की नेहरु काबीना में मंत्री रहे। जगजीवन राम केवल 38 वर्ष के थे। साथ ही संविधान सभा के सदस्य भी । दोनों नेता दलितों तथा वंचितों के हित हेतु विख्यात रहे। काफी अंतर रहा डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar) की भूमिका में। वे गुलाम देश में 1942 में ही ब्रिटिश वायसराय की काबीना में श्रममंत्री बने थे। वह वर्ष था जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारत युद्धरत था। जंगे आजादी का ''करो या मरो'' का दौर था।
गोरी सरकार की पुलिस गांधीवादी सत्याग्रहियों को गोलियों से भून रही थी। हजारों लोग जेल में कैद थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश को बागियों ने 1942 में आजाद कर दिया था। उधर पश्चिम महाराष्ट्र में सतारा में भी मुक्त प्रदेश था। मगर डा. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar) तब अंग्रेजी राज के श्रम मंत्री थे। स्वाधीनता संघर्ष से वे दूर बहुत दूर रहे। उनकी राय थी कि ब्रिटिश शासन भारत में कायम रहे जब तक पूरी सामाजिक समता नहीं आ जाती। बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) संघर्षरत थे। चाहते थे कि ''अंग्रेज तुरन्त भारत छोड़ें।''
गांधीजी के अस्पृश्यता निवारण अभियान के हरावल दस्ते में थे जगजीवन राम
जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) गांधीजी के अस्पृश्यता निवारण अभियान के हरावल दस्ते में थे। डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar) अंग्रेजी सरकार के भारतद्रोही साजिश का विरोध नहीं करते थे। ब्रिटिश की योजना थी कि मुसलमान, हिन्दू तथा वंचित वर्ग के मतदाताओं का त्रिकोणीय समूह बने। अर्थात हिन्दू वर्ग में केवल सवर्ण, उच्च जाति के लोग रहें। नतीजन भारत में हिन्दू ही अल्पसंख्यक हो जाते। यरवदा जेल में बापू द्वारा आमरण अनशन से पूना पैक्ट बना और समस्त हिन्दू समाज अविभाजित रहा। डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar) ने इस संधि पर विवशता से हस्ताक्षर किये थे। एक और साम्य रहा इन दोनों दलित नेताओं में। ब्रिटिश राज में डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar) श्रम मंत्री रहे। नेहरु काबीना में जगजीवन राम प्रथम राष्ट्रवादी श्रम मंत्री बने। उन्होंने देश के श्रमिकों हेतु, दलितों की भांति, कई कल्याणकारी कानून बनवाये।
जगजीवन राम के लम्बे राजनीतिक जीवन में रहे कुछ विवादास्पद और जनद्रोही कार्य
हालांकि जगजीवन राम के लम्बे राजनीतिक जीवन में कुछ विवादास्पद और जनद्रोही कार्य भी रहे। मसलन इंदिरा गांधी की काबीना के मंत्री के नाते जगजीवन राम ने तानाशाही का (आपातकालीन) विधेयक संसद में पेश किया था। इसीलिये जब जनता पार्टी सरकार के प्रधानमंत्री के दावेदारी में मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के साथ बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) भी दौड़ में थे तो वे नकारे गये थे। सत्तासीन जनता पार्टी के सांसदों को बिडबना लगी कि इंदिरा गांधी की तानाशाही से देश को मुक्त कराने वाला ही प्रधानमंत्री चुना जाये। बहुमत से मोरारजी भाई को प्रधानमंत्री बनाया गया।
1 फरवरी 1977 को इंदिरा काबीना से दिया त्यागपत्र
मगर बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) द्वारा 1 फरवरी 1977 (छठी लोकसभा के चुनाव के माहभर पूर्व) अकस्मात इंदिरा काबीना से त्यागपत्र देकर सत्ता का पासा ही पलट दिया। हम 27 अभियुक्त तब नयी दिल्ली के 17 नम्बर वार्ड में कैद थे। अभियुक्त प्रथम स्व. जॉर्ज फर्नांडिस तथा द्वितीय मैं ( के. विक्रम राव) थे। उन्हीं दिनों में मेरे अग्रज तथा प्रख्यात ज्योतिषाचार्य श्री के. नारायण राव (IAAS, कोलकाता एजी आफिस में सीनियर डीएजी) ने मुझे पत्र लिखा था कि ''1 फरवरी 1977 को विस्मयभरी तथा युगांतरकारी सियासी घटना होगी तथा माह भर के भीतर हम सभी बड़ौदा डायनामाइट के कैदी मुक्त हो जायेंगे। इस पत्र को सीबीआई, तिहार जेल के अधीक्षक तथा मेरे दो अन्य वरिष्ठों ने देखा था। ये दोनों थे श्री प्रभुदास पटवारी, बार में तमिलनाडु के राज्यपाल जिन्हें जनवरी 1980 में सत्ता पर आते ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बर्खास्त कर दिया था।
दूसरे थे उद्योगपति, भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष तथा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नामित हुए वीरेन शाह। अक्षरश: बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) के काबीना तथा कांग्रेस से त्यागपत्र देने के कारण भारत की राजनीति ही बदल गयी थी। स्व. एचएन बहुगुणा तब जगजीवन राम के साथ थे। मगर दुखद बात यह रही कि 1980 के लोकसभा निर्वाचन में जगजीवन राम वाली जनता पार्टी हार गयी। इंदिरा कांग्रेस सत्ता पर लौट आयी। भारतीय गणराज्य इतिहास में प्रथम दलित प्रधानमंत्री की सेवाओं से मरहूम रह गया। फिर भी इतिहास में बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjeevan Ram) अमर हो गये।
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