Digital Revolution: ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना: एक डिजिटल क्रांति

Digital Revolution: किसी भी प्रकार की क्रांति के लिए सामूहिक शक्ति, एकीकृत ऊर्जा और सक्रिय एवं समावेशी बदलाव की मांग की आवश्यकता होती है। डिजिटल क्रांति के उदय के साथ, तकनीकी युग अपनी लय को नया रूप दे रहा है। लोग तकनीक से गहराई से जुड़े हुए हैं, क्योंकि यह उनके जीवन के हर पहलू में सहजता से एकीकृत हो गया है।

Written By :  Vikalp Mishra
Update:2024-03-04 10:47 IST

ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना: एक डिजिटल क्रांति: Photo- Social Media

Digital Revolution: किसी भी प्रकार की क्रांति के लिए सामूहिक शक्ति, एकीकृत ऊर्जा और सक्रिय एवं समावेशी बदलाव की मांग की आवश्यकता होती है। डिजिटल क्रांति के उदय के साथ, तकनीकी युग अपनी लय को नया रूप दे रहा है। लोग तकनीक से गहराई से जुड़े हुए हैं, क्योंकि यह उनके जीवन के हर पहलू में सहजता से एकीकृत हो गया है।

तकनीकी प्रगति के लाभों का उपयोग करने के लिए, ई-कोर्ट परियोजना की संकल्पना राष्ट्रीय ई-शासन योजना के एक भाग के रूप में की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य "भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय नीति व कार्य योजना" के आधार पर भारतीय न्यायपालिका का आईसीटी विकास करना है।

न्याय विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार और ई-समिति, सर्वोच्च न्यायालय के बीच एक संयुक्त साझेदारी में ई-कोर्ट परियोजना को विकेन्द्रीकृत दृष्टिकोण के तहत संबंधित उच्च न्यायालयों के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।  

इस परियोजना का पहला चरण, मुख्य रूप से अदालतों में कम्प्यूटरीकरण और आंतरिक संचार-संपर्क को बढ़ाने पर केंद्रित था। इसमें एलएएन की स्थापना, राष्ट्रीय ई-कोर्ट पोर्टल का शुभारंभ और 14,249 जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों का कम्प्यूटरीकरण शामिल था।

चरण-I में निर्मित बुनियाद को आगे बढ़ाते हुए परियोजना का चरण- II 2015 से 2023 तक जारी रहा। इस चरण में नागरिक-केंद्रित ई-सेवाओं पर जोर देते हुए अदालतों की तकनीकी सक्षमता की गति को बनाए रखा गया। इस प्रयास के हिस्से के रूप में, अदालत परिसर में ई-फाइलिंग और पूरक सेवाओं में सहायता प्रदान करने के लिए 880 ई-सेवा केंद्र स्थापित किए गए। इसके अलावा, 99.4 फीसदी अदालत परिसर डब्ल्यूएएन के माध्यम से जोड़े गए और 18,735 जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय कम्प्यूटरीकृत किए गए। ई-कोर्ट एमएमपी ने न्यायिक क्षेत्र में उल्लेखनीय परिणाम दिए हैं। उदाहरण के लिए, ट्रैफिक चालान मामलों को निपटाने के लिए, 20 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 25 वर्चुअल कोर्ट स्थापित किए गए हैं। इन अदालतों में 4.24 करोड़ से अधिक मामलों की सुनवाई हुई है और 47 लाख से अधिक मामलों में 492.79 करोड़ रुपये से अधिक का ऑनलाइन जुर्माना प्राप्त किया गया है।

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, उच्च न्यायालयों के साथ-साथ जिला और अधीनस्थ अदालतों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 3 करोड़ सुनवाई की, जिसे उल्लेखनीय कहा जा सकता है। उक्त परिस्थितियों में, सर्वोच्च न्यायालय ने 6,24,427 सुनवाई की। अदालती कार्यवाही तक पहुंच बढ़ाने के लिए, सर्वोच्च न्यायालय और 7 उच्च न्यायालयों में लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की गई।

ई-कोर्ट चरण I और चरण II की उपलब्धियों के आधार पर और 'डिजिटल इंडिया' दृष्टिकोण के अनुरूप, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ई-कोर्ट चरण III के लिए 7,210 करोड़ रुपये का पर्याप्त बजट आवंटित किया, ताकि ई-कोर्ट परियोजना के तहत प्रौद्योगिकी सक्षमता के माध्यम से न्यायिक अवसंरचना को और अधिक विस्तार दिया जा सके तथा मजबूत किया जा सके।

ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण में एक ऐसी न्यायिक प्रणाली की परिकल्पना की गई है जो सभी के लिए और भी किफायती, सुलभ तथा पारदर्शी हो। हितधारकों की बड़े पैमाने पर, विविधतापूर्ण और लगातार विकसित होती जरूरतों एवं प्रौद्योगिकी के निरंतर विकास को देखते हुए, चरण III का विशेष ध्यान प्रौद्योगिकी को अपनाने और एक मजबूत शासन व्यवस्था प्रदान करने पर है। यह न्यायिक प्रणाली के लिए एक ऐसी अवसंरचना की परिकल्पना करता है, जो स्वाभाविक रूप से डिजिटल हो। यह केवल दस्तावेज-आधारित प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह डिजिटल वातावरण की दिशा में परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतीक भी है, जिसमें पेपरलेस कोर्ट, एआई और ऑनलाइन विवाद समाधान जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का एकीकरण जैसे नए तत्व शामिल किए गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में, ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण की शुरुआत की गयी है। लक्ष्य है- सभी के लिए न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित करना, जैसा संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 में निहित है। इसका उद्देश्य एक सुलभ और लागत प्रभावी न्याय प्रणाली स्थापित करना है तथा एक नए और सशक्त भारत को बढ़ावा देना है, जहां आम नागरिक के लिए संवैधानिक अदालतों तक पहुंच पहले से कहीं अधिक आसान हो।

बी.आर. अम्बेडकर के शब्दों में, "न्याय को, अपने वास्तविक सार में, उत्पीड़ितों की रक्षा के लिए एक ढाल के रूप में और वंचित समुदाय के लिए आशा की किरण के रूप में काम करना चाहिए। यह निष्पक्ष, सत्ता के प्रति अडिग और जाति, पंथ या सामाजिक स्थिति के भेदभाव के बिना सभी के लिए सुलभ होना चाहिए।" केवल न्याय के माध्यम से ही हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के सम्मान, समानता और मौलिक अधिकारों की रक्षा करता हो।"  

(लेखक दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं।)

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